'तप त्याग की प्रतिमूर्ति आर्य संन्यासी' विषय पर ऑनलाइन गोष्ठी का आयोजन, आचार्य चन्द्रशेखर शर्मा बोले- मान अपमान से ऊपर उठना ही संन्यास है

Update: 2024-05-14 08:34 GMT

गाजियाबाद। केन्द्रीय आर्य युवक परिषद के तत्वावधान में 'तप त्याग की प्रतिमूर्ति आर्य संन्यासी' विषय पर मंगलवार को गाजियाबाद में ऑनलाइन गोष्ठी का आयोजन किया गया। यह कोरोना काल से 642 वां वेबिनार था। वैदिक विद्वान आचार्य चन्द्रशेखर शर्मा (ग्वालियर) ने आर्य समाज के 25 वीतराग संन्यासियों की चर्चा करते हुए कहा कि जो मान अपमान से ऊपर उठ जाए वही सच्चा संन्यासी है। उन्होंने विविध भावों के साथ संन्यास, तप और त्याग का अर्थ बताया।

आचार्य चन्द्रशेखर शर्मा ने 'संन्यास' का अर्थ एवं भाव बताते हुए कहा कि सम् एवं नि उपसर्ग पूर्वक आस् धातु के साथ 'संन्यास' शब्द सिद्ध होता है। उन्होंने कहा कि सम्यक् रुप से न्यास करना; पुत्रैषणा, वित्तैषणा एवं लोकैषणा का पूर्ण परित्याग करना; यज्ञोपवीत के बाह्यसूत्र को छोड़कर ब्रह्मसूत्र और ब्रह्मभाव को धारण करना; और बाह्य शिखा को छोड़कर ज्ञानशिखा को धारण करना ही 'संन्यास' है। उन्होंने कहा कि प्रबल वैराग्य, धर्मोपदेश,सत्योपदेश एवं प्राणी मात्र परम हित,परोपकार ही 'परिव्राजक' का परम स्वरूप है।

साथ ही आचार्य ने 'तप' का अर्थ एवं भाव बताते हुए कहा कि द्वन्द्वों का सहन करना ही तप है। 'द्वन्द्वसहिष्णुत्वं तपः' का यही भाव है। सर्दी-गर्मी, मान-अपमान,सुख-दुःख, लाभ-हानि, जय-पराजय, निंदा-प्रशंसा और मित्रता-शत्रुता में समभाव रखना ही 'तप' है। उन्होंने 'त्याग' का अर्थ एवं भाव बताते हुए कहा कि संन्यास के धारण में 'त्याग' की पराकाष्ठा है। अपने परिवार का, धन का, क्रोध का, मोह का, आसक्ति का त्याग, अभिमान का त्याग, प्रशंसा का त्याग और दुर्वृत्तियों का त्याग करना ही 'परम त्याग' है।

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