Gorakhpur Pollution: कोरोना काल में सांस लेने लायक हुई थी हवा, अब आठ से दस गुना ज्यादा जहरीली

Update: 2023-11-07 07:37 GMT

कोरोना काल में हवा की गुणवत्ता बहुत हद तक सुधर गई थी। तब खुले में सांस लेने वाली स्थिति बनी थी। उसके बाद जैसे-जैसे कल कारखाने और वाहन दौड़े, फिर शहर की हवा में जहर फैलता चला गया। मौजूदा हाल में कोरोना के समय की तुलना में ब्लैक कार्बन नाम का यह जहर वायुमंडल में अब करीब आठ से दस गुना ज्यादा है। इसी प्रकार सेहत के लिए बेहद खतरनाक सल्फर डाई आक्साइड की मात्रा भी 60 से 70 फीसदी तक बढ़ गई है।

ये तथ्य गोरखपुर विश्वविद्यालय के भौतिकी विज्ञान विभाग के ''एनवायरमेंटल साइंस एंड पॉल्युशन'' पर कराए रिसर्च में सामने आया है। भौतिक विज्ञान विभाग के प्रोफेसर प्रो. शांतनु रस्तोगी के निर्देशन में प्रयागराज सिंह व आदित्य वैश्य ने लॉकडाउन के दौरान 22 मार्च से 31 मई 2020 तक पर्यावरण के आंकड़े लेकर उसका वर्ष 2015 से 2019 में प्रदूषण के आंकडों से तुलनात्मक अध्ययन किया। हाल ही में शोध पत्र का प्रकाशन भी हुआ।

शोध में आए तथ्यों का फिर मौजूदा समय के प्रदूषण से मिलान करने पर यह तस्वीर सामने आई है। शोध में पिछले पांच साल की तुलना में लॉकडाउन के समय पर्यावरण में एरोसेल ऑप्टीकल डेप्थ और ब्लैक कार्बन का अध्ययन किया गया। अध्ययन में पाया गया कि पर्यावरण में एरोसेल से मानव जनित कण (सल्फेट, नाइट्रेट व ब्लैक कार्बन आदि) में काफी कमी आ गई थी। पर्यावरण में सल्फेट व नाइट्रेट नहीं के बराबर पहुंच गए थे। जबकि कृषि कार्य में रोक नहीं होने के चलते पर्यावरण में ब्लैक कार्बन 2 से 3 माइक्रोग्राम पर घन मीटर पाया गया।

कोरोना के पहले यह 7 से 10 और मौजूदा समय में 15 से 20 माइक्रो ग्राम प्रति घन मीटर हो गया है। इसी प्रकार सल्फर डाई आक्साइड की मात्रा कोरोना के समय 60 फीसदी तक कम हो गई है और मौजूदा समय में यह बढ़कर 70 से 80 फीसदी तक पहुंच गई है।


सेंट्रल आईजीपी में आता है गोरखपुर, कानपुर व वाराणसी

रिसर्च में मैदानी क्षेत्र को तीन भागों में बांटकर अध्ययन किया गया। वेस्ट आईजीपी (इंडो गंगेटिक प्लेन) जिसमें अमृतसर, पटियाला, देलही, आगरा व सेंट्रल आईजीपी में कानपुर, गोरखपुर, वाराणसी, पटना और ईस्ट आईजीपी में आसनसोल और कोलकता शामिल हैं। सेटेलाइट के आंकड़ों के आधार पर इन सभी मैदानी क्षेत्रों में पर्यावरण का अध्ययन किया गया। लॉकडाउन के समय पर्यावरण का बेहतर प्रभाव सेंट्रल आईजीपी में देखा गया। उसमें भी सबसे अच्छा प्रभाव गोरखपुर में देखने को मिला।

भौतिक विज्ञान विभाग के प्रोफेसर शांतनु रस्तोगी ने बताया कि रिसर्च के पीछे पर्यावरण में फैले मानव जनित कणों का पता लगाना है। कौन से कण किसके उत्सर्जन से फैले हुए हैं, उसका पता लगाकर आवश्यकता पड़ने पर उसपर अंकुश लगाया जा सके। लॉकडाउन होने से कल-कारखाना बंद होने, वाहनों का कम चलने, जनरेटर आदि का कम प्रयोग आदि से पर्यावरण में ब्लैक कार्बन के साथ अन्य मानव जनित कण में अत्यधिक कमी आया। जबकि लॉकडाउन खुलते ही प्रदूषण उसी स्तर पर पहुंचने लगा।

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