11 दिनों बाद इंतजार हुआ खत्म! रेखा गुप्ता बनीं दिल्ली की मुख्यमंत्री, कल दोपहर लेंगी शपथ
नई दिल्ली। आखिरकार 11 दिनों के इंतजार के बाद दिल्ली को अपना मुख्यमंत्री मिल गया। रेखा गुप्ता को मुख्यमंत्री बनाए जाने की घोषणा की गई। रेखा गुप्ता कल दोपहर में शपथ लेंगी। रेखा गुप्ता दिल्ली की चौथीं महिला सीएम होंगी।
मुख्यमंत्री के रेस में करीब 15 नेताओं का नाम चल रहा था। इनको लेकर चर्चाएं गर्म थी। भाजपा के अलग-अलग ख़ेमों में भावी मुख्यमंत्री के नाम का अनुमान लगाया जा रहा था। देर शाम विधायक दल की बैठक के बाद इंतजार की घड़ी समाप्त हुई और मुख्यमंत्री के नाम का ऐलान कर दिया गया। पर्यवेक्षक बनाए गए रवि शंकर प्रसाद और ओपी धनखड़ ने मुख्यमंत्री के नाम का प्रस्ताव रखा। इसके बाद मुख्यमंत्री के नाम की घोषणा कर दी गई। इस मौके पर भाजपा के तमाम नवनिर्वाचित 48 विधायक मौजूद रहे।
विधायकों का आना शाम 5 बजे से ही शुरू हो गया था। शाम 7:00 बजे तक हाल विधायकों से भर चुका था। रात 8:00 बजे तक सब की धक-धकी बनी रही कि कौन दिल्ली की सत्ता पर बैठेगा? इस दौरान सीएम के नाम का अनुमान लगाने का दौर जारी रहा। रात 8 बजकर दस मिनट पर सीएम के नाम की घोषणा की गई। इससे पहले सीएम के नाम का अनुमान लगाया जाता रहा। अंतिम समय में रेखा गुप्ता का नाम आगे चल रहा था। प्रवेश वर्मा ने रेखा गुप्ता के नाम का प्रस्ताव रखा।
जानें 1993 से 2025 तक दिल्ली पर किसका कब्जा रहा
1993 में बीजेपी सरकार के पूरे कार्यकाल में तीन सीएम बने1991 के दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी अधिनियम के तहत विधानसभा बनी थी। 1992 में परिसीमन होने के बाद 1993 में दिल्ली में विधानसभा के चुनाव के बाद दिल्ली को एक निर्वाचित विधानसभा और मुख्यमंत्री मिला। वहीं नई गठित विधानसभा में भाजपा ने बाजी मारी। उस दौरान बीजेपी के मदनलाल खुराना दिल्ली के मुख्यमंत्री बने थे। उन्होंने दिल्ली को पूर्ण राज्य के दर्जे पर चुनाव लड़ा था और उन्होने जीत हासिल की थी। इस चुनाव में बीजेपी ने 70 में से 49 सीटें जीती थीं और उसे 42.80 फीसदी वोट मिले थे। जबकि कांग्रेस को 34.50 फीसदी और जनता दल को 12.60 फीसदी वोट मिले थे।
हालांकि, खुराना 26 फरवरी 1996 तक ही मुख्यमंत्री रह सके थे।उनकी जगह साहिब सिंह वर्मा सीएम बने थे। लेकिन चुनाव से पहले उनकी भी कुर्सी नहीं रही थी। हालांकि12 अक्तूबर 1998 को सुषमा स्वराज मुख्यमंत्री बनीं थी। लेकिन इसी साल हुए चुनाव में बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा था।। वहीं 1998 में दिल्ली में फिर से कांग्रेस लौटी थी, जिसके बाद 15 साल तक एक ही मुख्यमंत्री का कब्जा दिल्ली पर रहा। वहीं 1998 में भाजपा के हार की प्याज के बढ़े हुए दामों को बोला गया है। इसके बाद ही दिल्ली की मुख्यमंत्री बनीं शीला दीक्षित बनी थी।
उनके नेतृत्व में कांग्रेस ने बंपर जीत हासिल की। कांग्रेस को 52, भाजपा को 15, जनता दल को एक और निर्दलीयों को दो सीटें मिलीं। यहां तक कि शीला दीक्षित का करिश्मा 2003 और 2008 में भी कायम रहा था। 2003 में कांग्रेस को 47 और बीजेपी को 20 सीटें मिलीं थी। जबकि 2008 में भी भाजपा सत्ता से दूर रही थी। इस चुनाव में कांग्रेस को 43, और बीजेपी को 23 और बसपा को दो सीटें मिलीं थी। कांग्रेस ने इन दोनों चुनावों में अपने विकास कार्यों, मेट्रो प्रोजेक्ट और औद्योगिक क्षेत्र में मजदूर वर्ग को बढ़ावा देने के चलते जबरदस्त जीत हासिल हुई।
2008 की जीत के बाद कांग्रेस की दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार दोनों ही विवादों में घिर गईं। अरविंद केजरीवाल समेत उनकी आम आदमी पार्टी का उदय भी इसी आंदोलन के बाद हुआ था। जहां आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस से कई सीटें छीन लीं। आम आदमी पार्टी ने शानदार प्रदर्शन किया लेकिन बहुमत से काफी दूर रही। 31 सीटों के साथ भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। आप को 28 और कांग्रेस को महज 8 सीटें ही मिलीं। आप ने कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाई थी। लेकिन ये सरकार महज 49 दिन तक ही चली थी।
2015 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल की अगुवाई में आप ने प्रचंड बहुमत हासिल कर नया इतिहास रचा। उसने 70 में से 67 सीटें जीतकर भाजपा-कांग्रेस का सूपड़ा पूरी तरह साफ कर दिया था। अरविंद केजरीवाल दोबारा सीएम बने। 2020 में हुए विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने एक बार फिर 70 में से 62 सीटों पर जीत दर्ज की थी। 2020 में कांग्रेस का वोट प्रतिशत 5.44 फीसदी और गिर गया। पार्टी को 2015 की तरह ही 2020 के विधानसभा चुनाव में भी कोई सीट नहीं मिली।