भारत और कनाडा के रिश्तों में तनाव: लगातार एक्शन-रिएक्शन.... फिर सुधरेंगे रिश्ते
भारत और कनाडा के रिश्तों में तनाव बढ़ता ही जा रहा है. बढ़ती कड़वाहट के बीच लगातार नया अपडेट आ रहा है. भारत और कनाडा के बिगड़ते रिश्ते के बीच जहां चीन पहली बार हिंदुस्तान के पक्ष में खड़ा दिखाई दे रहा है. वहीं, कनाडा अब भारतीय दूतावास से अपने राजनयिकों को भी वापस बुला रहा है. साथ ही भारत सरकार ने कनाडा में रह रहे सभी भारतीय नागरिकों के लिए और कनाडा जाने की सोच रहे लोगों के लिए की सुरक्षा के मद्देनजर एडवाइजरी जारी किया है. भारत ने कनाडा को वीजा जारी करने पर भी रोक लगा दी है. कनाडा में गैंगस्टर गोल्डी बराड़ के छिपे होने और उसका खालिस्तानी आतंकियों के साथ संबंध होने के शक में पंजाब पुलिस ने एक्शन तेज कर दिया है. उसके गुर्गों को दबोचने के लिए पूरे पंजाब में छापेमारी की जा रही है. इसके अलावा कनाडा में भारत से फरार हुआ एक और गैंगस्टर सुखदूल सिंह उर्फ सुक्खा दुनुके की गोली मारकर हत्या की हत्या हुई है. वो खालिस्तानी आतंकी अर्शदीप सिंह उर्फ अर्श डाला का सहयोगी था. वहीं, इन सब के बीच कई सवाल ऐसे हैं, जो दोनों देशों के रिश्तों को लेकर सभी के ज़ेहन में हैं.
ये सवाल हैं- G20 शिखर सम्मेलन के बाद अब आखिरी क्यों भारत और कनाडा के रिश्तों में बढ़ी कड़वाहट. क्यों कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के बोल भारत के लिए बिगड़े. क्यों कनाडा ने भारतीय राजनयिक को भारत वापस भेज दिया और अपने राजनयिकों को भारत से वापस बुला रहा है. कनाडा के एक्शन पर भारत का क्या रिएक्शन है और कैसे दूर हो सकती है दोनों देशों के रिश्तों में आई कड़वाहट.
जाहिर है, भारत और कनाडा के रिश्ते अब पहले जैसे नहीं रहे. जानकारों का कहना है कि दोनों देशों के रिश्तों में तनाव इतना बढ़ चुका है, जिसके खत्म होने और कम होने के फिलहाल आसान नहीं है. कनाडा से भारत के मौजूदा तनाव के लिए काफी हद तक वहां सिख अलगाववादियों की ओर से चलाए गए कथित भारत विरोधी अभियान को माना जा रहा है. भारत के नजरिए से समझे तो इस तनाव की सबसे बड़ी वजह है कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो का खालिस्तानी आतंकियों को सपोर्ट करना. दरअसल, भारत में 2024 में चुनाव है तो 2025 में कनाडा में भी चुनाव है. कनाडा में सिखों की बड़ी संख्या है, जो वहां किसी भी सरकार के बनने में बड़ी भूमिका निभाती है. कनाडा में 18 लाख से ज्यादा भारतीय मूल के लोग हैं, जो वहां की आबादी का करीब 5 फीसदी है. इनमें सिखों की आबादी 7 लाख से ज्यादा है, जो कि वहां की कुल आबादी का 2 फीसदी है. 2021 के चुनाव में 15 सिख जीते थे और 2019 में 18 सिख सांसद थे.
