सड़कों पर कूड़ा, टॉयलेट पर ताले... इस तरह फिसल गई ताजनगरी की रैंकिंग

By :  SaumyaV
Update: 2024-01-12 05:24 GMT

स्वच्छ सर्वेक्षण में आई रैंकिंग में आगरा नगर निगम 12वें स्थान पर आया है। इसके पीछे नगर निगम अधिकारी तर्क दे रहे हैं कि पहले रैंकिंग 10 लाख की जनसंख्या पर थी, जबकि अब एक लाख से ज्यादा की। 

आगरा की सड़कों पर कचरे के ढेर, बजबजाती नालियां, नालों में चमड़े की कतरन और टॉयलेट पर लगे ताले। ऐसे हालात में शहर की रैंकिंग तो गिरनी ही थी। जी-20 जैसे आयोजन की मेजबानी के बाद भी आगरा के 85वें पर पहुंचने पर पार्षदों का आक्रोश फूट पड़ा है। प्रदेश में छठवें स्थान से लुढ़ककर आगरा नगर निगम 12वें स्थान पर आ गया, लेकिन नगर निगम के अधिकारी तर्क दे रहे हैं कि पहले रैंकिंग 10 लाख की जनसंख्या पर थी, जबकि अब एक लाख से ज्यादा की।

घरों से कूड़ा उठाया नहीं

स्वच्छ सर्वेक्षण 2023 में डोर-टू-डोर कूड़ा कलेक्शन के लिए 300 अंक मिलने थे। कागजों पर आगरा में 86.75 प्रतिशत कूड़ा स्रोत पर ही अलग करके लिया गया बताया गया है, लेकिन पार्षदों ने केवल 27 फीसदी डोर-डू-डोर को सही माना है। गलियों में कूड़ा न उठाने के आरोप लगाए गए हैं। आगरा में कचरे की प्रोसेसिंग 86.75 फीसदी बताई गई है, लेकिन हर दिन 800 मीट्रिक टन कचरे में से केवल 200 टन ही प्रोसेस हो पा रहा है।

महज पांच डलाबघर हटे

शहर की सड़कों पर लगे कचरे के ढेर हटाने और डस्टबिन मुक्त आगरा के नारे पर भी ध्यान नहीं दिया गया। पूरे साल में केवल 5 डलाबघर हटाए गए, जबकि उससे पहले साल में 140 से ज्यादा डलाबघर हटाए थे और उनकी जगह सेल्फी पॉइंट बनाए गए। जून 2023 तक डलाबघर हटाने के दावे किए गए थे, लेकिन मेयर हेमलता दिवाकर अपने कार्यकाल के पहले सर्वेक्षण में बेहतर करके नहीं दिखा पाईं। ताजमहल जैसे स्मारक के गेट पर ही बना डलाबघर रैंकिंग गिराने की बड़ी वजह बना।

चमड़े की कतरन से चोक रहे नाले

नगर निगम के नाले चमड़े की कतरन और कच्चे पेठे से भरे हैं। इस बार सर्वेक्षण मानसून में हुआ, जिसमें बारिश में आगरा कई बार टापू की तरह नजर आया। लोगों का फीडबैक भी इसी वजह से बेहद खराब रहा। नगर निगम केवल 4 गाड़ियों में कतरन ले रहा है, जबकि 150 मीट्रिक टन कतरन हर दिन जूता इकाइयों से निकलकर नालों में पहुंच रही है। यह नालों के चोक होने की सबसे बड़ी वजह है।

18 करोड़ रुपये के सेंसर, चिप बेकार

नगर निगम को आगरा स्मार्ट सिटी की ओर से 18 करोड़ रुपये खर्च करके आरएफआईडी टैग, सेंसर और गाड़ियों में चिप लगाई गईं, जिससे कमांड सेंटर से निगरानी हो सके। 18 करोड़ रुपये बर्बाद हो गए। न मॉनीटरिंग हो पाई, न ही घरों से कूड़ा उठाते समय स्कैन किया जा सका। शहर में किसी भी वार्ड में आरएफआईडी टैग को स्कैन कर कचरा उठाने का काम पूरा नहीं हुआ।

सड़कों की सफाई ही नहीं हो रही

नगर निगम के पास 4300 से ज्यादा सफाई कर्मचारी हैं, जिनसे पूर्व में डोर-टू-डोर कूड़ा कलेक्शन भी होता था। दो साल से निजी कंपनी घरों से कचरा उठाती है। निगम के ये सभी कर्मचारी सड़कों और नालियों की सफाई के लिए हैं, लेकिन जलभराव, नालियां चोक होने और सड़कों, गलियों में सफाई न होने की शिकायतें नगर निगम में सबसे ज्यादा पहुंचती हैं।

पूर्व से आंकड़े बढ़े

नगर आयुक्त अंकित खंडेलवाल ने बताया कि इस बार रैंकिंग एक लाख से ज्यादा आबादी वाले शहरों की हुई है, जिससे 85वां स्थान मिला है। पूर्व से अंक बढ़े हैं, लेकिन क्या कमी रही कि अन्य शहर हमसे आगे रहे। बिंदुवार समीक्षा कर योजना बनाई जाएगी, ताकि अगली बार सर्वेक्षण में सुधार हो पाए।

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