गोरखपुर में ऑनलाइन ठगी: सियासी दलों की हार-जीत के नाम पर लग रहे मोटे दांव, बच्चों को फंसा रहे जालसाज

Update: 2023-10-30 06:00 GMT

ऑनलाइन ठगी के मैदान में जालसाजों ने सियासी दलों को उतार दिया है। भाजपा, सपा और कांग्रेस सहित दूसरे राजनीतिक दलों की हार-जीत को ठगी का नया हथियार बनाया गया है। इसमें मोटे दांव लग रहे हैं। जालसाजाें का निशाने पर बच्चे होते हैं। सोशल मीडिया और गूगल प्ले स्टोर पर इस तरह के कई गेम उपलब्ध हैं। ऐसे में यदि आपका लाडला ऑनलाइन गेम खेलने का शौकीन है तो सावधान हो जाइए। उसका यह शगल आपका खाता तो खाली करा सकता ही है, बड़ी मुश्किल में भी डाल सकता है।

इस खेल में देश का नक्शा दिया जाता है। उसमें कौन-सी पार्टी, किस राज्य में कितनी सीटें जीतेगी इसका आकलन करना होता है। खेल जैसे-जैसे आगे बढ़ता जाएगा, ऑफर मिलते जाएंगे। पहले प्वाइंट बनाने का टारगेट दिया जाता है। फिर पैसे लगाने का विकल्प आता है। यहीं से ठगी की शुरुआत होती है।

राजनीतिक पार्टियों से जुड़े एप को डाउनलोड करना भी बेहद आसान है। फेसबुक व दूसरे सोशल मीडिया पर तो है ही, सीधे ऑनलाइन एप से भी डाउनलोड हो जा रहा है। इसे डाउनलोड करने के बाद कई तरह के गेम हैं। कुछ में सीटें जितनी है। इसके लिए आप को एक पार्टी का चयन करना होगा। बगल में यूपीए, एनडीए व अन्य का स्कोर बोर्ड भी दिखता है। बस पाशा फेंकना है।

कौन सी पार्टी कहां जीती है, वह सामने दिख रहे भाजपा के नक्शे पर दिखेगा। दूसरा रेसिंग गेम है। इसमें जिस पार्टी को चुनेंगे, उसके अलग-अलग चुनाव चिह्न दिखेंगे। मनपसंद को चुनना है। खेल शुरू होते ही प्वाइंट बढ़ते जाएंगे। पहले कुछ दिन तो यह सब मुफ्त में होगा, लेकिन फिर एक लेवल के बाद आपको अपनी पार्टी का सिंबल खरीदना पड़ेगा। इसके बाद खिलाड़ी जालसाज के जाल में फंसता जाएंगा।

बच्चे की बिगड़ रही मानसिक सेहत तो मां-बाप हो रहे कंगाल

लगातार मोबाइल फोन के इस्तेमाल से बच्चे की मानसिक सेहत बिगड़ रही है। इतना ही नही ऑनलाइन गेम खेलने की लत माता-पिता को कंगाल बना रही है। ऑनलाइन गेम से जालसाजी की शिकायत क्राइम ब्रांच के साइबर सेल में हर माह सात से आठ आ रहीं हैं। इनमें बच्चों ने ऑनलाइन गेम खेलने के दौरान विभिन्न तरह के हथियार (टूल्स) खरीदने के लिए मां-बाप के बैंक खाते भारी-भरकम रकम खर्च कर दिए।

इस तरह के लेनदेन का पहला मैसेज तो मोबाइल फोन पर आता है। उसके बाद किए गए लेनदेन की जानकारी नहीं मिल पाती। ऐसे में अभिभावक भी खातों में हो रही हलचल से अनजान रहता है। धीरे-धीरे जब यह रकम बढ़कर अधिक हो जाती हैं, तो लोग साइबर ठगी की शिकायत दर्ज कराते हैं। जांच के बाद मामला सामने आता है कि गेम खेलने के दौरान बच्चे ने रकम खर्च किए हैं। इसके बाद शिकायतकर्ता भी अपना प्रार्थना पत्र वापस ले लेते हैं।


ऑनलाइन ठगी के पहले भी आए मामले

केस एक

महिला ने की शिकायत, खाते से गायब हो गए 1.50 लाख

नंदानगर में रहने वाली एक महिला के खाते से 1.50 लाख रुपये गायब हो गए। उनके बैंक अकाउंट से नवंबर से धीरे-धीरे रकम कम हो रही थी। शुरुआत में 40 से 50 रुपये कटे। बाद में रकम बढ़ती चली गई। पांच माह में उनके अकाउंट से विभिन्न तिथियों में पैसे गायब हो गए। बैंक से लेनदेन का विवरण निकलवाया तो होश उड़ गए। महिला की शिकायत पर साइबर सेल ने जांच की तो मालूम हुआ कि ऑनलाइन गेम खेलने के दौरान पैसों का लेनदेन हुआ है।


