पेड़ों की छांव तले फाउंडेशन की रचना पाठ की 116 वीं गोष्ठी दीपोत्सव पर्व पर सम्पन्न

Update: 2024-11-02 08:03 GMT

- पेड़ों की छांव तले रचना पाठ मासिक गोष्ठी के दस वर्ष पूरे हुए 


गाजियाबाद। पेड़ों की छांव तले रचना पाठ की 116 वीं गोष्ठी आज सम्पन्न हुई । सेंट्रल पार्क वैशाली गाजियाबाद में आज निर्धारित चौथे रविवार को 116 वीं गोष्ठी दीपोत्सव पर्व पर गीत गजल कविता और निबंध का सुमधुर वाचन के साथ सम्पन्न हुई । गोष्ठी की अध्यक्षता वरिष्ठ कवि - प्रख्यात आलोचक डॉ वरुण तिवारी ने निभाई तथा संयोजन कवि लेखक अवधेश सिंह ‘बंधुवर’ ने किया ।

इस गोष्ठी में प्रतिष्ठित साहित्यकार कवियों के द्वारा काव्य पाठ किया गया जिसमें क्रमशः डॉ रणवीर सिंह परमार, सुरेन्द्र अरोड़ा, रामेश्वर दयाल शास्त्री, अनिल कुमार मासूम, डॉ देवेन्द्र देवेश, अमर आनंद, इंद्रजीत सुकुमार, विनय विक्रम सिंह, संजय मिश्र, जेनी शबनम, गीत गंगोत्री, पूनम समर्थ ने काव्य पाठ किया । मंच संचालन संवदिया साहित्यिक पत्रिका की पूर्व संपादक अनीता पंडित ने किया ।

गोष्ठी के संयोजक अवधेश सिंह “बंधुवर” ने बताया कि “अक्टूबर 2014 से आरंभ हुई यह मासिक गोष्ठी हर माह चौथे रविवार को आयोजित हुई । सिर्फ कोरोना वैश्विक आपदा के दौरान मार्च-2020 से जून तक चार महीने मौत और अवसाद के कारण पेड़ों की छाँव तले रचना पाठ के कार्यक्रम में अवरोध आया था । लाक डाउन की उल्टी प्रक्रिया के शुरू होते ही आन लाइन आभासी मंच द्वारा दूर शहरों के कवियों तथा लेखकों से संवाद लगातार बना रहा है । विगत 10 वर्षों में संस्था “पेड़ों की छांव तले फाउंडेशन” द्वारा जहां 116 कार्यदिवस पर रचना पाठ किया गया वहीं लगभग 80 कवि लेखकों द्वारा 300 घंटे से अधिक का काव्य पाठ सम्पन्न हुआ है” ।

गोष्ठी के प्रारंभ में वरिष्ठ कवि डॉ रणवीर सिंह परमार ने दीपोत्सव के अवसर पर पारिवारिक रिश्तों पर अपने दर्द को साझा करते हुए कहा “आते-जाते पूछती - अब तो नहीं बुख़ार, उस बेटी को कर विदा, रोया मैं बेज़ार, आंखों के सैलाब के छोड़े नहीं सबूत, सारे आँसू पी गई वो कच्ची दीवार”। डॉ देवेन्द्र देवेश ने सरहद पर देश के लिए शहीद हुए जवानों पर “दर्शनीय कब्रगाह” शीर्षक से कविता पढ़ी “सोलह सौ जवानों को अपनी गोदी में सुलाए/ इंफाल की यह कब्रगाह/ हरेक कब्र के आसपास फूल-पत्तियों वाले पौधे / और चारों ओर पसरी हुई घास की हरीतिमा” ।

वरिष्ठ कवयित्री जेनी शबनम ने “दीप-दीपाली” शीर्षक से हाइकु पढे – “ उतरे नीचे/ नक्षत्र आसमां के / ज़मीन पर। लौटे प्रवासी / त्योहार का मौसम / सजी दीवाली। राम प्रवासी / लौटे हो के विजयी / दीवाली सजी”। कथाकार एवं कवि सुरेन्द्र अरोड़ा ने विजया दशमी शीर्षक से कविता पढ़ी –“ चलो एक रावण का वध आज हम भी करते हैं / पहले बैठा है जो रावण अपने अंदर , उससे ही युद्ध आज करते हैं” ।

