ईडी समन: केजरीवाल और हेमंत सोरेन का रुख एक जैसा, फिर भी अलग-अलग तैयारियां

Update: 2024-01-03 10:06 GMT

प्रवर्तन निदेशालय यानी ED के नोटिस पर देश के दो मुख्यमंत्रियों की प्रतिक्रिया बिलकुल एक जैसी देखने को मिल रही है. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन को ईडी ने अलग अलग मामलों में पूछताछ के लिए कई बार नोटिस भेज चुका है, लेकिन दोनों में से कोई भी गंभीरता से नहीं ले रहा है - और दोनों ही नेताओं के मामलों में ईडी का रवैया भी पहेली जैसा लग रहा है. 

सवाल है कि अरविंद केजरीवाल और हेमंत सोरेन दोनों ही आखिर ईडी के समन को हल्के में क्यों ले रहे हैं? और दोनों मामलों में जो ईडी का रवैया नजर आ रहा है, दो नों मामलों में जो ईडी का रवैया नजर आ रहा है, दोनों मुख्यमंत्रियों की दलीलें भी दमदार नजर आने लगी हैं! दोनों ही मुख्यमंत्रियों और उनकी पार्टियों का प है कि ईडी का एक्शन पूरी तरह राजनीति से प्रेरित है.  

समन को हल्के में क्यों ले रहे हैं केजरीवाल और सोरेन

ईडी के समन पर अरविंद केजरीवाल ने करीब करीब हेमंत सोरेन जैसा ही स्टैंड ले रखा है - और इस मामले में में ये दोनों ही शरद पवार से अलग रवैया अपना रहे हैं. दोनों नेताओं के मामले में ईडी भी लगभग वैसे ही पेश आ रहा है, जैसे शरद पवार के मामले में देखा गया था. केजरीवाल और हेमंत सोरेन जो पेशी के लिए तैयार भी नहीं है, शरद पवार ने तो नोटिस मिलने पर ईडी के दफ्तर जाकर पेश होने के लिए ऐलान ही कर दिया था. बाद में ईडी की तरफ से शरद पवार को बोल दिया गया कि उनको दफ्तर आकर पेश होने की जरूरत नहीं है. शरद पवार जैसी ही हीलाहवाली ईडी के रुख में केजरीवाल और हेमंत सोरेन के मामलों में भी देखी जा रही है, लेकिन माहौल ऐसा बना हुआ है कि दोनों ही नेताओं की गिरफ्तारी की आशंका खत्म नहीं हो रही है. 

हेमंत सोरेन को अब तक 7 बार पूछताछ के लिए बुलाया जा चुका है, और अरविंद केजरीवाल को भी तीन बार. लेकिन दोनों में से कोई भी पेश होने को राजी नहीं है. दोनो  ही मुख्यमंत्री ईडी के समन को गैरकानूनी बता रहे हैं, और राजनीति से प्रेरित भी.  

काफी दिनों से झारखंड के राजभवन में पड़े एक बंद लिफाफे की भी चर्चा होती रही है. कहा जाता है कि अगर लिफाफा खुल गया तो हेमंत सोरेन की विधानसभा सदस्यता भी जा सकती है. असल में चुनाव आयोग ने हेमंत सोरेन के मामले में राज्यपाल को अपनी एक रिपोर्ट भेजी थी. तब भी काफी बवाल मचा था, अब भी वैसी ही चर्चा है. बीजेपी की तरफ से चुनाव आयोग में हेमंत सोरेन के खिलाफ लाभ के पद को लेकर शिकायत दर्ज कराई गई थी. 

हेमंत सोरेन की ही तरह अरविंद केजरीवाल भी ईडी के सामने पेश नहीं हो रहे हैं, और ऊपर से सवाल भी पूछे जा रहे हैं. ईडी को भेजे अपने जवाब में अरविंद केजरीवाल ये भी पूछ चुके हैं, और उनके साथी भी पूछ रहे हैं, किस हैसियत में उनको बुलाया जा रहा है, ना वो गवाह हैं, ना वो अभियुक्त हैं. 

