कम बजट में नए साल को बनाइए यादगार, बरेली के आसपास हैं कई पर्यटन स्थल, जानें इनके बारे में
नए साल में घूमने का प्लान बना रहे हैं और बजट कम है तो बरेली के आसपास कई ऐसे स्थल हैं, जहां आपको एक बार जरूर घूमना चाहिए। तराई के जंगलों की सैर आपको रोमांचित कर देगी तो बरेली से 48 किमी दूर स्थित अहिच्छत्र महाभारतकाल की याद दिलाएगा।
नए साल का आगमन और सर्दियों की छुट्टियां... घूमने जाने के लिए समय कम है या बजट भी सीमित है तो निराश न हों। बरेली और आसपास 100 किलोमीटर के दायरे में ही ऐसी कई जगहें हैं जो आपको एक बार तो जरूर घूमना चाहिए।
सात नाथ मंदिर
बरेली में नाथ संप्रदाय के सात मंदिर क्रमश: धोपेश्वरनाथ, तपेश्वरनाथ, अलखनाथ, पशुपतिनाथ, मणिनाथ, त्रिवटीनाथ और वनखंडीनाथ मंदिर मौजूद हैं। धार्मिक प्रवृत्ति के लोग यहां दर्शन के लिए जा सकते हैं। पशुपति नाथ मंदिर में कैलाश पर्वत से झरने का दृश्य मन मोहता है। धोपेश्वरनाथ मंदिर के जलाशय से भी धार्मिक आस्थाएं जुड़ी हैं।
रामनगर किला
बरेली शहर से करीब 48 किमी दूर रामनगर में अहिच्छत्र एक ऐतिहासिक महत्व का स्थान है। बताते हैं कि यहां महाभारत काल के अवशेष आज भी मौजूद हैं। पूर्व में यह पांचाल प्रदेश की राजधानी थी और अज्ञातवास में पांडवों ने यहां शरण ली थी। शहर से आंवला होकर रामनगर जाने का सीधा रास्ता है। रामनगर में ही प्रसिद्ध जैन मंदिर स्थित है। पार्श्वनाथ जैन मंदिर देश भर के जैन अनुयायियों की आस्था का केंद्र है। जैन मंदिर में घुसने से पहले चमड़े की बेल्ट व पर्स आदि को काउंटर पर जमा करना होता है।
पहाड़ों की सैर भी कर सकते हैं
अगर आप पहाड़ों पर ही जाना चाहते हैं तो वहां भी जा सकते हैं। टनकपुर में पूर्णागिरि मंदिर, हल्द्वानी के पास कैंची धाम धार्मिक पर्यटन के लिए प्रसिद्ध स्थल हैं। नैनीताल की सैर भी कम समय में की जा सकती है। ये जगहें भी बहुत ज्यादा दूर नहीं हैं।
दुधवा टाइगर रिजर्व
खीरी से करीब 90 किलोमीटर दूर टाइगर रिजर्व में जंगल की सैर कर खुले घूमते हुए जीवों के दीदार किए जा सकते हैं। यहां एक गैंडा पुनर्वास परियोजना भी संचालित है। वानस्पतिक सौंदर्य के लिए भी दुधवा विश्व में मशहूर है।
गोला गोकर्णनाथ
खीरी जिला मुख्यालय से दूरी 35 किलोमीटर दूर छोटी काशी के नाम से विख्यात गोला गोकर्णनाथ में भगवान शिव का पौराणिक मंदिर है। मां मंगला देवी सिद्ध पीठ, बाबा भूतनाथ प्राचीन मंदिर, बाबा त्रिलोक गिरि मंदिर, लक्ष्मनजती मंदिर भी यहीं है।
सिंगाही का राजमहल
लखीमपुर से करीब 60 किलोमीटर दूर सिंगाही कस्बे मे राजमहल बना है। यहां का भूलभुलैया शिव मंदिर अपनी स्थापत्य कला के लिए मशहूर है। बर्किंंघम पैलेस की तरह बना महल अपनी विशिष्ट वास्तु शैली के लिए प्रसिद्ध है।
मेंढक मंदिर (ओयल)
लखीमपुर से 14 किमी दूर ओयल कस्बे में भगवान शिव का प्राचीन मेंढक मंदिर है। यह मंदिर श्री यंत्र और मंडूक (मेंढक) तंत्र के आधार पर बना है।
