'चाहते हैं कि मन और बुद्धि का भटकना बंद हो जाए तो ज्ञान होना जरूरी है'
-"ज्ञान नहीं तो जिज्ञासा कहां" विषय पर हुई गोष्ठी
गाजियाबाद। केन्द्रीय आर्य युवक परिषद के तत्वावधान में 'ज्ञान नहीं तो जिज्ञासा कहां' विषय पर ऑनलाइन गोष्ठी का आयोजन किया गया। यह कोरोना काल से 637 वां वेबिनार था। इस कार्यक्रम का संचालन परिषद अध्यक्ष अनिल आर्य ने संचालन किया है। इस दौरान गायिका कुसुम भंडारी, कृष्णा गांधी, कौशल्या अरोड़ा, जनक अरोड़ा, कमला हंस, नीलाम अरोड़ा, संतोष सचान, उषा सूद के मधुर भजन हुए।
मुख्य वक्ता अनिता रेलन ने ज्ञान का तात्पर्य बताते हुए अध्ययन जांच अवलोकन या अनुभव द्वारा अर्जित तथ्यों के प्रति जागरूकता बताया। ज्ञान मस्तिष्क को अधिक सुचारू रूप से और प्रभावी ढंग से कार्य करने में मदद करता है। ज्ञान की शक्ति से हम अपने शरीर की इंद्रियों पर जीत प्राप्त कर सकते हैं। ज्ञान से हमारे मन और बुद्धि का भटकना बंद हो जाता है। ज्ञान एक बोझ है यदि वह तुम्हारा भोलापन ले ले। यदि वह तुम्हें विशेष होने का एहसास कराए तो फिर ज्ञान एक बोझ है। यदि वह जीवन में प्रसन्नता ना लाएं, जीवन में संकलन ना लाएं तो ज्ञान एक बोझ है यदि वह तुम्हें मुक्त न करें। यकीनन इससे परे ज्ञान मन को शुद्ध करता है। ज्ञान की उत्पत्ति जिज्ञासा से होती है जैसा कि विषय बताता है। ज्ञान नहीं तो जिज्ञासा कहां जिज्ञासा नहीं तो नई-नई शोध कहां।
अनिता रेलन ने कहा कि जिज्ञासा ज्ञान का आधार है। गांधी जी कहा करते थे जिज्ञासा के बिना ज्ञान नहीं होता, जैसे दुख के बिना सुख नहीं होता। उन्होंने महाभारत के गुरु द्रोणाचार्य जी के कई दृष्टांत के साथ अपनी बात कही। उन्होंने यह भी बताया कि कर्म से रहित ज्ञान पंगु के समान होता है। उससे ना तो कोई वस्तु प्राप्त की जा सकती है ना ही कोई कार्य सिद्ध होता है जो मन वाणी और कर्म से अपने कर्तव्य कर्म को करता है अर्थात ज्ञान युक्त कर्म के द्वारा ही इसकी सिद्धि होती है। जीवन में ज्ञान अत्यंत आवश्यक है। पर सत्य का पता लगाने के लिए कोरा ज्ञान पर्याप्त नहीं होता। हालांकि ज्ञान विचारों को प्रोत्साहित करता है और उसकी अनुभूति होना मनुष्य को चिंतन की उन गहराइयों में ले जाती है जिसमें जीवन का सार तत्व छिपा है।