सरयू सुना रही मुक्ति-संघर्ष की दास्तां ...जब अफसरों की पत्नियों ने बंद की कमिश्नर की बोलती

By :  SaumyaV
Update: 2024-01-21 05:42 GMT

कारसेवकों और साधुओं पर जिस तरह गोलियां चलाई गई थीं, लोगों में जबरदस्त आक्रोश था। इसे लेकर फैजाबाद के तत्कालीन डीआईजी जीएल शर्मा, एसएसपी सुभाष जोशी, सीआरपीएफ के उप कमांडर भुल्लर, दूसरे उप कमांडर उस्मान सब खलनायक बन चुके थे। 

मैं 30 अक्तूबर और 2 नवंबर 1990 को अयोध्या में हुए गोलीकांड से जुड़े अफसरों के घरों में हुए विद्रोह की कहानी सुनाने के मोह से खुद को नहीं रोक पा रही हूं। कारसेवकों और साधुओं पर जिस तरह गोलियां चलाई गई थीं, लोगों में जबरदस्त आक्रोश था। इसे लेकर फैजाबाद के तत्कालीन डीआईजी जीएल शर्मा, एसएसपी सुभाष जोशी, सीआरपीएफ के उप कमांडर भुल्लर, दूसरे उप कमांडर उस्मान सब खलनायक बन चुके थे। गोली किसी मजिस्ट्रेट के आदेश के बिना चली थी। सीआरपीएफ ने गोली चलाने के बाद तत्कालीन डीएम रामशरण श्रीवास्तव पर दबाव डालकर जिस तरह से गोली चलाने के आदेश पर दस्तखत कराए, उससे क्षुब्ध होकर वह उसी रात लंबी छुट्टी पर चले गए। 

फैजाबाद में गुस्साए नागरिकों ने सारे प्रतिबंध तोड़ दिए। हजारों की भीड़ तत्कालीन कमिश्नर मधुकर गुप्त के सरकारी आवास में घुस गई। बड़ी मुश्किल से वे लोगों को समझा पाए। यह तो था 2 नवंबर, 1990 का हाल। पर, अगले दिन जो हुआ वह अकल्पनीय था। सुबह बहुत सारी महिलाएं कमिश्नर के बंगले पर पहुंच गई और उन्हें घेर लिया। ये प्रशासन में नियुक्त अधिकारियों और कर्मचारियों की पत्नियां थीं। इन महिलाओं ने कमिश्नर से पूछा, निहत्थे कारसेवकों पर गोलियां क्यों चलवाई। कमिश्नर बोले, सरकार का आदेश था। महिलाएं बोली, तो आपके पास अपना कोई विवेक है या नहीं या जो सरकार कहेगी वही करेंगे। वह चाहे लोकतांत्रिक हो या अलोकतांत्रिक। तभी एक महिला बिफरते हुए बोली, आप अधिकारियों पर दबाव डालकर गोली चलवाने के आदेश पर दस्तखत करा रहे हैं। यह नहीं चलेगा। अब से देखती हूं कि कोई अधिकारी आपके गोली चलाने के आदेश पर हस्ताक्षर कैसे करता है।

ठंडक में भी कमिश्नर के चेहरे पर पसीना था। इसी बीच, एक महिला जो किसी उच्च अधिकारी की पत्नी थीं, बोलीं, थोड़ी सी भी अगर मानवता बची हो, तो आंखों पर पट्टी बांधकर सिर्फ सरकारी हुक्म के गुलाम न बनें। कमिश्नर बोले, इतनी गोली नहीं चली हैं। आप लोगों को भ्रम है। कमिश्नर के बात पूरी करने से पहले एक महिला चिल्लाते हुए बोली-क्या आप अपने घर वालों पर भी इसी तरह गोली चलवा सकते हैं। इसी बीच, सैन्य अफसरों की पत्नियां तख्तियां लिए सड़क पर आ गईं, जिस पर लिखा था -जनरल डायर मत बनो। वे पूरे शहर में घूमीं। उनके साथ नागरिक, बच्चे, महिलाएं, बूढ़े सबकी भीड़ कमिश्नर के बंगले पर पहुंच गए। कमिश्नर ने पूरी स्थिति से सरकार को अवगत कराया।

आखिर झुकी सरकार

मुलायम ने संघ में मौजूद अपने एक संपर्क सूत्र को मामला सुलझाने के लिए सरकारी हवाई जहाज से फैजाबाद भेजा। मुलायम चाहते थे कि कारसेवा स्थगित कर दी जाए। वह दूत मणिराम दास छावनी पहुंचे, जहां हजारों कारसेवक जमा थे। इस दूत ने वहां पहुंचकर बिना किसी से बात किए कारसेवा स्थगित करने की घोषणा कर दी। गोली चलने और कारसेवकों की मौत से नाराज भीड़ ने इन्हें घेर लिया। बजरंग दल के तत्कालीन संयोजक विनय कटियार ने जैसे-तैसे हालात संभाले। अशोक सिंहल, मोरोपंत पिंगले और विनय कटियार ने कहा कि कारसेवक रामलला के दर्शन किए बिना नहीं जाएंगे। सिंहल, पिंगले और कटियार ने शर्त रखी कि रास्ते में फंसे और अयोध्या में पहुंचे कारसेवकों को दर्शन के बाद सुरक्षित उनके घर पहुंचाने की सरकार व्यवस्था करे। कारसेवकों के अस्थिकलश निकालने की अनुमति दे। दोषी अधिकारियों को तत्काल हटाया जाए। तभी कारसेवा स्थगित होगी। थोड़ी ना नुकर के बाद सरकार ने सब मांगें मान ली। पर, यह सब संभव हुआ कमिश्नर को घेरने वाली अधिकारियों और सैन्य अफसरों की पत्नियों के कारण।

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