हिन्दी पखवाड़े के अंतर्गत - पेड़ों की छांव तले “पुस्तक चर्चा और काव्य पाठ”

Update: 2024-09-23 12:15 GMT

जब कविता प्रतिरोध का स्वर बनती है तो उसका दायित्व बढ़ जाता है- प्रोफेसर डॉ राजेन्द्र गौतम

पेड़ों की छांव तले रचना पाठ की 115 वीं गोष्ठी सम्पन्न। विगत दस वर्षों से हर माह निर्धारित चौथे रविवार को आयोजित होने वाली साहित्यिक गोष्ठी सितंबर माह में हिन्दी पखवाड़े को मनाती हुई “पुस्तक चर्चा और काव्य पाठ” के साथ अपने उत्कर्ष पर पहुंची । राष्ट्रीय गोष्ठी में मुख्य अतिथि के रूप में डॉ श्वेता दीप्ति, पूर्व अध्यक्षा हिन्दी केंद्रीय विभाग, त्रिभुवन विश्व विद्यालय काठमांडू तथा सम्पादक हिमालिनी हिन्दी मासिक पत्रिका काठमांडू का सान्निध्य रहा। अध्यक्षता का निर्वहन वरिष्ठ साहित्यकार प्रो बीना शर्मा, पूर्व निदेशक केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा तथा मंच संचालन और संयोजन वरिष्ठ कवि लेखक अवधेश सिंह बंधुवर ने किया।

इस अवसर पर अन्तराष्ट्रीय बेटी दिवस पर कविताएं पढ़ी गई तथा फिल्म इंडस्ट्री में स्थापित अभिनेत्री प्रतिभा सुमन शर्मा 'रजनीगंधा' के प्रथम काव्य संग्रह अर्बन नक्सल बीवी पर समीक्षात्मक चर्चा भी हुई। काव्य पाठ और साहित्यिक चर्चा के लिए पधारे विशिष्ट वार्ताकारों में वरिष्ठ साहित्यकार आलोचक क्रमशः प्रोफेसर डॉ राजेन्द्र गौतम दिल्ली विश्वविद्यालय, प्रोफेसर डॉ रामा सिंह राणा एस एस पीजी कालेज गाजियाबाद, डॉ तबस्सुम जहां कवयित्री एवं फिल्म समीक्षक तथा कवयित्री एवं अभिनेत्री डॉ अल्पना सुहासिनी रहीं। वार्ता के अंतिम दौर में आभार प्रदर्शन प्रख्यात अभिनेता यशपाल शर्मा ने किया।

साहित्यकार प्रो बीना शर्मा ने अपने भावपूर्ण कथन में लेखिका प्रतिभा सुमन शर्मा को पुस्तक में उपनाम “रजनीगंधा” को ही प्रमुखता देने पर बधाई देते हुए पुस्तक को एक अच्छे प्रकाशन के लिए बधाई का पात्र स्वीकार किया। आगे उन्होंने समाज के यथार्थ को चित्रित करती कविताओं से सुसज्जित संग्रह “अर्बन नक्सल बीवी” के सतत मूल्यांकन में कहा कि “सभी कविताएं सच की धरातल और अनुभव जनित समवेदनाओं पर आधारित हैं”।

अपने उद्बोधन में प्रोफेसर डॉ राजेन्द्र गौतम ने कहा कि “जब कविता प्रतिरोध का स्वर बनती है तो उसका दायित्व बढ़ जाता है, पुस्तक का शीर्षक “अर्बन नक्सल बीवी” समाज में फैल रहे आडंबर, असत्य और दिखावे का प्रतिकार भी है और वहीं से आशाओं का संचार भी है”।

प्रोफेसर डॉ रामा सिंह ने कविता संग्रह में कविताओं के माध्यम से उभरी विशेष अनुभूतियों को प्रस्तुत करने का श्रेय, लेखिका जो कि सिनेमा में सफल अभिनेत्री भी हैं को दिया उन्होंने कहा कि “लेखिका चिंतन मनन करने की मानसिकता और छोटी छोटी घटना के अंदर तक महसूस करने वाला संवेदनशील हृदय रखती हैं। नारी के अस्तित्व या वजूद को कविताओं के द्वारा स्थापित करने से संग्रह की उपयोगिता बढ़ी है”।

