जेल में भोजन बनवाने में करते थे मदद, रात को गाते थे रामभजन, कारसेवक बोले- अब सपना हुआ साकार

By :  SaumyaV
Update: 2024-01-11 06:50 GMT

संभल जिले के बबराला निवासी कारसेवकों ने बताया कि 22 जनवरी उनके लिए खुशी वाला दिन होगा। इसके लिए 1992 में कई दिनों तक संघर्ष किया था। राम मंदिर के लिए आंदोलन करने पर पुलिस ने उन्हें कई दिन तक जेल में रखा था। 

अयोध्या में श्रीराम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा 22 जनवरी को होनी है। अयोध्या से लेकर देश के कोने में इसे उत्सव के रूप में मनाने की तैयारी जोरों पर चल रही है। रामभक्तों की टोलियां घर घर अक्षत बांट रही है। सभी से 22 जनवरी को दिन दीपक जलाकर दिवाली मनाने की अपील की जा रही है। 

लोगों में भी उत्साह है। राम मंदिर आंदोलन के लिए संघर्ष करने वाले कारसेवक इस दिन का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं। उनके मन के अंदर की खुशी छुपाए नहीं छुप रही है। कारसेवक संघर्ष के दिनों को याद कर भावुक हो जाते हैं। उनका कहना है कि उस समय देश में भर राम लहर थी।

हर कोई प्रभु राम के आंदोलन में अपना सब कुछ न्योछावर करने को तैयार था। आखिरकार वह खुशी का पल आ ही गया। जिसके लिए देश के हर नागरिक ने संघर्ष किया था। 22 जनवरी हमारे जीवन का सबसे खुशी का दिन होगा। इस खुशी को शब्दों में बयां नहीं कर सकते हैं।

जेल में कम पड़ गया था भोजन

बबराला के कारसेवक अरुणकांत वार्ष्णेय ने बताया कि श्रीराम मंदिर के जेल भरो आंदोलन के दौरान सितंबर 1990 में मुझे व अन्य साथियों को पुलिस ने गुन्नौर से गिरफ्तार कर लिया था। यहां से कारसेवकों को पुलिस ने डंपर में बैठाकर पीलीभीत जेल भेज दिया गया था। जेल में पहुंचने के तीन बाद ही ही वहां कारसेवकों की भीड़ अधिक होने के चलते खाने का अभाव हो गया था।

एक दिन सभी को भूखा रहना पड़ा था। वहां कारसेवकों ने हंगामा शुरू कर दिया। दो तीन दिन तक जेल में रुखा सूखा खाना मिला। बाद में प्रशासन की ओर से जेल में खाने की व्यवस्था कराई दी गई थी। भीड़ अधिक थी, इस कारण हम जेल में खाना बनवाने में मदद करते थे।

जेल में कारसेवक रामधुन व रामायण के भजन गाते थे। लगातार भीड़ बढ़ने पर अक्तूबर माह के दूसरे सप्ताह में 19 दिन के बाद जेल प्रशासन ने रोडवेज बसों की व्यवस्था कर सभी को घर भिजवा दिया था। -

ट्रेन द्वारा अयोध्या से बबराला पहुंचने में लगे थे तीन दिन

कारसेवक मणिकांत वार्ष्णेय के मुताबिक श्रीराम मंदिर आंदोलन में बबराला से 17 कारसेवकों की टोली तीन दिसंबर 1992 को ट्रेन से अयोध्या रवाना हुई थी। वहां चार दिसंबर की सुबह अयोध्या पहुंचकर कारसेवकपुरम में रुके थे। दो दिन रामभक्ति में बीते थे। हर ओर जय श्री राम के नारे, प्रभु राम के भजन सुनाई देते थे। छह दिसंबर को रामलला के स्थल पर सभा हुई थी।

उस दिन की पूरी घटना मेरी आंखों के सामने हुई। इसके बाद सात दिसंबर 1992 को रामलला का चबूतरा बनाया जाना था। उस दिन चबूतरे में 11 ईंटें मैंने भी रखी थी। पूरी अयोध्या में दिवाली जैसा उत्सव था। प्रशासन ने सभी को वहां से वापस जाने के निर्देश दिए। हमारी ट्रेन आठ दिसंबर की दोपहर अयोध्या से रवाना हुई थी।

सुरक्षा को लेकर जगह जगह पुलिस, पीएसी तैनात थी। रुकते-रुकते ट्रेन तीन में दस दिसंबर को चंदौसी पहुंची थी। वहां सभी कारसेवक रोडवेज से अपने घर पहुंचे थे। मैं, अन्य साथियों के साथ 1990 में भी पीलीभीत में रह चुका हूं।

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