माना जा रहा है कि इनमें भारतीय मूल वो लोग, जो खालिस्तान के समर्थक हैं या कहें खालिस्तान के लिए आतंकी गतिविधियों में शामिल रहे है. चुनाव में ऐसे लोगों का समर्थन हासिल करने के लिए ही प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने भारत को लेकर तीखा रिएक्शन दिया है. खालिस्तानी आतंकियों को पनाह देने की कनाडा सरकार की अघोषित नीति के चलते भारत और कनाडा के रिश्ते धीरे -धीरे लगातार बिगड़ते ही जा रहे थे. इस बीच 18 जून 2023 को की गई खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या ने आग में घी डालने का काम किया. उसे कनाडा में ब्रिटिश कोलंबिया के सरी में गुरुनानक सिख गुरुद्वारा के पास 2 अज्ञात बंदूकधारियों ने गोली मारी थी. निज्जर इस गुरुद्वारे का संचालन करने वाली कमेटी का प्रधान भी था. हरदीप सिंह निज्जर ने साल 2013-14 में पाकिस्तान की भी यात्रा की थी. उसकी हत्या के बाद जहां कनाडा में छिपे खालिस्तानी आतंकी बदला लेने की फिराफ में हैं और कनाडा में रहे रहे भरतीयों के लिए उनके धमकी भरे वीडियो जारी हो रहे हैं. भारत में घोषित आतंकी गुरपतवंत पन्नू ने एक वीडियो जारी कर कनाडा में रहने वाले भारतीय हिंदुओं से कनाडा छोड़ने के लिए कहा.
वहीं, भारत में आयोजित G20 शिखर सम्मेलन में शामिल होकर लौटे कनाडाई PM जस्टिन ट्रूडो ने भारत पर ऐसे आरोप लगाए कि वो चीन सहित कई देशों के गले नहीं उतर रहा. कनाडाई PM जस्टिन ट्रूडो ने कहा कि कनाडाई सुरक्षा एजेंसियों के पास ये मानने के कारण है कि भारत सरकार के एजेंटों ने ही हरदीप सिंह निज्जर की हत्या की है. और कनाडाई एजेंसियां हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भारत की साजिश की संभावनाओं की जांच कर रही हैं. साथ ही शीर्ष भारतीय राजनयिक पवन कुमार राय को कनाडा से भारत भेज दिया गया. अपने इस बयान और कार्रवाई के साथ ही कि ट्रूडो ने जता दिया कि खालिस्तानी आतंकियों के लिए उन्हें भारत के साथ बिगड़ते रिश्तों की भी परवाह नहीं है.
वहीं, कनाडाई PM के आरोपों पर भारत के विदेश मंत्रालय ने करारा जवाब दिया. भारत ने भी कनाडा के एक शीर्ष राजयनिक को निकालने के साथ ही कनाडा के आरोपों को बेतुका और किसी खास मंशा से प्रेरित बताया. भारत ने इस तरह के आरोप पर कहा कि कि सिर्फ उन खालिस्तानी आतंकी और कट्टरपंथियों से ध्यान हटाने के लिए हैं, जिन्हें लंबे समय से कनाडा में शरण दी जा रही है और जो भारत की क्षेत्रीय एकता और अखंडता के लिए लगातार खतरा बने हुए हैं.
वहीं, इससे पहले सप्ताह जी-20 शिखर सम्मेलन सम्मेलन में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी द्विपक्षीय बातचीत के दौरान कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिस ट्रूडो के सामने इस बात पर नाराजगी जाहिर की थी कि उनके देश में खालिस्तानी समर्थकों की गतिविधियों पर नकेल नहीं कसी जा रही है.. ऐसे में समझा जा सकता है कि अब भारत और कनाडा के रिश्ते में तभी सुधार हो सकता है, जब कनाडा अपने देश में खालिस्तानी समर्थकों पर नकेल कसे. लेकिन, नकेल कसने की बजाय अब कनाडा के पीएम पहले से कहीं ज्यादा और खुले तौर पर खालिस्तानी आतंकियों के पक्ष में खड़े दिखाई दे रहे है. ऐसे में फिलहाल दोनों के रिश्ते सुधरने की गुंजाइश कम ही है.
