राजनीतिक परिपाटी बनाते और तोड़ते रहे हैं उत्तराखंड के मतदाता, एक ही दल पर पूरा भरोसा

By :  SaumyaV
Update: 2024-03-17 04:02 GMT

 देश में मतदान प्रतिशत में अव्वल गुजरात के बाद उत्तराखंड दूसरा राज्य रहा है, जो इस बार 75 प्रतिशत मतदान के लक्ष्य को साधकर नया कीर्तिमान गढ़ने को बेताब है। 

कोशिश भी कर, उम्मीद का रास्ता भी चुन, फिर थोड़ा मुकद्दर तलाश कर... लोकसभा चुनाव की रणभेरी बजते ही ये पंक्तियां उन घोषित और संभावित उम्मीदवारों पर सटीक बैठती हैं, जो मतदाताओं का दिल जीतने की भरसक कोशिश में ताल ठोकेंगे। उम्मीदवार पहाड़ की कठिन चढ़ाई और तराई-भाभर का मैदान मारने की हसरत लिए संसद की राह तलाशने की उम्मीद सजोएंगे।

पांच लोकसभा सीट वाले उत्तराखंड के मतदाता कई मायनों में अपनी अलग पहचान रखते हैं। देश में मतदान प्रतिशत में अव्वल गुजरात के बाद उत्तराखंड दूसरा राज्य रहा है, जो इस बार 75 प्रतिशत मतदान के लक्ष्य को साधकर नया कीर्तिमान गढ़ने को बेताब है। बीते तीन लोकसभा चुनावों के नतीजे देखें तो मतदाताओं ने पांचों लोकसभा सीटों पर एक जैसा फैसला सुनाया है। बीते दो चुनावों 2014 और 2019 में भाजपा के सभी उम्मीदवारों को संसद भेजा। 2009 में ऐसा ही मौका कांग्रेस को दिया था। राज्य गठन से पहले और बाद में कई बार ऐसे मौके भी आए, जब मतदाताओं ने अपनी गढ़ी परिपाटी को एक झटके में तोड़ा भी है।

छोटे राज्य की राजनीतिक सोच और नजरिया लंबे समय से दो दल भाजपा-कांग्रेस के करीब ही रहा है। क्षेत्रीय दलों ने खुद को ज्यादा करीब साबित करने के लिए स्थानीय और भावनात्मक मुद्दों के साथ मजबूत उम्मीदवारों को भी उतारा, लेकिन आम मतदाताओं की अंगुली राष्ट्रीय दलों के बटन पर ही आकर रुकी। हां... 2012 के परिसीमन से पहले और राज्य गठन के बाद 2004 में हरिद्वार से समाजवादी पार्टी के सांसद को भी संसद पहुंचाया।

एक समय ऐसा भी था जब यहां के मतदाता राज्य में एक दल की सरकार बनाते और सांसद दूसरे दल का चुनकर भेजते। 2002 में राज्य में कांग्रेस की सरकार थी, लेकिन पांच में तीन सांसद भाजपा के जीते। 2009 में भाजपा की सरकार बनी, लेकिन उसके सभी सांसद उम्मीदवार हार गए। 2014 में राज्य में कांग्रेस की सरकार थी, बावजूद उसके उसका कोई भी उम्मीदवार नहीं जीत सका।

मतदाताओं का मिजाज भांपने में भाजपा कुछ मायनों में आगे रही है। शायद यही कारण है कि लोगों ने अपनी बनाई रणनीति और परंपरा को तोड़ना बेहतर समझा। राज्य में पांच-पांच साल का फार्मूला भाजपा को जिताकर तोड़ा। 2019 में भाजपा के पांचों सांसदों को पुन: जिताकर भेजा, जबकि राज्य में भाजपा की सरकार थी।

पौड़ी

इस लोकसभा क्षेत्र में आने वालीं 14 विधानसभा सीटों में भाजपा के पास 13 हैं। कांग्रेस के पास एक मात्र बदरीनाथ सीट है। इस लोकसभा सीट में एक विधानसभा नैनीताल जिले की रामनगर भी शामिल है। इस सीट पर कांग्रेस ने भाजपा से पहले अपने उम्मीदवार गणेश गोदियाल की घोषणा की थी। भाजपा ने इस सीट पर इस बार तीरथ सिंह रावत की जगह राज्यसभा सांसद रहे अनिल बलूनी को उम्मीदवार बनाया है। लोकसभा के जातीय गणित और मतदाताओं के ब्राह़मण-ठाकुर फार्मूले में यहां ठाकुर मतदाता निर्णायक माने जाते हैं। भाजपा और कांग्रेस दोनों ही उम्मीदवार ब्राह़मण हैं।