सशक्त कवि लेखक विनय विक्रम सिंह ने गजल पढ़ी “बिल्डिंग में बचपनों को कहानी नहीं मिलीं। दादी न दिखीं फ्लैट में नानी नहीं मिलीं। आँखों की रोशनी से सिये पङ्ख जिन्होंने। चश्में में उनके आज कमानी नहीं मिलीं”। वरिष्ठ कवि अमर आनंद ने हौसलों को शब्द देते हुए कविता पढ़ी “रौशन सवेरा होगा...निराशाओं के कई दौर होंगे / घना अंधेरा होगा तुम चलते रहना साथी / रौशन सवेरा होगा फूलों को पाने की राह में / कांटों का घेरा होगा तुम चलते रहना साथी रौशन सवेरा होगा” ।

गोष्ठी के संयोजक अवधेश सिंह “बंधुवर” ने कविता – “दिया जले” शीर्षक से गीत पढ़ –“ दिया जले दिल न जले....../ रोशनी घिरी है अंधकार से / प्रेम बिंधा नाना प्रकार से / स्वार्थ तीर, सोच कटार / मन को घायल कर न चले .... दिया जले दिल न जले”। छंदस कविताओं पर सशक्त कवि रामेश्वर दयाल शास्त्री ने कहा “दीप जले मंद मंद झेलें दुख दवंद सब / बम फुलझरी की गंध जी अकुलाई रहे / छोड़ते अनार द्वार पटाखे पटक मार / आंख मूंद बार बार आपदा बुलाई रहे”

अनिल कुमार मासूम ने गजल पढ़ी “दिल न ऐसे यहां वहां रखिये अहले-उल्फ़त के दरमियां रखिये/ ये गले मिल के भी जलाती हैं दूर माचिस से तीलियां रखिये” कवयित्री गीता गंगोत्री ने त्योहार धनतेरस पर पढ़ा “धनवंतरी देव से, मांग रही वर पांच, आयु , विद्या, यश, बल,और पन्द्रह लाख। पूरी हो मनोकामना, तब लूं मैं विश्राम”।

गीतकार इंद्रजीत सुकुमार ने मार्मिक प्रेम गीत पढ़ “कैसे कह दूं कि मुझे तुम जानते हो / देह ही तक था तुम्हारा प्रेम सीमित / तुम कभी अंतस तलक नहीं पहुंच पाए, धड़कनों का गीत तुम सुनते भी कैसे / वासना की सरहदों तक तुम न आए / तुम आली सम घूमते तन वाटिका में / कैसे कह दूं मन सुमन पहचानते हो”। कवयित्री पूनम समर्थ ने सुर के साथ पढ़ा – “मुझे मेरी ही खुली किताब मिली / खूबसूरत ये जिंदगी, तू बेहिसाब मिली। / उसूलों की लिखवाट से हर बात लिखी / आंसू के मोतियों से चांदनी रात लिखी / परखती गई दर परत दर तुम्हें / फिर तो अंदाज में तू नायाब मिली, खूबसूरत ये जिंदगी ,बेहिसाब मिली”।

स्तम्भकार कहानीकार संजय मिश्र ने काल प्रवाह से जुड़े चिंतन को स्पष्ट करते हुए कहा “समय के सामर्थ्य को नकारना कठिन यही काल चिंतन है” का विश्लेषण करते हुए अपना आलेख वाचन किया । अध्यक्षता कर रहे डॉ वरुण तिवारी ने कविता का पाठ करते हुए, रचना पाठ के दस वर्ष पूरा होने के उपलक्ष में सभी कवियों का आभार धन्यवाद ज्ञापित किया और आशा जताई कि यह गोष्ठी निरंतर अपना विस्तार करती रहेगी तथा संस्था उन्नति करे ।

विगत अक्टूबर 2014 से आरंभ हुई इस मासिक साहित्यिक गोष्ठी के दस वर्ष पूरा होने की खुशी के मौके पर सभी संस्थापक कवि गण पधारे । देर शाम तक संचालित रही गोष्ठी को पार्क में उपस्थित श्रोताओं ने सराहा जिसमें प्रमुख रूप से अनीता सिंह, शत्रुघन सिंह, सियाराम और आर के शर्मा आदि रहे ।

Tags:    

Similar News