UP: भाजपा से बनी बात तो RLD को लग सकती है खोई जमीन हाथ, जयंत यहां से लड़ेंगे चुनाव; हेमा मालिनी का क्या होगा?
भारतीय जनता पार्टी के साथ राष्ट्रीय लोकदल के गठबंधन की खबरों ने मथुरा की राजनीति में हलचल पैदा कर दी है। राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि गठबंधन हुआ और मथुरा लोकसभा सीट रालोद के हिस्से में गई तो 2009 की तरह एक बार फिर जयंत चौधरी यहां से चुनाव लड़ सकते हैं।
रालोद को न सिर्फ मथुरा बल्कि प्रदेश के अन्य जाट बहुल सीटों पर भी खोई जमीन वापस मिल जाएगी। इधर, सपा खेमे में भी खलबली है। अब तक सपा-रालोद गठबंधन के तहत मथुरा की सीट रालोद के खाते में है। 19 लाख से अधिक मतदाताओं वाली इस सीट को साढ़े तीन लाख के करीब जाट मतदाता होने के कारण मिनी छपरौली भी कहा जाता है।
2009 में रालोद ने जयंत चौधरी को भाजपा के साथ गठबंधन में इसी सीट से लांच किया था। ब्रजवासियों ने उन्हें संसद में पहुंचाया, लेकिन वह भाजपा की सरकार न बनने के कारण कांग्रेस के साथ चले गए थे। वर्ष 2014 में भाजपा ने मथुरा से हेमा मालिनी को लड़ाया।
उनके सामने चुनाव लड़ रहे जयंत चौधरी को 3,30,743 वोटों से हार का सामना करना पड़ा। वर्ष 2019 में रालोद ने कुंवर नरेंद्र सिंह को गठबंधन प्रत्याशी घोषित किया। यह पहला मौका था जब चौधरी परिवार ने जाट बहुल मथुरा संसदीय क्षेत्र से किसी गैर जाट पर दांव खेल। भाजपा से हेमा मालिनी ने उन्हें 2,93.471 वोटों से हरा दिया।
हेमा मालिनी का क्या होगा
भाजपा-रालोद का गठबंधन हुआ और मथुरा लोकसभा सीट रालोद के खाते में गई तो वर्तमान सांसद हेमा मालिनी का क्या होगा, इसे लेकर लोगों में चर्चा कि हेमा को चुनाव लड़ाया जाएगा या नहीं या उन्हें कोई अन्य जिम्मेदारी सौंपी जाएगी।
मथुरा लोकसभा पर जातीय समीकरण
मथुरा लोकसभा सीट पर करीब 19.23 लाख मतदाता हैं। इनमें करीब साढ़े तीन लाख जाट, करीब तीन लाख ब्राह्मण-ठाकुर, करीब डेढ़ लाख एससी, इतने ही वैश्य, करीब सवा लाख मुस्लिम और 70 हजार के आसपास यादव मतदाता हैं। जबकि अन्य जातियों के करीब चार लाख वोटर हैं।
छह बार भाजपा, चार बार कांग्रेस को मिली जीत, बसपा-सपा का नहीं खुला खाता
मथुरा लोकसभा सीट का वर्ष 1957 से रिकॉर्ड देखें तो अब तक भाजपा ने अकेले लड़ते हुए छह बार जीत हासिल की है। वहीं, कांग्रेस ने 4 बार जीत हासिल की है। सपा और बसपा का अब तक खाता भी नहीं खुला है।
1957 से 2019 तक लोकसभा चुनाव विजेता
1957 में राजा महेंद्र प्रताप सिंह निर्दलीय चुनाव जीते। अटल बिहारी वाजपेयी की जमानत जब्त हो गई थी।
1962 में कांग्रेस के चौधरी दिगंबर सिंह जीते
1967 में जीएसएसएबी सिंह निर्दलीय चुनाव जीते
1971 में कांग्रेस से चक्रेश्वर सिंह जीते
1977 में बीएलडी से मणीराम जीते
1980 में जेएनपी (एस) चौधरी दिगंबर सिंह से जीते
1984 में कांग्रेस से मानवेंद्र सिंह जीते
1989 में जनता दल से मानवेंद्र सिंह जीते
1991 में भाजपा से साक्षी महाराज जीते
1996 में भाजपा से तेजवीर सिंह जीते
1998 में भाजपा से तेजवीर सिंह जीते
1999 में भाजपा से तेजवीर सिंह जीते
2004 में कांग्रेस से मानवेंद्र सिंह जीते
2009 में रालोद-भाजपा गठबंधन से जयंत चौधरी जीते
2014 में भाजपा से हेमा मालिनी जीतीं
2019 में भाजपा से हेमा मालिनी जीतीं