केस दो

प्रवक्ता के खाते से निकले 1.43 लाख रुपये

गोरखपुर शहर के एक कॉलेज के प्रवक्ता ने पुलिस के पास शिकायत दर्ज कराई। बताया कि उनके खाते से 1.43 लाख रुपये साइबर जालसाजों ने गायब कर दिए। शिकायत पर साइबर सेल ने जांच की, तो मालूम हुआ कि ऑनलाइन गेम खेलने के दौरान पैसे खर्च हुए हैं। साइबर सेल ने मोबाइल फोन मंगवाया। तब मालूम हुआ कि उनके बेटे ने ही गेम खेलने के दौरान यह कारस्तानी की है। इसकी जानकारी होने पर उन्होंने अपनी शिकायत वापस ले ली।


ये बरतें सावधानी

बैंक एकाउंट के लेनदेन के लिए अलग मोबाइल नंबर और ईमेल आईडी का इस्तेमाल करें।

बैंक एकाउंट से जुड़े हुए मोबाइल हैंडसेट बच्चों को गेम खेलने के लिए न दें।

एटीएम कार्ड और बैंक से संबंधित दस्तावेजों की जानकारी बच्चों को कतई उपलब्ध न कराएं।

ऑनलाइन सामान मंगाने के दौरान मोबाइल फोन पर अधिकृत एप का इस्तेमाल करें।

मोबाइल फोन पर अपना इंटरनेट बैकिंग यूजरनेम और पासवर्ड कभी सेव (सुरक्षित) न करें।

फोन पर स्पैम (इंटरनेट पर भेजे जाने वाले अप्रासंगिक या अनचाहे संदेश) अलर्ट रखें, एंटी वायरस भी इस्तेमाल कर सकते हैं।

साइबर ठगी के लिए जालसाज फर्जी गेम साइट बनाते हैं। इसके जरिए निजी जानकारी मांगकर हैकर अपने सर्वर में सुरक्षित कर लेते हैं, जिससे ठगी होती है।

बच्चे के मोबाइल फोन पर पैरेंट कंट्रोल एप डाउनलोड करें, जिससे बच्चे के मोबाइल की निगरानी हो सकेगी।


जिम्मेदारों ने क्या कहा

एसपी क्राइम इंदु प्रभा सिंह ने कहा कि ऑनलाइन गेम से ठगी के अधिकांश मामलों की छानबीन में सामने आता है कि पीड़ित के बच्चे ने गेम खेलने के दौरान रुपये गवाएं हैं। इस तरह के प्रकरण में लोग कार्रवाई नहीं चाहते हैं। सजगता बरतकर अभिभावक इस तरह के नुकसान से बच सकते हैं। बच्चों को पढ़ाई के लिए दिए गए मोबाइल फोन से कोई बैंक एकाउंट, यूपीआई (एकीकृत भुगतान इंटरफेस / यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस) या फिर ऑनलाइन लेनदेन न करें। साइबर पुलिस भी ऑनलाइन माध्यमों से जागरूक करती रहती है।

गोरखपुर विश्वविद्यालय समाजशास्त्र विभाग डॉ. मनीष पांडेय ने कहा कि किसी भी समाज में सामाजिक परिस्थितियों के अनुरूप ही अपराध की प्रकृति तय होती है। वर्चुअल रिलेशन एवं डिजिटल प्रौद्योगिकी के सामयिक समाज में अपराध के तरीके भी बदल रहे हैं। ऐसे में परंपरागत अपराध की जगह साइबर अपराध यानी ऑनलाइन ठगी की घटनाएं अधिक हो रही। इसके सबसे आसान शिकार बच्चे ही होंगे। कमजोर समाजीकरण और एकाकीपन के कारण बच्चे ऑनलाइन गेम्स में ज्यादा समय दे रहे हैं। इसी का फायदा उठाकर उन्हें अनेक प्रकार के ऑफर में बहलाकर ठगी का शिकार बनाना सॉफ्ट ऑप्शन हो गया है। परिवार को अपनी पॉलिसी तय करनी होगी, जिसमें मोबाइल के प्रयोग की निगरानी करना होगा।

गोरखपुर विश्वविद्यालय के मनोविज्ञान विभाग गिरिजेश कुमार यादव ने कहा कि लगातार तकनीक के इस्तेमाल का दुष्परिणाम भी सामने आते हैं। मानसिक असंतुष्टि, निराशा, तनाव, अत्यधिक दुश्चिंता या अवसाद ये सभी कहीं न कहीं वेब निर्भरता व ऑनलाइन गेम के दुष्परिणाम ही हैं। इसके नकारात्मक प्रभाव बच्चों पर अधिक पड़ने की संभावना रहती है। बाल मन चंचल, अपरिपक्व व जीवन के अधिक अनुभव न होने के कारण उपयुक्त संतुलन नहीं बना पाते और ऑनलाइन गेम व वेब निर्भरता जैसी नशा के कब शिकार हो जाते हैं इसका उन्हें कोई अंदाजा नहीं होता है। इसका असर आंखों पर भी पड़ता है।

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