पीलीभीत में वरुण गांधी के रुख पर टिकीं सबकी निगाहें

Update: 2024-03-27 03:01 GMT

वरुण गांधी का टिकट कटने के बाद से चर्चाओं का दौर जारी है। वरुण पीलीभीत का चुनावी मैदान छोड़ेंगे या कोई और फैसला लेंगे, इस पर आज स्थिति स्पष्ट हो सकती है। क्योंकि पीलीभीत में आज नामांकन का अंतिम दिन है। 

पीलीभीत में भाजपा से टिकट कटने के बाद अब सबकी निगाहें वरुण गांधी के रुख पर टिकी हैं। मामले में दो दिन से वरुण खेमे की चुप्पी से अटकलों का दौर तेज हो गया है। सवाल उठ रहे हैं कि टिकट घोषित हुए बिना नामांकन प्रक्रिया शुरू होते ही चार सेट नामांकन पत्र खरीदने वाले वरुण गांधी ने रविवार को टिकट कटने के बाद से मंगलवार तक कोई प्रतिक्रिया क्यों नहीं दी?

 सोशल मीडिया से लेकर पूरे क्षेत्र तक में कोई वरुण के पक्ष में तो कोई भाजपा के पक्ष में चर्चा कर रहा है। विपक्षी नेता भी वरुण के मुद्दे पर भाजपा को घेरने में जुटे हैं। माना जा रहा है कि बुधवार को नामांकन के अंतिम दिन तस्वीर साफ होगी कि वरुण मैदान छोड़ेंगे या कोई और कदम उठाएंगे। रहस्य की यह स्थिति मेनका गांधी को सुल्तानपुर से प्रत्याशी बनाए जाने के बाद और गहराई है।

बहरहाल, जानकारों का कहना है कि वरुण अगर पीलीभीत सीट छोड़ते हैं तो यहां से वर्ष 1989 से चले आ रहे उनके परिवार के सियासी रिश्ते पर ब्रेक लग जाएगा। वहीं अगर पार्टी से बगावत कर बुधवार को नामांकन दाखिल करते हैं तो सीधा असर पीलीभीत से छह बार की सांसद रहीं व सुल्तानपुर से चुनाव लड़ने जा रहीं उनकी मां मेनका गांधी पर भी पड़ सकता है।

35 साल पुराना है इस सीट से रिश्ता

वरुण गांधी के परिवार का पीलीभीत से रिश्ता 35 साल पुराना है। वर्ष 1989 में जनता दल से मेनका गांधी ने राजनीति की शुरुआत की थी और तराई के लोगों ने मेनका को सिर-आंखों पर बैठाया और तोहफे में जीत दी। हालांकि दो साल बाद 1991 में हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा के परशुराम गंगवार से मेनका हार गईं थीं।

वर्ष 1996 में मेनका ने फिर जनता दल से चुनाव लड़कर अपनी हार का बदला लिया था। फिर वर्ष 1998 व 1999 में वह निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में जीतती रहीं। वर्ष 2004 में मेनका ने भाजपा का दामन थामा और फिर जीत हासिल की। वर्ष 2009 में उन्होंने अपनी राजनीतिक विरासत बेटे वरुण गांधी के हवाले कर दी और खुद सुल्तानपुर चली गईं।

वोटरों ने भी वरुण को हाथोंहाथ लिया और वह रिकॉर्ड मतों से जीते। राजनीति में युवाओं की पहली पसंद बन गए। वर्ष 2014 में मेनका फिर पीलीभीत से लड़कर जीतीं और वरुण सुल्तानपुर से जीते। बाद में 2019 में फिर पीलीभीत से सांसद बने। मेनका यहां से छह बार व वरुण दो बार सांसद रहे। 1996 से अब तक इनका परिवार ही लगातार काबिज है।

किसी वीआईपी सीट से उतारे भी जा सकते हैं वरुण

अपनी ही सरकार को कई बार कठघरे में खड़ा करने वाले वरुण का टिकट काटने के बाद भी भाजपा उनसे रिश्ता कायम रख सकती है। चर्चा है कि पार्टी उन्हें अवध क्षेत्र की किसी वीआईपी सीट से चुनाव मैदान में उतार सकती है। हालांकि इस बारे में ठोस कोई कुछ नहीं बोल रहा। सिर्फ वरुण व भाजपा की एक-दूसरे के बारे में कोई टिप्पणी न आने से इसकी संभावना भी कुछ लोग जता रहे हैं। ऐसे में भाजपा और वरुण दोनों के लिए बुधवार का दिन खास है।

 

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