CG Election: कांग्रेस में अपनी पार्टी का विलय चाहते थे अमित जोगी, 'शर्त' जिसने उन्हें भूपेश का दुश्मन बना दिया
जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के प्रदेश अध्यक्ष और अजीत जोगी के बेटे अमित जोगी मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के खिलाफ पाटन सीट से चुनाव लड़ने जा रहे हैं। उनके नामांकन दाखिल करते ही यह सीट बेहद दिलचस्प हो गई है। ऊपर से भले ही यह दो राजनीतिक दलों की चुनावी लड़ाई लगती हो लेकिन तहों में जाने पर यह बेहद निजी लड़ाई मालूम पड़ती है।
अमित जोगी कभी कांग्रेसी हुआ करते थे। पिता अजीत जोगी के साथ कांग्रेस से अलग होकर उन्होंने 2016 में नई पार्टी बनाई। 2018 के विधानसभा चुनावों में जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ ने बसपा के साथ एलांयस किया। अजीत जोगी की पार्टी को पांच और बसपा को दो सीटें मिलीं। राज्य में भारी बहुमत के साथ कांग्रेस सरकार आ गई। 2020 में अजीत जोगी नहीं रहे। अजीत जोगी के निधन के बाद उनकी पत्नी रेणु जोगी ने इस पार्टी का विलय कांग्रेस में करने की कोशिशें शुरू कीं। यह कोशिशें करीब-करीब परवान भी चढ़ गईं थीं लेकिन एक शर्त की वजह से सब कुछ रुक गया।
असली रार वहीं से पड़ी
अजीत जोगी के ना रहने के बाद उनकी पत्नी और पूर्व कांग्रेस नेता रेणु जोगी इस पार्टी का विलय कांग्रेस में चाहती थीं। वह लंबे समय से कांग्रेस में विधायक रह चुकी थीं। उन्होंने स्टेट लीडरशिप के साथ-साथ कांग्रेस हाईकमान से भी बात शुरू की। वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक दिवाकर मुक्तिबोध कहते हैं कि उनकी सोनिया गांधी से इस विषय में बात हो रही थी। सोनिया और रेणु की दशकों पुरानी जान-पहचान थी। सोनिया इस विलय के खिलाफ नहीं थीं लेकिन उन्होंने अंतिम फैसला लेने के लिए राज्य की ईकाई को ही अधिकृत किया। रेणु के संबंध राज्य की ईकाई के नेताओें के साथ बहुत मधुर तो नहीं थे लेकिन खटासपूर्ण भी नहीं थे। पार्टी के नेताओं के साथ बात शुरू हुई। लेकिन कांग्रेस की राज्य ईकाई ने उनके सामने एक शर्त रख दी। यह विलय की ऐसी शर्त थी जिसे पूरा कर पाना संभव नहीं था।
एक शर्त जिसे पूरा नहीं कर सके अमित और रेणु
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल इस विलय के खिलाफ थे। वह किसी भी हालत में जोगी परिवार की कांग्रेस में फिर से एंट्री नहीं चाहते थे। वरिष्ठ पत्रकार रवि भोई बताते हैं कि राज्य का कोई भी नेता इस पार्टी के विलय को लेकर सहज नहीं था। उसकी एकमात्र वजह अमित जोगी थे। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, टीएस सिंह देव सहित पूरी टॉप लीडरशिप इस विलय के खिलाफ थी। चूंकि सोनिया गांधी इस विलय के खिलाफ नहीं थीं इसलिए पार्टी के नेताओं ने रेणु को दो टूक तो मना नहीं किया लेकिन उनके सामने एक शर्त रख दी गई। रेणु जोगी से कहा गया कि कांग्रेस पार्टी जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के सभी नेताओं को कांग्रेस में ले लेगी लेकिन वह अमित जोगी को नहीं लेगी। अमित के बिना यदि पार्टी विलय करना चाहती है तो विचार किया जा सकता है। जैसा कि स्वाभाविक ही थी इस शर्त के बाद विलय की बात टूट गई। इसी के साथ भूपेश बघेल और जोगी परिवार के बीच की राजनीतिक तल्खी एक निजी तल्खी में बदल गई। पाटन की सीट से उनका नामांकन दाखिल करना राजनीतिक पंडितों को राजनीति से ज्यादा निजी लग रहा है।
