दो बड़े गुटों के कारण कही पिछड़ न जाए तटस्थ दल

लोकसभा में ऐसे 11 छोटे दल है जिनके सदस्यों की संख्या 64 है। पर अगर यह छोटे दल दोनों गठबंधन से अलग अलग खड़े रहे तो उनका लोकसभा में कद और छोटा हो सकता है

Update: 2023-07-22 05:37 GMT

लोकसभा चुनाव 2024(Loksabh Election 2024) कुछ ही महीनों में होने जा रहा है।  ऐसे में देश दो बड़े पक्ष जो राष्ट्रीय पक्ष कहलाए जाते हैं वह अपने अपने गुट के साथ तैयार हो गए है। जहां एनडीए (NDA) के साथ 38 पार्टियां है वही इंडिया (India) के साथ 26 दल है। पर 2024 का ये लोकसभा चुनाव (Loksabha Election) केवल इन दो गुटों का ही भविष्य नहीं बल्कि इनके अलावा जो किनारे पर बैठे हुए छोटे दल है उनका भविष्य भी तय करेगा। देखा जाए तो दोनों गठबंधन को मिलाकर कुल 64 दल है। जो मिलकर चुनाव लड़ने वाले हैं। और उनके अलावा वाईएसआर कांग्रेस (YSR Congress), बीआरएस (BRS), बीजू जनता दल (BJD) और बसपा (BSP) जैसे कई छोटे दल है। जो फिलहाल तटस्थ है। 

जिन्होंने ना तो कमल को महत्व दिया ना ही पंजे को। अब तक जितने भी चुनाव हुए हैं। उन सभी चुनाव में यह देखा गया है कि जब राजनीतिक पार्टियां दो बड़े गठबंधन में बढ़ जाती है तो अपने दम पर चुनाव लड़ने वाले छोटे दल अपनी अहमियत खोने लगते हैं। उनका ना सिर्फ वोट प्रतिशत गिर जाता है बल्कि उनके सदस्यों की संख्या भी कम हो जाती है। लोकसभा में ऐसे 11 छोटे दल है जिनके सदस्यों की संख्या 64 है। पर अगर यह छोटे दल दोनों गठबंधन से अलग अलग खड़े रहे तो उनका लोकसभा में कद और छोटा हो सकता है।अक्सर जब दो बड़े गुड लड़ रहे होते हैं तो मतदाता या तो इस गुट को मतदान करता है या उस दल को। उसका झुकाव दोनों में से किसी एक पार्टी विशेष के लिए होता है। बहुत ही कम मतदाता ऐसे होते हैं जो तीसरी ताकत को या छोटे दलों को महत्वपूर्ण स्थान देना चाहते हैं। ऐसी परिस्थितियों में सबसे नुकसान किसी का होता है तो वह छोटे क्षेत्रीय दल होते हैं। यही ट्रेंड विधानसभा चुनाव में भी कई बार देखने को मिला है। इसका उदाहरण देखना हो तो 1977 का लोकसभा चुनाव देखना चाहिए।

दरअसल इस साल कांग्रेस के खिलाफ राष्ट्रीय स्तर पर आक्रोश बढ़ने लगा था और ऐसे में कई छोटे दोनों ने मिलकर जनता पार्टी के साथ एक समूह बना लिया था। चुनाव के परिणाम आए तो इन दो बड़े पार्टियों के अलावा छोटे दलों को काफी कम वोट मिले थे। इन दो बड़े दलों को जहां कुल मतदान का तक़रीबन 70 फ़ीसदी वोट मिले थे। वहीं तटस्थ होकर लड़ने वाले छोटे दलों को छोटे दलों को 42 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा था। इसके अलावा 1989 के चुनाव के परिणाम भी लगभग ऐसे ही थे तब भी पी सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस विरुद्ध जनता दल ऐसी लड़ाई थी। 

इसमें सबसे ज्यादा नुकसान बसपा और नीतीश कुमार की पार्टी को हुआ था। 2014 में भी जब बसपा अकेले लड़ी तब वह जीरो पर आउट हो गई। पर 2019 में समाजवादी पार्टी के साथ बसपा के गठबंधन के बाद 10 सीटों पर जीत मिली थी। जनता दल यूनाइटेड का भी हाल रहा। 2014 में जब जेडीयू अकेले लड़ी तो उसे केवल 2 सीटें मिली पर भाजपा के साथ लड़ते ही 2019 में उन्हें 16 सीटें मिली थी। भारतीय चुनाव का यह सारा इतिहास अगर देखा जाए तो यही समझ में आता है कि जब दो बड़े दल गठबंधन में लड़ रहे हो तब छोटे दलों की अक्सर बलि चढ़ती है। देखना होगा 2024 में यह इतिहास बदलता है या फिर से वही सब घटित होता है। 

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