देवकली तीर्थ
महाभारतकालीन तीर्थ स्थल देवकली, लखीमपुर से 12 किलोमीटर दूरी पर है। मान्यता है कि यहां राजा जन्मेजय ने नाग यज्ञ किया था। यहां प्राचीन शिव मंदिर और तीर्थ बना है। नेपाली बाबा का आश्रम बना है। यहां गुरुकुल में शिक्षा दी जाती है।
चूका
पीलीभीत शहर से 40 किलोमीटर दूर चूका में बाइफरकेशन, सप्तझाल, साइफन आदि प्वाइंट हैं जो बेहद खूबसूरत हैं। जंगल में अक्सर बाघ के भी दीदार हो जाते हैं। यहां बनी हटें भी काफी प्रसिद्ध हैं। हालांकि 10 जनवरी तक सारी हटें बुक हैं।
गौरीशंकर मंदिर
पीलीभीत रेलवे स्टेशन से पांच किलोमीटर दूर सैकड़ों साल पहले यहां जमीन से करीब तीन-चार फुट लंबा शिवलिंग निकला था। इसमें मां गौरी का मुख बना है।
यशवंतरी मंदिर
पीलीभीत रेलवे स्टेशन से तीन किलोमीटर दूर टनकपुर हाईवे के किनारे शहर में बना यशवंतरी मंदिर छोटा पूर्णागिरि का दरबार माना जाता है। यहां पास में ही तालाब है।
शाहजहांपुर
हनुमतधाम: विसरात रोड पर खन्नौत नदी के बीचों-बीच टापू हनुमान जी की 104 फीट की प्रतिमा स्थापित है। रोजाना हजारों लोग हनुमतधाम पर हनुमानजी के विराट स्वरूप के दर्शन और खन्नौत नदी के घाट पर भ्रमण करने आते हैं।
शहीद संग्रहालयः जीएफ कॉलेज के सामने कैंटोनमेंट की जमीन पर शहीद संग्रहालय बनाया गया है। यहां पर 1857 की क्रांति से लेकर 1947 तक की आजादी के इतिहास का सिलसिलेवार वर्णन किया गया है। रंगमंच के लिए ओपन थिएटर भी बनाया गया है।
जैव विविधता पार्कः नगर निगम की ओर से गर्रा नदी के किनारे न्यू सिटी ककरा को बसाया जा रहा है। यहीं पर जैव विविधता पार्क विकसित हो रहा है। जहां नगर निगम की मुहिम के तहत नए वर्ष की शुरुआत पर पौधरोपण कर सकते हैं। करीब 10 हेक्टेयर के पार्क में विभिन्न प्रजाति के जैविक पौधे लगाए गए हैं। गर्रा नदी के किनारे बांध बनाकर पाथवे भी बनाया गया है।
बदायूं
सरसोताः जिला मुख्यालय से करीब 40 किमी दूर स्थित सहसवान नगर के समीप पवित्र सरोवर सरसोता के बारे में कहा जाता है कि भगवान परशुराम ने यहां फरसे का प्रहार किया था जिसके बाद इस सरोवर का निर्माण हुआ था।
सूर्यकुंडः लगभग 12 सौ साल पहले सती प्रथा के दौरान शहर के बाहर मझिया गांव में स्थित ऐतिहासिक सूर्यकुंड का निर्माण कराया गया था। यहां महिलाएं पति की मृत्यु के बाद सती होती थीं। यह दातागंज रोड पर बरेली मुरादाबाद की तरफ से आने के बाद नवादा से करीब तीन किमी दूर पड़ता है।
बदायूं का ताजमहल: ताजमहल की तरह बदायूं में भी नबाव इखलास खां की बेगम ने अपने शौहर की याद में एक मकबरे का निर्माण कराया था जो आज ‘इखलास खां के रोजे’ के नाम से जाना जाता है। मकबरे के चारों कोनों पर बिल्कुल ताजमहल की तरह बुलंद मीनारें हैं जिनमें ऊपर पहुंचने के लिए सीढ़ियां बनी हुईं हैं। 1857 में इस मकबरे का इस्तेमाल अंग्रेजों ने जेलखाने के रूप में किया था।