नई पार्टी बनाने के खिलाफ थीं रेणु जोगी
रेणु जोगी शुरुआत से ही नई पार्टी बनाने के खिलाफ थीं। राजनीतिक जानकार बताते हैं कि खुद अजीत जोगी भी नई पार्टी बनाने को लेकर बहुत उत्सुक नहीं थे। कांग्रेस से करीब-करीब साइड लाइन कर देने के बाद अमित जोगी की जिद पर ही नई पार्टी बनाई गई। राजनीतिक जानकार वो वाकया भी नहीं भूलते जब पार्टी की स्थापना दिवस पर खुद रेणु जोगी मंच पर सबसे देर में आईं और सबसे पहले चली गईं। नई पार्टी के गठन के बाद वह कांग्रेस की मेंबर बनी रहीं। वह पार्टी की मीटिंग अटेंड करतीं। इससे एक किस्म की असहजता पार्टी में बनी रहती। इस बीच ना तो रेणु जोगी ने पार्टी छोड़ी और ना ही पार्टी ने उन्हें निकाला।
क्या भूपेश की लड़ाई को कठिन बना देंगे जोगी?
फिर पार्टी ने नहीं दिया टिकट
2018 के विधानसभा चुनाव में जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ अपने उम्मीदवारों का एलान कर रही थी। उस समय तक भी रेणु जोगी कांग्रेस पार्टी में बनी रहीं। कांग्रेस के लिए असहजता बढ़ती गई। कांग्रेस ने जब रेणु जोगी की पारंपरिक सीट कोटा से किसी और प्रत्याशी की घोषणा कर दी तब उसके बाद रेणु जोगी ने जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ की सदस्यता ली और उस पार्टी ने नामांकन दाखिल किया। एक तरह से कांग्रेस पार्टी ने कभी भी रेणु जोगी को पार्टी ने निकाला नहीं। सूत्र बताते हैं कि सीएम भूपेश को छोड़कर रेणु जोगी के संबंध पार्टी के बाकी नेताओं के साथ तल्खी वाले नहीं हैं।
क्या भूपेश की राह मुश्किल करेंगे जोगी ?
पाटन की सीट अब दिलचस्प हो गई है। पहले यहां पर भूपेश बघेल और बीजेपी के दुर्ग से सांसद विजय बघेल के बीच सीधी लड़ाई थी। विजय बघेल 2008 के चुनाव में भूपेश को हरा भी चुके हैं। अमित जोगी ने बिल्कुल आखिरी में इस लड़ाई में एंट्री मारी है। उनके आने से यह मुकाबला दिलचस्प हो गया है। पत्रकार रवि भोई कहते हैं कि पाटन सीट पर सतनामी समाज के वोटरों की संख्या ठीक-ठाक है। सतनामी समाज के लोग जोगी के पारंपरिक वोटर रहे हैं। यदि बड़ी संख्या में वोटर अमित जोगी के पक्ष में आते ही तो निश्चित ही भूपेश के सामने चुनौती खड़ी होगी। हालांकि भोई कहते हैं कि पाटन की सीट पर भूपेश का अच्छा प्रभाव है उनको वहां जीतने में समस्या नहीं आएगी लेकिन अमित जोगी इस लड़ाई को कठिन जरुर बनाएंगे।
क्या बीजेपी की शह पा रहे हैं जोगी?
कांग्रेस लगातार यह आरोप लगा रही है कि अमित जोगी बीजेपी की शह पर काम कर रहे हैं। टिकट बंटवारे से लेकर उनके पूरे चुनाव प्रबंधन तक को बीजेपी मैनेज कर रही है। हाल ही में केंद्र सरकार के द्वारा उनकी सुरक्षा को बढ़ाया गया तो विरोधियों को यह कहने का मौका मिला कि बीजेपी और अमित जोगी में सांठ-गांठ हैं। कांग्रेस, अमित जोगी को बीजेपी की बी टीम बताती आ रही है। हालांकि जोगी इस आरोप को सिरे से खारिज करते रहे हैं।