पूर्व ISRO प्रमुख के. कस्तूरीरंगन का 84 वर्ष की उम्र में बेंगलुरु में निधन, देश को दी अपार वैज्ञानिक विरासत

Update: 2025-04-25 11:27 GMT

नई दिल्ली (शुभांगी)। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के पूर्व अध्यक्ष और प्रतिष्ठित वैज्ञानिक डॉ. के. कस्तूरीरंगन का 84 वर्ष की आयु में बेंगलुरु में निधन हो गया। उन्होंने अपने पीछे एक अद्वितीय वैज्ञानिक विरासत और प्रेरणादायक योगदान की लंबी सूची छोड़ी है, जिसने भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम को एक नई दिशा दी।

उपग्रहों का विकास और प्रक्षेपण हुआ

डॉ. कस्तूरीरंगन ने 1994 से 2003 तक ISRO के अध्यक्ष पद पर रहते हुए भारत के अंतरिक्ष मिशन को वैश्विक पहचान दिलाई। उनके नेतृत्व में INSAT-2 सीरीज और IRS-1A, 1B जैसे नए पीढ़ी के उपग्रहों का विकास और प्रक्षेपण हुआ। उन्होंने IRS-1C और IRS-1D जैसे विश्वस्तरीय नागरिक उपग्रहों की परिकल्पना और साकार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके मार्गदर्शन में INSAT उपग्रहों की दूसरी पीढ़ी पूरी हुई और तीसरी पीढ़ी की शुरुआत हुई।

उपग्रह प्रक्षेपण कार्यक्रम की बना रीढ़

उन्होंने न केवल सैटेलाइट्स के विकास में योगदान दिया बल्कि भारत के रॉकेट प्रक्षेपण तकनीक को भी सुदृढ़ किया। उनके कार्यकाल में ही Polar Satellite Launch Vehicle (PSLV) का सफल उपयोग हुआ, जो आज भी भारत के उपग्रह प्रक्षेपण कार्यक्रम की रीढ़ बना हुआ है। साथ ही, उन्होंने Geosynchronous Satellite Launch Vehicle (GSLV) की पहली सफल उड़ान परीक्षण को भी साकार किया, जो भारत के लिए भारी उपग्रहों के प्रक्षेपण की दिशा में एक बड़ी उपलब्धि थी।

छह पुस्तकों का संपादन किया

समुद्री अवलोकन के लिए महत्वपूर्ण IRS-P3 और IRS-P4 उपग्रहों का प्रक्षेपण भी उनके ही कार्यकाल में हुआ।

मुंबई विश्वविद्यालय से भौतिकी में स्नातक और स्नातकोत्तर करने के बाद, उन्होंने अहमदाबाद स्थित भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला (PRL) से उच्च ऊर्जा खगोलशास्त्र में डॉक्टरेट प्राप्त किया। उनके वैज्ञानिक योगदान की महत्ता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने 200 से अधिक शोध पत्र लिखे और छह पुस्तकों का संपादन किया। भारत सरकार ने उनके अभूतपूर्व योगदान के लिए उन्हें पद्म श्री, पद्म भूषण और पद्म विभूषण जैसे सर्वोच्च नागरिक सम्मान प्रदान किए।

शिक्षा और विज्ञान नीति में भी एक प्रेरणास्रोत रहे

डॉ. कस्तूरीरंगन ने विज्ञान के साथ-साथ शिक्षा क्षेत्र में भी अपनी गहरी छाप छोड़ी। वे नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) के मसौदा समिति के अध्यक्ष थे। इसके अलावा वे जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के कुलाधिपति और कर्नाटक ज्ञान आयोग के अध्यक्ष भी रहे।

राजनीतिक क्षेत्र में भी उन्होंने सेवा दी। वे 2003 से 2009 तक राज्यसभा के सदस्य रहे और भारत के योजना आयोग में भी सदस्य के रूप में काम किया। वर्ष 2004 से 2009 तक उन्होंने नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडीज, बेंगलुरु के निदेशक के रूप में कार्य किया। डॉ. के. कस्तूरीरंगन न केवल भारत के अंतरिक्ष इतिहास में बल्कि शिक्षा और विज्ञान नीति में भी एक प्रेरणास्रोत रहेंगे। उनका योगदान आने वाली पीढ़ियों के लिए मार्गदर्शक बना रहेगा।

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