आम आदमी पार्टी की दिल्ली सरकार के मंत्री सौरभ भारद्वाज का आरोप है कि अरविंद केजरीवाल को लोक सभा चुनाव में कैंपेन करने से रोकने के लिए ये सब किया जा रह है. सौरभ भारद्वाज का कहना है, जब डेढ़ साल से जांच चल रही है, चार्जशीट दाखिल हो चुकी है, तो केजरीवाल जी को अब समन करने का क्या मतलब है? 

और अब तो अरविंद केजरीवाल से पूछे जाने वाले सवालों की सूची भी मांगी जाने लगी है. AAP नेता और दिल्ली सरकार की मंत्री आतिशी का कहना है कि ईडी के अफसरों को लिख कर देना चाहिये कि वे केजरीवाल से क्या सवाल पूछना चाहते हैं. सही बात है, अरविंद केजरीवाल कोई आम आदमी तो हैं नहीं, दिल्ली के मुख्यमंत्री हैं.जैसे वो इंटरव्यू से पहले पूछ जाने वाले सवाल जानना चाहते होंगे, जांच एजेंसी से भी वही अपेक्षा है. 

ED का रवैया भी गंभीर नजर क्यों नहीं आ रहा है

अरविंद केजरीवाल और उनके साथी तो शुरू से ही गिरफ्तारी की आशंका जता रहे हैं, अब कानून के जानकार भी ऐसी ही राय जाहिर कर रहे हैं. कानून के जानकारों की मानें, तो तीन बार के समन के बाद अरविंद केजरीवाल के खिलाफ अब जमानती वारंट और उसके बाद भी पेश नहीं होने पर गैर जमानती वारंट जारी किया जा सकता है - और उसके बाद भी दिल्ली के मुख्यमंत्री पेश नहीं होते, तो ईडी के अधिकारी घर पहुंच कर पूछताछ कर सकते हैं, और चाहें तो गिरफ्तार भी कर सकते हैं. 

हेमंत सोरेन को तो 7 बार बुलाया जा चुका है, और इस हिसाब से देखें तो अरविंद केजरीवाल भी बड़े आराम से और भी चार बार समन का जवाब देकर अपने रोजमर्रा के कामकाज निबटाते रह सकते हैं. जैसे विधानसभा चुनाव खत्म हो गये, विपश्यना पूरी हो गई, लोक सभा चुनाव 2024 भी ऐसे ही पूरे हो सकते हैं.

जो कुछ भी हो रहा है, देख कर ये समझना मुश्किल हो रहा है कि आखिर ईडी भी दोनों के मामलों में गंभीरता नहीं दिखा रहा है? ये रवैया तो ईडी की कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठा रहा है.

1. आखिर ईडी की तरफ से अरविंद केजरीवाल के मामले में वैसी तत्परता क्यों नहीं देखने को मिल रही है, जैसी मनीष सिसोदिया, संजय सिंह और सत्येंद्र जैन के मामले में देखी गई थी.

2. आखिर हेमंत सोरेन के मामले में भी ईडी की गंभीरता वैसी नजर क्यों नहीं आ रही है, जैसी संजय राउत, नवाब मलिक या अनिल देशमुख के केस में देखने को मिली थी.

फिर तो सवाल ये भी उठता है कि क्या ईडी को भी दोनों ही मुख्यमंत्रियों के खिलाफ अब तक ऐसा कोई ठोस सबूत नहीं मिल पाया है, जिसकी बदौलत वो उनके खिलाफ केस को मजबूत बना कर कार्रवाई के लिए आगे बढ़ सके? 

और ये सवाल ही नये सवालों को जन्म दे रहा है - ऐसे में तो ईडी को लेकर अरविंद केजरीवाल और हेमंत सोरेन की दलीलें ही दमदार लग रही हैं.

