राम दरबार में सब होंगे... पर तीन खास सखाओं की खलेगी कमी; राममंदिर वाद में रही इनकी अहम भूमिका

Update: 2024-01-20 05:14 GMT

राम दरबार में सब होंगे लेकिन पर तीन खास सखाओं की कमी खलेगी। इनकी राममंदिर वाद में अहम भूमिका रही है।लेकिन विराजते देखने का सपना आंखों में लिए विदा हो गए। 

भगवान राम के सखा वानरराज सुग्रीव, राक्षसराज विभीषण, महावीर हनुमान, रीक्षराज जामवंत और शिल्पकला के विशेषज्ञ नल-नील की कथा तो सब जानते हैं। राम ने सीता मुक्ति के लिए रावण से हुए युद्ध में अपने इन सखाओं के योगदान की मुक्तकंठ से सराहना की है, लेकिन कलयुग में राम के तीन सखा ऐसे हुए, जिन्होंने भगवान को उनके दिव्य-भव्य मंदिर में स्थापित करने की लड़ाई में अहम भूमिका निभाई। 

 कोर्ट-कचहरी में रामलला के हक की पैरवी की। उनके पक्ष में गवाही दी। मगर अब जब दिव्य मंदिर बन रहा है तो रामलला को विराजते देखने के लिए इनमें से कोई मौजूद नहीं होगा। आइए जानते हैं इनके बारे में...

पहले रामसखा : देवकी नंदन अग्रवाल

विवादित स्थल को रामलला का जन्मस्थान साबित करने के लिए कोर्ट-कचहरी में लंबी लड़ाई चली। पक्ष-विपक्ष से पांच मुकदमे हुए। इनमें गोपाल सिंह विशारद, महंत रामचंद्र दास परमहंस, निर्मोही अखाड़ा, सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड व रामलला विराजमान की ओर से दाखिल वाद शामिल हैं। सुप्रीम कोर्ट के राम मंदिर से जुड़े फैसले का अध्ययन कर किताब लिख रहे वरिष्ठ पत्रकार डॉ. चंद्र गोपाल पांडेय बताते हैं कि पांचवां मुकदमा रामलला विराजमान की ओर से एक जुलाई, 1989 को दाखिल हुआ।

इसे इलाहाबाद हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश देवकीनंदन अग्रवाल ने रामलला विराजमान और स्थान जन्मभूमि की ओर से नेक्स्ट फ्रेंड के रूप में दायर िकया था। वे स्वयं ही वादी संख्या तीन थे। वे स्वामित्व से जुड़े पहलू पर इस वाद को टर्निंग प्वाइंट के रूप में देखते हैं। इसी वाद में रामलला ने विवादित जगह पर अपने जन्म की बात करते हुए उस स्थान को अपना होने का दावा किया था। अग्रवाल का अप्रैल 2002 में निधन हो गया।

देवकी नंदन की बेटी मीनू कहती हैं कि एक बार मुलायम सिंह ने पिताजी को गिरफ्तार करने के लिए पुलिस भेजी। पिता ने कहा कि शाम छह बजे के बाद गैरकानूनी तरीके से गिरफ्तार नहीं कर सकते। वारंट लेकर आइए। दिल का मरीज होने के बावजूद पुलिस उन्हें गिरफ्तार कर ले गई। दूसरा संस्करण सुनाती हैं ताला खुलने का। उस वक्त भी वह साथ थीं। प्राण प्रतिष्ठा में शामिल होने बर्मिंघम से दिल्ली पहुंचीं मीनू कहती हैं, तब उत्साह चरम पर था। आज के उत्साह को बयां नहीं किया जा सकता।

दूसरे रामसखा : टीपी वर्मा

देवकी के बाद बीएचयू में प्राचीन इतिहास विभाग के प्रोफेसर टीपी वर्मा रामसखा के रूप में शामिल हुए। वर्मा ने न सिर्फ केस की पैरवी की, बल्कि पुरालेखशास्त्री के रूप में रामलला विराजमान के पक्ष में गवाही भी दी। प्रो. वर्मा के बेटे सिद्धार्थ बताते हैं कि पिताजी ने कोर्ट में विष्णुहरि शिलालेख भी पढ़ा था। 12वीं सदी का 20 पंक्तियों का शिलालेख नागरी लिपि व संस्कृत में था। 48 इंच लंबा व 22 इंच चौड़ा शिलालेख कारसेवकों की असावधानी से खंडित हो गया था।

शिलालेख बताता था कि विवादित स्थल पर पूर्व में मंदिर था। वर्मा ने अयोध्या का इतिहास एवं पुरातत्व (ऋग्वेद काल से अब तक) पुस्तक भी लिखी है। रामसखा के रूप में उन्होंने 2002 से 2008 तक पैरवी की। 2008 में स्वास्थ्य कारणों से रामसखा की भूमिका से अलग हुए। 2020 में उनका निधन हो गया।

तीसरे रामसखा त्रिलोकीनाथ पांडेय

फरवरी, 2010 में रामलला के तीसरे सखा के रूप में त्रिलोकीनाथ पांडेय आए। बलिया के पांडेय संघ के प्रचारक रहे। आपातकाल में जेल भी गए। उनके बेटे अमित बताते हैं कि पिताजी ने राममंदिर से जुड़े वाद के सामने घर के बड़े से बड़े कार्यक्रम को महत्व नहीं दिया। 2016 में दिल्ली में वाद की पैरवी करते रहे और उनकी सगाई में भी शामिल नहीं हुए।

तिलक के बीच से ही विहिप व संघ के पदाधिकारियों के साथ दूसरे दिन सीबीआई कोर्ट में पैरवी करने चले गए। वाद में जीत के बाद कहा करते थे कि एक ही इच्छा है कि मंदिर बन जाए और भगवान विराजमान हो जाएं। 2021 में उनका निधन हो गया। अमित ने बताया कि मां को प्राण प्रतिष्ठा का निमंत्रण मिला है। वह अयोध्या पहुंच गई हैं। 

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