भारत की हवा WHO के मानकों से काफी पीछे, एलपीजी सब्सिडी योजना बढ़ाने की जरूरत

WHO के पर्यावरण, जलवायु परिवर्तन और स्वास्थ्य विभाग की निदेशक डॉ. मारिया नेइरा ने कहा कि भारत सरकार ने घरेलू वायु प्रदूषण कम करने के लिए जो योजनाएं चलाई हैं, उन्हें और अधिक बढ़ाने की जरूरत है।;

By :  DeskNoida
Update: 2025-04-16 19:30 GMT

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा है कि भारत की वायु गुणवत्ता अब भी डब्ल्यूएचओ के मानकों से काफी पीछे है और देश की बड़ी आबादी अब भी खाना पकाने के लिए बायोमास जैसे पारंपरिक ईंधनों पर निर्भर है, जिससे हर साल लोगों की मौत हो रही है।

WHO के पर्यावरण, जलवायु परिवर्तन और स्वास्थ्य विभाग की निदेशक डॉ. मारिया नेइरा ने कहा कि भारत सरकार ने घरेलू वायु प्रदूषण कम करने के लिए जो योजनाएं चलाई हैं, उन्हें और अधिक बढ़ाने की जरूरत है।

उन्होंने बताया कि एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में अब भी लगभग 41 प्रतिशत घरों में खाना बनाने के लिए बायोमास का उपयोग होता है, जिससे स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ता है। नेइरा ने कहा कि एलपीजी जैसे स्वच्छ ईंधनों की पहुंच और सब्सिडी बढ़ाकर इस स्थिति को सुधारा जा सकता है।

उन्होंने कहा कि आदर्श स्थिति यह होगी कि देश स्वच्छ और नवीकरणीय ऊर्जा की ओर शीघ्रता से बढ़े, लेकिन इसमें न्याय और समानता को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए, खासकर उन लोगों के लिए जो प्रदूषित ईंधनों पर निर्भर हैं

डॉ. नेइरा ने कहा कि वायु प्रदूषण, गैर-संक्रामक रोगों (NCDs) का एक बड़ा कारण है और इसे रोकने के लिए ठोस कदम उठाना जरूरी है। यह मुद्दा सितंबर में होने वाली संयुक्त राष्ट्र महासभा में चर्चा का विषय भी बनेगा।

उन्होंने यह भी कहा कि भारत में केवल दिल्ली ही नहीं, बल्कि लगभग पूरे देश में वायु गुणवत्ता मानकों का पालन नहीं हो रहा है। हाल में प्रकाशित एक अध्ययन का हवाला देते हुए उन्होंने बताया कि देश के कई हिस्सों में प्रदूषण स्तर काफी अधिक है, जिससे निपटने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति और मजबूत कदम जरूरी हैं।

उन्होंने भरोसा जताया कि भारत के पास इस संकट से निपटने के लिए संसाधन, तकनीक और नवाचार मौजूद हैं और देश अन्य देशों के लिए उदाहरण बन सकता है।

बच्चों के स्वास्थ्य पर पर्यावरणीय असर को पहचानने के लिए WHO द्वारा शुरू की गई ग्रीन पेज पहल की जानकारी देते हुए उन्होंने बताया कि यह टूल डॉक्टरों को बच्चों की स्वास्थ्य फाइलों में प्रदूषण से जुड़े जोखिम दर्ज करने में मदद करता है। इसका उद्देश्य डॉक्टरों को सिर्फ दवा देने तक सीमित न रखकर, पर्यावरणीय कारणों को समझने और उस पर कार्यवाही करने के लिए तैयार करना है।

उन्होंने उन स्थानीय आंदोलनों की भी सराहना की जो बेहतर हवा की मांग कर रहे हैं, खासकर वे समूह जो ग्रामीण इलाकों से शुरू हुए। 'ब्रीद लाइफ' नाम की एक वैश्विक पहल के जरिए WHO इन आंदोलनों को एक मंच पर लाने और उनके प्रभाव को बढ़ाने की कोशिश कर रहा है।

उन्होंने बताया कि हाल ही में WHO सम्मेलन में करीब 50 देशों और शहरों ने वायु गुणवत्ता सुधारने के वादे किए हैं, जिनकी निगरानी के लिए संगठन ने अलग-अलग स्तर पर प्रणाली बनाई है।

Tags:    

Similar News