तो क्या अरविंद केजरीवाल और हेमंत सोरेन दोनों को ही एक जैसी कानूनी सलाहियत मिल रही है? और यही वजह है कि कानूनी लड़ाई में दोनों ही नेता राजनीतिक लड़ाई  में दोनों ही नेता राजनीतिक लड़ाई को तरजीह दे रहे हैं?  

ये तो लगता है जैसे दोनों ही चाहते हों कि ईडी भी ऐसे ही एक के बाद एक नोटिस भेजता रहे. कम से कम इसी बहाने बीजेपी नेतृत पर अपने साथ राजनीतिक बदले की कार्रवाई के आरोप लगा सकते हैं - और आने वाले आम चुनाव तक ये हाल बना रहा तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के खिलाफ हमला बोलने का मौका भी मिलेगा. 

केजरीवाल और हेमंत सोरेन दोनों ईडी के एक्शन को विपक्षी खेमे में भी भुनाने की कोशिश करेंगे, और विपक्षी खेमे के नेताओं के लिए भी बीजेपी के खिलाफ ये मामले मुद्दा बनाने के काम आएंगे - हो सकता है ये सब मजह संयोग ही हो, लेकिन जिस तरह की गतिविधियां नजर आ रही हैं - ये सब पूरी तरह सोची समझी रणनीति के तहत चल रहे राजनीतिक प्रयोग ही लग रहे हैं. 

गिरफ्तारी की सूरत में तैयारियां क्या हैं

ईडी के समन पर अरविंद केजरीवाल और हेमंत सोरेन दोनों ही मुख्यमंत्रियों के मामले में ज्यादातर बातें कॉमन हैं, बस तैयारियों में एक फर्क नजर आ रहा है. 

अरविंद केजरीवाल जहां जेल से सरकार चलाने की तैयारी कर रहे हैं, हेमंत सोरेन खेमे से झारखंड में भी बिहार जैसे प्रयोग की तैयारी की खबरें आ रही हैं. जैसे प्रयोग की तैयारी की खबरें आ रही हैं. जैसे लालू यादव ने जेल जाने से पहले राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बना दिया था, सुनने में आ रहा है कि हेमंत सोरेन भी अपनी पत्नी कल्पना सोरेन को जेल जाने की सूरत में गद्दी सौंप सकते हैं.JMM के गांडेय विधायक सरफराज अहमद के अचानक इस्तीफे के बाद ऐसी अटकलों को और भी बल मिला है. बीजेपी का दावा है कि विधायक को इस्तीफे के लिए मजबूर किया गया, ताकि कल्पना सोरेन के चुनाव लड़ने और उसके साथ ही उनके मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने का रास्ता साफ हो सके. 

हालांकि, हेमंत सोरेन ने कल्पना सोरेन के चुनाव लड़ने की अटकलों को खारिज कर दिया है, और ये सब बीजेपी नेताओं की कोरी कल्पना बताया है. हेमंत सोरेन कह रहे हैं कि उनकी पत्नी के चुनाव लड़ने या उन्हें बागडोर सौंपने जैसी संभावनाओं का पूरा ताना बाना बीजेपी का ही बुना हुआ है 

दिल्ली में आम आदमी पार्टी की तरफ से 'मैं भी केजरीवाल' कैंपेन चलाया गया था. पार्टी का कहना है कि कैंपेन के नतीजे अपेक्षा से कहीं बेहतर आये हैं. आम आदमी पार्टी के मुताबिक, 23,82,122 घरों में जेल से सरकार चलाने के मुद्दे पर विस्तार से चर्चा की गई, और लोगों की राय को रिकॉर्ड किया गया.AAP नेताओं का तर्क है, अगर एक घर में चार लोग भी हैं, तो लगभग 96 लाख लोग अरविंद केजरीवाल के साथ खड़े हैं. मतलब, आम आदमी पार्टी के अनुसार दिल्ली के लोग अरविंद केजरीवाल के जेल से सरकार चलाने का आइडिया मंजूर कर चुके हैं. फिर तो अब सुप्रीम कोर्ट के रुख जानने का ही इंतजार होगा.

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