गाजियाबाद लोकसभा सीट पर किसका रहा दबदबा, जाने सीट का पूरा गणित
गाजियाबाद। गाजियाबाद में वोटिंग दूसरे चरण के तहत 26 अप्रैल को होगी। गाजियाबाद लोकसभा सीट वीआईपी सीट मानी जाती है। देखा जाये तो 1957 में हुए पहले लोकसभा चुनाव के वक्त गाजियाबाद का क्षेत्र हापुड़ लोकसभा सीट में आता था। हापुड़ लोकसभा सीट के साथ जोड़कर देखें तो अभी तक इस सीट पर 7 बार बीजेपी का तो 5 बार कांग्रेस का कब्जा रहा है।
गाजियाबाद लोकसभा सीट सभी पार्टियों के लिए महत्वपूर्ण रही है क्योंकि यह दिल्ली से सटी हुई है। इस लोकसभा सीट के तहत चार विधानसभा क्षेत्र लोनी, साहिबाबाद, गाजियाबाद और मुरादनगर के अलावा धौलाना विधानसभा का आंशिक क्षेत्र आता है। जिले में इस बार 29 लाख से अधिक मतदाता वोट डालेंगे। जब हापुड़ लोकसभा के तहत गाजियाबाद की जनता वोटिंग करती थी, तो शुरुआत के दिनों में कांग्रेस का बोलबाला था।
इस लोकसभा सीट की जनता को 1957 में अपना सांसद चुनने का मौका मिला। कांग्रेस पार्टी के कृष्णचंद शर्मा पहले सांसद बने थे। फिर 1962 में कमला चौधरी (कांग्रेस), 1967 में प्रकाशवीर शास्त्री स्वतंत्र प्रत्याशी के तौर पर संसद पहुंचे। 1971 में बीपी मौर्य (कांग्रेस) से चुनकर लोकसभा पहुंचे लेकिन जनता पार्टी के बैनर तले 1977 में कुंवर महमूद अली भारतीय लोकदल की टिकट पर संसद पहुंचे। इस तरह यहां कांग्रेस का विजयरथ थम गया । 1980 में अनवर अहमद जनता पार्टी सेक्युलर, 1984 में केएन सिंह कांग्रेस, 1989 में केसी त्यागी जनता दल, 1991 से 1999 तक चार बार डॉ. रमेश चंद तोमर चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे लेकिन 2004 में एक बार फिर कांग्रेस के सुरेंद्र कुमार गोयल ने जीत हासिल की।
परिसीमन के बाद भाजपा का दबदबा
2008 के परिसीमन के दौरान हापुड़ जिले के धौलाना क्षेत्र और लोनी विधानसभा क्षेत्र को मिलाकर गाजियाबाद लोकसभा सीट का गठन किया गया जबकि हापुड़ का अधिकांश क्षेत्र मेरठ लोकसभा सीट के तहत चला गया। गाजियाबाद जिले का मोदीनगर तहसील का एरिया बागपत लोकसभा सीट में शामिल किया गया। अगर हम पिछले 2009, 2014 और 2019 के लोकसभा के बीजेपी, कांग्रेस और सपा के वोटिंग प्रतिशत की तुलना करें तो 2009 की तुलना में 2014 में कांग्रेस के वोट बैंक में 18.16 फीसदी की गिरावट आई। जबकि बसपा के वोट बैंक में 8.84 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई। तो वहीं बीजेपी के वोटबैंक में 13.17 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई।
अब 2014 के लोकसभा की तुलना 2019 के करने पर आंकड़े बताते है कि कांग्रेस के वोट बैंक में 6.91 फीसदी की गिरावट आई। जबकि बीजेपी के वोट बैंक में 5.45 फीसदी की बढ़ोतरी हुई। 2019 के लोकसभा का चुनाव सपा और बसपा ने मिलकर लड़ा था तो वोट बैंक में 21.09 फीसदी की बढ़ोतरी हुई थी। पीएम के रोड शो के बाद देखा जाये तो ये सीट फिर वीवीआईपी हो गई है।