UP News: जातीय अधिकार का मुद्दा उठाकर राजभर-निषाद मजबूत कर रहे अपनी राजनीति, लोकसभा चुनाव बना लिटमस टेस्ट

Update: 2023-07-23 06:13 GMT

सुभासपा हो या निषाद पार्टी, दोनों ही पार्टियां अपनी-अपनी जातियों के अधिकारों से जुड़े मुद्दे उठाकर राजनीति मजबूत करने में लगी हुई हैं. एनडीए में शामिल होने के बाद से जहां सुभासपा अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर हर मंच पर राजभर जाति को एसटी का दर्जा देने की मांग उठा रहे हैं, वहीं अब निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद भी अपनी जाति के लिए आरक्षण का मुद्दा उठाने लगे हैं.

माना जा रहा है कि इसके पीछे दोनों दलों के नेताओं की चिंता इन मुद्दों के जरिए अपनी जाति पर पकड़ बनाए रखना है. लोकसभा चुनाव में दोनों नेताओं के लिए अपनी जाति के वोट बैंक में हिस्सेदारी को लेकर भी अग्निपरीक्षा है. वर्तमान राजनीति पिछड़े और दलित वोट बैंक के इर्द-गिर्द घूम रही है। यही वजह है कि बीजेपी-कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टियों के अलावा सपा-बसपा भी जाति आधारित छोटी पार्टियों को अपने पाले में करने की होड़ में लगी हैं. छोटे दल भी अपना महत्व बढ़ाने के लिए ऐसी पार्टियों का साथ पसंद कर रहे हैं.

ओमप्रकाश राजभर, भर और राजभर जाति को एसटी में शामिल करने समेत जाति से जुड़े तमाम मुद्दों को जोरशोर से उठाते रहे हैं. बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता से शिष्टाचार मुलाकात के बहाने वह इन मुद्दों को जितना जोर-शोर से उठा रहे हैं, उससे कहीं ज्यादा प्रचार-प्रसार कर रहे हैं. एनडीए के दूसरे घटक दल निषाद पार्टी के अध्यक्ष और राज्य सरकार में मंत्री बने डॉ संजय निषाद भी मझवार और तुरेहा जाति के लिए आरक्षण की मांग उठाने लगे हैं. उन्होंने हाल ही में बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात कर इन मुद्दों को फिर से उठाया है. माना जा रहा है कि इसके पीछे दोनों नेताओं पर चुनाव में बेहतर प्रदर्शन करने का दबाव है जैसा कि बीजेपी नेतृत्व दावा कर रहा है.

मौका मिला तो परिवार को प्राथमिकता दी

ये अलग बात है कि जब भी मौका मिला दोनों नेताओं ने अपने परिवार को ही प्राथमिकता दी. संजय को जब मौका मिला तो उन्होंने अपने सिंबल के बजाय बीजेपी के सिंबल पर एक बेटे को सांसद और दूसरे को विधायक बना दिया. इसी तरह 2017 में एनडीए के साथ रहे ओमप्रकाश राजभर खुद सरकार में मंत्री बन गये और अपने बड़े बेटे को निगम का चेयरमैन बना दिया. अब लोकसभा चुनाव में भी दोनों दलों के कोटे की सीटों पर उनके बेटों के चुनाव लड़ने की चर्चा है।

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