टिहरी

लोकसभा क्षेत्र की 14 में से दो विधानसभा सीट कांग्रेस के पास हैं। इस लोकसभा क्षेत्र की आधी यानि 7 सीट देहरादून जिले में आती हैं। पहाड़ के साथ देहरादून के मतदाता भी निर्णायक की भूमिका में रहते हैं। देहरादून में मिश्रित आबादी और यूपी के सहारनपुर जिले से सटे होने के कारण विकासनगर, सहसपुर, कैंट का कुछ हिस्सा, राजपुर और रायपुर मुस्लिम आबादी का भी प्रतिनिधित्व करते हैं। हालांकि शहरी आबादी का फायदा भाजपा को ही मिलता रहा है। भाजपा ने यहां राजघराने पर भरोसा जताते हुए फिर से माला राज्यलक्ष्मी को उम्मीदवार बनाया है। कांग्रेस ने टिहरी में वरिष्ठ नेता और मसूरी के पूर्व विधायक जोत सिंह गुनसोला को आजमाया है।

हरिद्वार

लोकसभा क्षेत्र की 14 विधानसभा क्षेत्रों में से भाजपा के पास मात्र छह विधानसभा क्षेत्र हैं। जबकि अन्य आठ में कांग्रेस के पास पांच, दो बसपा और एक निर्दलीय विधायक जीतकर पहुंचे। भाजपा ने हरिद्वार में भी बदलाव किया है। दो बार के सांसद रमेश पोखरियाल निशंक की जगह पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को उतारा है। परिसीमन के बाद इस लोकसभा क्षेत्र का भी राजनीतिक मिजाज बदला है। यहां आने वाले ऋषिकेश, धर्मपुर और डोईवाला विधानसभा क्षेत्रों में पहाड़ी मतदाता निर्णायक माना जाता है, जहां भाजपा खुद को सहज मानती है। जबकि हरिद्वार की मैदानी सीटों पर अल्पसंख्यक और दलित मतदाता बड़ा फैक्टर बनता है। इस वोट बैंक को साधने के लिए भाजपा कांग्रेस के अलावा सपा, बसपा, और निर्दलीय भी जोरआजमाइश करते हैं। कांग्रेस अभी तक यहां उम्मीदवार नहीं उतार पाई है। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत प्रबल दावेदार हैं, लेकिन पार्टी अन्य विकल्प भी देख रही है।

अल्मोड़ा-पिथौरागढ़

राज्य की सुरक्षित लोकसभा सीट पर इस बार भाजपा कांग्रेस ने टम्टा बिरादरी से चिर प्रतिद्वंद्वी उतारे हैं। भाजपा के अजय टम्टा तीसरी बार से मैदान में हैं, जबकि राज्यसभा सांसद रहे प्रदीप टम्टा पर कांग्रेस ने पुन: भरोसा जताया है। बड़े क्षेत्रफल वाली इस सीट पर भाजपा दोनों चुनाव जीती है, लेकिन पांचों में जीत का अंतर सबसे कम रहा है। इस लोकसभा क्षेत्र में भाजपा के नौ विधायक हैं, जबकि कांग्रेस के पांच विधायक जीतकर आए हैं।

नैनीताल- ऊधमसिंह नगर

यह लोकसभा सीट मैदानी और पहाड़ी इलाके का प्रतिनिधित्व करती है। दो बड़े जिले नैनीताल और ऊधमसिंह नगर इस लोकसभा के तहत आते हैं। भाजपा ने एक बार फिर केंद्रीय राज्य मंत्री अजय भट्ट को उम्मीदवार बनाया है। जबकि कांग्रेस अभी तक इस सीट पर भी उम्मीदवार तय नहीं कर पाई है। इस सीट के लिए कांग्रेस युवा उम्मीदवारों पर विचार कर रही है। नैनीताल सीट कभी कांग्रेस का गढ़ था, लेकिन भाजपा ने जब से जीत दर्ज कराई है तब से कांग्रेस के दिग्गज भी वापसी नहीं करा सके हैं। लोकसभा क्षेत्र की 14 सीटों में यहां भी नौ भाजपा के पास और पांच कांग्रेस के पास हैं।

Tags:    

Similar News