इतिहास के पन्नों में भारत और कनाडा के बीच राजनयिक रिश्ते
भारत की आजादी के साथ ही कनाडा ने भारत को एशिया में शक्ति संतुलन के लिहाज से एक अहम खिलाड़ी मानना शुरू कर दिया था.नशीत युद्ध के दौरान भारत कनाडा की आर्थिक मदद पाने वाला सबसे बड़े देशों में शामिल था. कनाडा ने कोलंबो प्लान के तहत भारत के सिविल न्यूक्लियर कार्यक्रम को अनुदान दिया था. हालांकि नेटो के संस्थापक सदस्यों में शामिल रहे कनाडा और भारत के बीच संतुलन बनाने में थोड़ी दिक्कतें आईं, क्योंकि भारत गुटनिरपेक्ष आंदोलन का अगुआ था.दोनों देशों के रिश्तों में तनाव तब भी दिखा जब कनाडा ने 1948 ने कश्मीर में जनमत सर्वेक्षण की मांग का समर्थन किया.. साल 1974 में जब भारत ने परमाणु परीक्षण किया तो कनाडा ने काफी नाराजगी दिखाई. भारत की ओर से 1998 में किए गए परमाणु परीक्षण के दौरान भी दोनों देशों के रिश्तों में तनाव दिखा..साल 2000 के दौरान कनाडा की सरकार ने भारत के साथ रिश्तों को सुधारने का फैसला किया. 2001 में उसने भारत पर लगे अपने सभी आर्थिक प्रतिबंध हटा लिए. ये प्रतिबंध परमाणु परीक्षणों की वजह से लगाए गए थे.साल 2010 में कनाडा ने भारत के साथ मुक्त व्यापार यानी एफटीए पर बातचीत शुरू की..साल 2010 में ही भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी-20 देशों के सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए कनाडा गए थे. इस दौरान भारत और कनाडा के बीच सिविल न्यूक्लियर समझौता किया गया. ये दोनों देशों के रिश्तों में एक बड़ा मुकाम था, क्योंकि भारत परमाणु अप्रसार संधि यानी एनपीटी और समग्र परीक्षण प्रतिबंध संधि यानी सीटीबीटी पर दस्तखत करने के लिए तैयार नहीं था. इस वजह से दोनों देशों के रिश्तों में एक खिंचाव दिख रहा था. साल 2015 में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कनाडा का दौरा किया. दोनों देशों के बीच अंतरिक्ष, रेलवे, नागरिक उड्डयन और साइंस-टेक्नोलॉजी के साथ एक कनाडाई कंपनी से भारत को 3000 टन यूरेनियम सप्लाई करने का समझौता हुआ. इसके बाद 2015 में जस्टिन ट्रूडो के नेतृत्व में कनाडा की लिबरल पार्टी सरकार में आई और उस वक्त कई जानकार ये मानने लगे थे कि कि ट्रूडो का आना भारत और कनाडा के रिश्तों के भविष्य ठीक नहीं होगा.हालांकि ट्रूडो ने ग्लोबल साउथ और एशिया में भारत के बढ़ते कद को देखते हुए इससे संबंधों को मजबूत किया और नई नीति को तवज्जो देना शुरू किया. इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में कनाडा चीन को लेकर सतर्क हमेशा रहा है. कनाडा ने 2022 नवंबर अपनी इंडो-पैसिफिक रणनीति का ऐलान किया, जिसमें चीन को लेकर काफी सतर्क रुख का जिक्र किया गया था. चीन के साथ अपने बिगड़े रिश्तों की भरपाई के लिए ट्रूडो ने भारत पर ध्यान देना शुरू किया. ऐसे में ट्रूडो और उनके सहयोगियों की भारत से जुड़ी नीतियों को लेकर आशंका के बावजूद 2015 के बाद भारत और कनाडा के रिश्तों की तस्वीर थोड़ी निखरी हुई दिखी थी. लेकिन, जस्टिन ट्रूडो के भारत को लेकर हाल के बयान और कनाडा से भारतीय राजनयिक को वापस भेजने के बाद अब ऐसा नहीं है.|