वक्फ संसोधन कानून पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई! जानें कपिल सिब्बल की दलील पर सीजेआई ने क्या कहा

Update: 2025-04-16 09:51 GMT

नई दिल्ली। वक्फ संसोधन कानून पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई आज शुरू हो गई है। इस कानून के खिलाफ 73 याचिकाएं दायर की गई हैं। बता दें कि पहले यह सुनवाई तीन जजों की बेंच को करनी थी, लेकिन अब CJI संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की दो जजों की बेंच यह सुनवाई कर रहे हैं।

संशोधन असंवैधानिक है, यह मुस्लिम समुदाय के साथ भेदभाव

सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई याचिकाओं में कहा गया है कि वक्फ कानून में किया गया संशोधन असंवैधानिक है, यह मुस्लिम समुदाय के साथ भेदभाव करता है और सरकार को मनमाने फैसले लेने का अधिकार देता है। इसलिए इस एक्ट को रद्द करने और लागू करने पर रोक लगाने की मांग की गई है। कांग्रेस, जेडीयू, आम आदमी पार्टी, डीएमके, सीपीआई जैसी पार्टियों ने भी इस कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। साथ ही जमीयत उलेमा-ए-हिंद, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और कुछ एनजीओ भी इस कानून के संशोधन के खिलाफ हैं।

यह अपने आप में असंवैधानिक है

इस मामले में वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल कहा कि कलेक्टर वह अधिकारी होता है जो यह तय करता है कि कोई संपत्ति वक्फ है या नहीं। अगर कोई विवाद है, तो यह व्यक्ति सरकार का हिस्सा होता है और इस तरह वह अपने मामले में खुद ही न्यायाधीश होता है। यह अपने आप में असंवैधानिक है। इसमें यह भी कहा गया है कि जब तक अधिकारी इसका फैसला नहीं करते, तब तक संपत्ति वक्फ नहीं होगी।

संसदीय अधिनियम द्वारा मौलिक अधिकारों का सीधा हनन

हालांकि कपिल सिब्बल ने आगे कहा कि अगर कोई वक्फ स्थापित करना चाहता है तो उसे यह दिखाना होगा कि वह पांच साल से इस्लाम का पालन कर रहा है। राज्य को यह कैसे तय करना चाहिए कि वह व्यक्ति मुस्लिम है या नहीं? व्यक्ति का पर्सनल लॉ लागू होगा।

वहीं कोर्ट में कपिल सिब्बल ने कहा कि वक्फ परिषद और बोर्ड में केवल मुसलमान ही शामिल थे, लेकिन संशोधन के बाद अब हिंदू भी इसका हिस्सा बन सकते हैं। यह संसदीय अधिनियम द्वारा मौलिक अधिकारों का सीधा हनन है।

सभी मुसलमानों को अनुसूचित जनजाति माना

दरअसल, सिब्बल की दलील पर सीजेआई ने कहा कि अनुच्छेद 26 जो कि धर्मनिरपेक्ष का हवाला देता है जो सभी समुदायों पर लागू होता है। हिंदू में भी राज्य ने कानून बनाया है। संसद ने मुसलमानों के लिए भी कानून बनाया है।

इस पर सिब्बल ने कहा कि धारा 3(ए)(2)- वक्फ-अल-औलाद के गठन से महिलाओं को विरासत से वंचित नहीं किया जा सकता। इस बारे में कहने वाला राज्य कौन होता है?

इसके बाद सीजेआई ने कहा कि क्या ऐसा कोई कानून नहीं है जो कहता है कि अनुसूचित जनजातियों की संपत्ति को अनुमति के बिना हस्तांतरित नहीं किया जा सकता है? सिब्बल ने दावा किया कि मेरे पास एक चार्ट है जिसमें सभी मुसलमानों को अनुसूचित जनजाति माना गया है। वहीं फिलहाल कोर्ट में सुनवाई जारी है।

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