घाट पर 25 सालों से जलती चिताओं के रिकॉर्ड नहीं, रोज होते हैं 200 से ज्यादा शवदाह

By :  SaumyaV
Update: 2023-12-24 07:27 GMT

काशी मोक्ष की नगरी होने के कारण पूरे पूर्वांचल के जिलों से यहां अंतिम संस्कार के लिए शव लाए जाते हैं। मणिकर्णिका घाट पर शवदाह के लिए इस्तेमाल होने वाली अग्नि कभी बुझती नहीं है। मणिकर्णिका घाट पर अंत्येष्टि की मान्यता है कि यहां पर अंतिम संस्कार होने से मृतक की आत्मा को शिवलोक की प्राप्ति होती है। 

मर्णिकर्णिका घाट पर पिछले 25 वर्षों से जलती चिताओं का कोई रिकॉर्ड नहीं है। यहां कोई भी, कभी भी किसी भी शव को लाकर जला सकता है। न तो किसी आधार कार्ड की जरूरत न कोई पर्ची की मांग और कहीं रिकॉर्ड दर्ज होने का तो सवाल ही नहीं। ये तब जबकि 24 घंटे जलने वाला काशी का ये घाट महाश्मशान कहलाता है। शुक्रवार-शनिवार को 24 घंटे में मणिकर्णिका घाट पर 153 और हरिश्चंद्र घाट पर 33 शवदाह हुए। अमर उजाला के सात रिपोर्टर ने लगभग 16 घंटे खुद इन घाटों पर बैठकर ये आंकड़ा गिना है। 

काशी मोक्ष की नगरी होने के कारण पूरे पूर्वांचल के जिलों से यहां अंतिम संस्कार के लिए शव लाए जाते हैं। मणिकर्णिका घाट पर शवदाह के लिए इस्तेमाल होने वाली अग्नि कभी बुझती नहीं है। मणिकर्णिका घाट पर अंत्येष्टि की मान्यता है कि यहां पर अंतिम संस्कार होने से मृतक की आत्मा को शिवलोक की प्राप्ति होती है।

1998 से बंद है शवदाह के रिकॉर्ड की प्रक्रिया

बाबा मशाननाथ व काशी मोक्षदायिनी सेवा समिति के अध्यक्ष पवन कुमार चौधरी का कहना है कि पहले रिकॉर्ड मेंटेन होता था, लेकिन 1998 से बाबा हरदेव सिंह (तब के नगर आयुक्त) के आने के बाद यह प्रक्रिया बंद हो गई। 1989 से अभी तक पार्षद रहे अमरदेव यादव कहते हैं 1998 के पहले मणिकर्णिका पर नगर निगम की चौकी होती थी। वहां से रसीद काटी जाती थी, रजिस्टर मेंटेन होता था। फिर अचानक किसी गड़बड़ी के बाद ये बंद हो गया। गड़बड़ी ये थी कि किसी ने फर्जी मृत्युप्रमाण पत्र बनवा लिया था। काशी में महाश्मशान पर दाह के लिए आए शवों की गिनती नहीं होती लेकिन वहीं पूर्वांचल के दूसरे बड़े गंगा घाट गाजीपुर में बकायदा पर्ची दी जाती है और रजिस्टर में रिकॉर्ड भी लिखा जाता है।

वहीं काशी में पिछले पांच दिनों के आंकड़ों पर गौर करें तो यहां रोजाना दो सौ से अधिक चिताएं 24 घंटे में जलाई जा रही हैं। ठंड बढ़ने के कारण आंकड़ा भी बढ़ा है। हरिश्चंद्र घाट पर शवदाह के लिए आने वालों का भी कुछ ऐसा ही हाल है। हरिश्चंद्र घाट पर रोजाना 35 से 42 शव जलाए जाते हैं। सीएनजी से संचालित शवदाह गृह में रोजाना दो से पांच लोग ही शवदाह कराते हैं। वो निगम संचालित करता है इसलिए इसकी पर्ची कटवाई जाती है और रिकॉर्ड भी रखा जाता है। लेकिन यहां वो शव आते हैं जो या तो लावारिस होते हैं या जिनके परिजन आर्थिक रूप से कमजोर।

मणिकर्णिका लाइव

मणिकर्णिका घाट सुबह 8 बजे से दोपहर तीन बजे तक करीब 96 शव पहुंचे थे। दिन में 3 बजे से रात 10 बजे तक आंकड़ा 33 और रात 10 बजे से रात 12 बजे तक छह शव पहुंचे थे। इसमें सबसे ज्यादा मऊ, गया और बिहार से लोग आए थे। बलिया से रमेश ओझा अपने पिता का संस्कार करने शनिवार को मणिकर्णिका घाट पहुंचे। उन्होंने लकड़ी व्यवसायी से मोलभाव करने के बाद चिता सजवाई और मुखाग्नि दी। ना तो कहीं रिकॉर्ड दर्ज हुआ ना ही किसी ने पूछने की जहमत उठाई।

मणिकर्णिका घाट पर लाशों की लाइन…

दिन - सुबह 8 से 3 बजे तक - 3 से 10 बजे तक - रात 10 बजे से सुबह 8 बजे तक

सोमवार - 158 - -37 - 8

मंगलवार - 113 - 28 - 11

बुधवार - 149 - 61 - 5

बृहस्पतिवार - 109 - 58 - 7

शुक्रवार - 117 - 25 - 6

शनिवार - 95 - 32 -16

पहले नगर निगम यहां पर पर्ची काटता था। 1998 से यह व्यवस्था बंद है। जन्म और मृत्यु के संबंध में सरकार की नई गाइडलाइन के अनुसार कार्यालय में ही रिकॉर्ड दर्ज होता है। -अक्षत वर्मा, नगर आयुक्त

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