राज्यपाल बोले-राम आपके भी, हमारे भी हैं...अयोध्या में सैन्य प्रशिक्षण के इस खास अनुभव को किया साझा
राज्यपाल ले.ज. गुरमीत सिंह ने अयोध्या से जुड़ी अपनी यादें साझा कीं। उन्होंने कहा-राम आपके भी हैं, राम हमारे भी हैं। बताया कि संयोग से एक युवा अधिकारी होने से मुझे हमारी यूनिट में आने वाले सैन्य अफसरों को अयोध्या में दर्शन करवाने के लिए समन्वयक की जिम्मेदारी भी मिली थी।
मेरा अयोध्या से विशेष नाता रहा है, जब मैंने अपनी सैन्य सेवा प्रारंभ की तो मेरी पहली तैनाती फैजाबाद में ही हुई थी। अयोध्या में अपनी सेवाएं देने के बाद मुझे श्रीलंका में सेवाएं देने का मौका मिला। मेरे मन में यह बात हमेशा रही कि एक प्रकार से राम की नगरी में मिले सैन्य प्रशिक्षण का लाभ मुझे श्रीलंका की युद्धभूमि में मिला |
इसी पवित्र भूमि से मैंने सैनिक के रूप में जीवन शुरू किया था। संयोग से एक युवा अधिकारी होने से मुझे हमारी यूनिट में आने वाले सैन्य अफसरों को अयोध्या में दर्शन करवाने के लिए समन्वयक की जिम्मेदारी भी मिली। जब मुझे यह अवसर मिला तो मैंने सोचा की मुझे इस स्थल के बारे में अधिक से अधिक जानकारी प्राप्त करनी चाहिए, जिसे मैं अपने अफसरों और उनके परिवार संग भ्रमण के दौरान साझा कर सकूं।
मैंने अपने अध्ययन से प्राप्त जानकारी के अनुसार, हनुमान गढ़ी, कनक भवन, देवकाली मंदिर, रामकी पैड़ी, सरयू घाट आदि स्थानों के विषय में पूरी जानकारी प्राप्त की और अयोध्या की महिमा का अनुभव किया। उस समय भी रामलला को उनकी वास्तविक स्थान पर न देखने की टीस मन में रहती थी, यही कारण है कि अयोध्या मेरे हृदय के इतने पास है।
सिख पंथ में भी प्रभु श्रीराम अत्यंत पूजनीय
अब लंबे संघर्ष और प्रतीक्षा के बाद अवधपुरी में प्रभु का भव्य और दिव्य मंदिर बन रहा है। रामलला की गर्भगृह में प्राण प्रतिष्ठा के साथ ही हम सबकी मनोकामना पूर्ण हो जाएगी। अयोध्या दर्शन में घाटों का बड़ा महत्व है। पवित्र सरयू नदी के तट पर नया घाट, गुप्तार घाट, रामघाट, लक्ष्मण घाट, जैसे कई घाट हैं, परंतु गुप्तार घाट का महत्व विशेष माना जाता है।
यही वो स्थान है, जहां प्रभु श्रीराम जल समाधि लेकर गुप्त हो गए थे, इसीलिए इस स्थान को गुप्तार घाट के नाम से जाना जाता है। हमारी आर्मी ड्रिल भी गुप्तार घाट और आसपास की जाती थी, इसलिए यह स्थान मेरे लिए सदा अविस्मरणीय रहा है। मैंने जाना कि प्रभु श्रीराम सिख पंथ में भी अत्यंत पूजनीय हैं। गुरु अर्जन देवजी ने गुरु ग्रंथ साहिब में गुरु अवतारों की गणना करते हुए श्रीरामचंद्र जी को प्रभु स्वरूप लिखा है।
एक गुरुबानी में लिखा गया है कि जिह घटि सिमरनु राम को सो नरु मुकता जानु॥ तिहि नर हरि अंतरू नही नानक साची मानु॥ अर्थात हे भाई! जिस मनुष्य के हृदय में परमात्मा स्वरूप श्रीराम का स्मरण रहता है, वह मनुष्य मोह के जाल से बचा हुआ है। यह बात समझ लें कि प्रभु की सच्ची भक्ति करने से मनुष्य और परमात्मा में कोई फर्क नहीं रह जाता।
रामजी की तरह ही अंत्योदय की सोच जरूरी
आज स्मरण होता है निहंग सिख फकीर सिंह जी का, जिन्होंने 1858 में अपने 25 जांबाज साथियों के साथ राम जन्मभूमि में प्रभु श्रीराम की पूजा अर्चना शुरू की थी, जिन्हें जबरन अंग्रेजी हुकूमत ने वहां से बाहर निकाला था। आज भी हम सब फकीर सिंह को रामलला के सिपाही के रूप में याद करते हैं। मैं राज्यपाल के रूप में 2021 में उत्तराखंड पहुंचा।
मैंने जाना कि हमारी देवभूमि से भी रामजी का संबंध रहा है। महाराज दशरथ ने संतान प्राप्ति के लिए सरयू नदी पर अनुष्ठान किया, जिसका उद्गम स्थल बागेश्वर जिले में है। मान्यता श्रीराम के देवप्रयाग के रघुनाथ मंदिर में यज्ञ और तप करने की भी है। श्रीराम की महिमा अपरंपार है। राम आपके भी हैं, राम हमारे भी हैं।
और साथ ही हम सभी के अंदर भी राम हैं। हम सबको अपने अंदर के राम को जागृत करने का प्रयास करना चाहिए, हमें प्रभु श्रीराम की तरह ही आचरण करने का प्रयास करना चाहिए। साथ ही नीति निर्धारण और क्रियान्वयन के समय रामजी की तरह ही अंत्योदय की सोच रखनी चाहिए।