यात्रा संस्मरण: जब जाना दुबई और अन्य अरब देशों में खूबसूरत हरियाली का राज, काश! भारत में भी...

Update: 2024-09-18 09:35 GMT

सिंदबाद ट्रैवल्स-3

दुबई- डिपार्टमेंटल स्टोर्स, हरियाली का राज

अगले दिन मैं सुबह जल्द ही उठ कर तैयार हो गया क्योंकि दुबई में लोग 9-10 बजे तक अपने ऑफिस पहुंच जाते हैं और फिर दोपहर 12 से 4 बजे तक सारा कार्य व्यापार बन्द रहता है तथा शाम को 4 से ७ अथवा 8 बजे तक काम का समय रहता है। आज टैक्सी लेकर मैंने पहले 'वाफी' की तरफ जाने का कार्यक्रम बनाया। वहां बीड्स के कुछ व्यापारी थे उनके गया तथा कुछ और शो रूम्स में भी गया किन्तु नतीजा वही था ढाक के तीन पात। दुबई में एक बहुत बड़ा मॉलनुमा बाजार था अल गरुरे-मैं जब वहां पहुंचा तो जैसे एक बार तो भौंचक्का रह गया क्योंकि तब तक अपने भारत में तो मॉल कल्चर आया नहीं था और ये मैंने पहला ऐसा कोई बाजार देखा था। बड़ी बड़ी दुकानें, तरह तरह के ब्रांड्स आदि। ये सब मुझे तो एक सपनों की दुनिया सा लग रहा था। दुबई की एक और प्रसिद्ध चीज थी और वो थी टी0 चौथाई राम नाम से डिपार्टमेंटल स्टोर। ये बहुत बड़ा डिपार्टमेंटल स्टोर था और उस समय शायद संपूर्ण अरब क्षेत्र में ये सबसे बड़े डिपार्टमेंटल स्टोरों में था और अपने देश में तो शायद उस समय ऐसा और इतना बड़ा कोई डिपार्टमेंटल स्टोर और उसकी चेन नहीं ही थी, कम से कम मेरी जानकारी में तो नहीं ही थी और हां उस डिपार्टमेंटल स्टोर में शायद दुनिया की अधिक संख्या चीजें उपलब्ध थीं और वो भी बहुत ही मुनासिब दामों पर। दुबई का एक और बाजार था और जो कि वहां का प्रमुख बाजार था वो था दुबई म्यूज़ियम के पीछे। ये बहुत बड़ा बाजार था लगभग दिल्ली के लाजपत नगर के बाज़ार जैसे और इसमें सभी प्रकार की दुकानें थीं। इस बाज़ार से मैंने एक वीडियो कैमरा खरीदा जो उस समय के सबसे एक विशेष चीज थी। जब मुझे दिन में भूख लगी तो वैसे तो वहाँ सभी प्रकार का भारतीय भोजन उपलब्ध था जैसे दक्षिण भारतीय व्यंजन के लिए "दास प्रकाश" उत्तर भारतीय के लिए "चोटीवाला" आदि इत्यादि लेकिन मैंने फला-फल खाई। फला-फल एक तरह की रोटी होती है जिसमें अंदर सब्जी भरी होती है और उस रोटी को सब्जी भर के रोल किया होता है। ये एक लबे नामी व्यंजन है। मेरे लिए नया व्यंजन होने के अतिरिक्त मुझे को ये दो और वजह से भी बहुत अच्छी लगी एक तो ये शाकाहारी थी और मैं भी शुद्धशाकाहारी हूं-अंडा भी नहीं खाता, दूसरे ये सस्ती भी थी और स्वादिष्ट भी।

एक और बात जिसने मेरा ध्यान आकृष्ट किया वो थी दुबई की हरियाली। परूशहर में, चौड़ी चौड़ी सड़कों किनारे खूब हरियाली और पेड़ थे। जब मैं कहीं पैदल जा रहा था तो मैंने गौर किया कि इन पेड़ों और हरियाली के पास जाने पर एक अजीब सी गंध आती है। इस विषय में जब जानकारी की तो मालमू पड़ा कि वहां इस सब हरियाली की सिंचाई के लिए वो लोग सीवर के पानी को प्रोसेस करके उसका उपयोग करते हैं जिस कारण उन पेड़ों आदि के पास जाने पर कुछ गंध सी महससू होती थी। वहां सिंचाई का कुछ ऐसा सिस्टम दिखा कि एक निश्चित समय पर छोटे छोटे स्प्रिंकलर जो वहीं छिपे हुए से लगे होते हैं उनसे थोड़ी देर को पानी स्वत: ही चालू हो जाता और फिर बन्द भी हो जाता। मैं दुबई में और अन्य अरब देशों में भी वहां की हरियाली और उसके प्रति वहां की सरकार की चेतना और व्यवस्था से बहुत प्रभावित हुआ। मेरे मन में लगातार ये बात आ रही थी कि हमारे देश में हम लोग कि इतने खुशकिस्मत हैं कि हमारे यहाँ गर्मी है जाड़ा है बसंत है और बरसात भी है हरियाली भी किन्तु हम को इन मौसमों की आनंददायक खूबसूरती और अपने सुंदर मनोरम पर्यावरण की सही कद्र नहीं है तभी यहां मैं ये सोचने पर मजबूर था कि इन अरब देशों के policy makers और उनको लागू करने वाले अपने काम के प्रति कितने निष्ठावान,अपने पर्यावरण के प्रति कितने जागरूक हैं कि इन्होंने अपने रेगिस्तान में भी हरियाली खड़ी कर ली और एक हमारे यहां का हाल है कि हम लोग वर्षों से जाति , धर्म, भाषा, क्षत्रेवाद आदि के झगड़ों को प्राथमिकता दे रहे हैं और पर्यावरण को इतना नज़र अंदाज़ कर रहे हैं कि ना जाने कितने हिस्से और इलाके जो हरे भरे होते थे वो आज रेगिस्तानों में तब्दील होते जा रहे हैं।

अगले अंक में चर्चा है दुबई में भगवान के मंदिर की और मथुरा की यमुना जी की याद करने वाले विश्राम घाट की...

लेखक अतुल चतुर्वेदी भारत से काँच हस्तशिल्प उत्पादों के पहले निर्माता निर्यातक एवं प्रमुख उद्योगपति है। प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता, इतिहास, संस्कृति, सामाजिक मुद्दों, सार्वजनिक नीतियों पर लेखन के लिए जाने जाते हैं। तीन दशक से अधिक वैश्विक यात्राओं के साक्षी।


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