लेखिका कवयित्री प्रोफेसर डॉ श्वेता दीप्ति ने कविता संग्रह “अर्बन नक्सल बीवी” को एक आकर्षित करने वाला शीर्षक बताते हुए कहा कि “संग्रह की सभी कविताओं के शीर्षक से ही कविता के विषय वस्तु का आभास होता है। कविताओं में एक तरफ जहां नारी के दीन – हीन होने की स्थित पर लेखिका को प्रतिकार करते देखा जा सकता है वहीं पुरुष के साथ अतरंगत के छड़ों में भी परस्पर अस्तित्व के न जुडने तथा बीच की भावनात्मक दूरी को बड़ी सहजता के साथ व्यक्त किया है और यही संग्रह की बड़ी विशेषता भी है”।

कवयित्री एवं अभिनेत्री डॉ अल्पना सुहासिनी ने अपने व्यक्तिगत अनुभव और लेखिका से अपनी निजिता का हवाला देते हुए कहा कि “अर्बन नक्सल बीवी” की कविताएं जहां एक तरफ यथार्थ पूरक हैं वहीं वे स्नेह, प्रेम और ममत्व की कोमल अनुभूतियों को भी अपनी लेखनी के माध्यम से जगह जगह उकेरती हैं। विद्रोह और प्रतिकार स्वभाव गत होने के बावजूद प्रेम के अस्तित्व और उसके श्रोत को लेखिका अंदर तक महसूस करती हैं उनकी कविताओं में दिखता है। लेखिका में कविताओं के सृजन की असीम संभावनाएं तो हैं ही, साथ ही वे एक अच्छी कहानी कार भी हैं यह आने वाले दिनों में साबित होगा”।

साहित्यकार डॉ तबस्सुम जहां ने कहा कि “रजनीगंधा द्वारा सृजित काव्य संग्रह की सभी कविताएं समाज में घटित स्थितियों और परिस्थितियों की बेबाक बयानी हैं। कविताओं को दृश्यों और बिंबों के माध्यम से व्यक्त किया गया है जिससे समाज के हर उस कोने को प्रकाशित करने में लेखिका सफल हैं जहां पर आम लोगों की नजर नहीं पहुँच पाती है”।

मंच संचालन करते हुए वरिष्ठ कवि अवधेश सिंह ने साहित्यिक चर्चाओं के दौर में कहा कि “बेटी दिवस पर बेटी को ही समर्पित कविता संग्रह पर प्रबुद्ध और समृद्ध मंच द्वारा आलोचनात्मक मूल्यांकन होना बेहद सुखद संयोग है। उन्होंने चेताया कि प्रतिरोध में लिखी कविताएं अखवारों की हेड लाइन जैसी नहीं होनी चाहियें और समस्या को उजागर करने के साथ ही उस समस्या का हल या निवारण भी दिखाना लेखक का कर्तव्य है”। समाज की बुराइयों से संघर्ष करती पुस्तक के समर्थन में उन्होंने इस पुस्तक के महत्व को पारंपरिक हथियार के मुकाबले रखकर कहा “मैं तुझ से डर नहीं सकता, भले रंजिश, अदावत है। तेरे हाथों में खंजर है, मेरे ख़त-ओ-किताबत है।

प्रारंभ में संवेदनशीलता और भावुकता को दर्शाती लेखिका प्रतिभा सुमन शर्मा द्वारा अभिनीत फिल्म मुंशी प्रेम चंद लिखित “ठाकुर का कुआं” की कुछ झलकियां दिखाई गई। इसी के साथ बेटी दिवस के अवसर पर लेखिका द्वारा पुस्तक की हस्ताक्षर कविता “यह लड़कियां’ का वाचन किया गया – “यह लड़कियां/अब न जाने क्या बन गयी है/यह लड़कियां/पहले तो नन्ही परियां बन जाती थी/घर द्वार आंगन बन जाती थी/किलकारियां बन जाती थी/बाबा की लाडली और मां की दुलारी/भाइयों की प्यारी और बहनों की खाला बन जाती थी”।

कार्यक्रम के अंत में लेखिका के पति एवं फिल्म इंडस्ट्री में ख्याति प्राप्त अभिनेता यशपाल शर्मा ने सभी प्रतिभागियों को सादर अभिवादन करने के साथ लेखिका की ओर से आभार धन्यवाद का प्रदर्शन किया। फेसबुक आभासी मंच पर लाइव ब्राडकास्ट के साथ सैकड़ों टिप्पणियों और दर्जनों साझा के साथ कार्यक्रम को हजार के करीब दर्शकों द्वारा देखा गया है।

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