कैदियों के लिए निर्धारित नए मानदेय के आदेश को चुनौती, हाईकोर्ट में जनहित याचिका दाखिल |

By :  SaumyaV
Update: 2023-12-02 11:31 GMT

सरकार के नए आदेश के तहत कुशल, अर्धकुशल और अकुशल कैदियों को नया मानदेय निर्धारित करते हुए क्रमश: 40, 30 और 25 रुपये से बढ़ाकर 81, 60 और 50 रुपये कर दिया गया है। जनहित याचिका में इसे न्यूनतम न मानते हुए रद्द करने की मांग की गई है। 

उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से जेलों में बंद कैदियों के लिए हाल ही में निर्धारित किए गए नए मानदेय को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की गई है। हाईकोर्ट ने कैदियों के मानदेय में संशोधन नहीं करने के राज्य अधिकारियों के रवैये पर नाराजगी जताई थी। इसके बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने नया मानदेय निर्धारित किया था। 

सरकार के नए आदेश के तहत कुशल, अर्धकुशल और अकुशल कैदियों को नया मानदेय निर्धारित करते हुए क्रमश: 40, 30 और 25 रुपये से बढ़ाकर 81, 60 और 50 रुपये कर दिया गया है। जनहित याचिका में इसे न्यूनतम न मानते हुए रद्द करने की मांग की गई है। यूपी सरकार की ओर से जारी आदेश को इस आधार पर चुनौती दी गई है कि निर्धारित किया गया नया मानदेय कम है।

याचिका दाखिल करने वाले अधिवक्ता औशिम लूथरा और अथर्व दीक्षित कैदियों के मानदेय बढ़ाने के मामले में पूर्व में दाखिल जनहित याचिका में न्यायमित्र नियुक्त किए गए थे। याचिका में कहा गया है कि कैदियों को पारिश्रमिक के रूप में दिए जाने वाले मानदेय के लिए मुआवजा नियम-2005 को आधार बनाया गया है। इसके अनुसार कैदियों द्वारा अर्जित पारिश्रमिक से 15 फीसदी राशि काट ली जा रही थी और पीड़ितों को भुगतान के लिए बैंक खातों में जमा की जा रही थी।

यह आरोप लगाया भी गया है कि यह राशि न तो पीड़ितों को दी जा रही है और न ही कैदियों को वापस की जा रही है। याचिका में गुजरात राज्य बनाम गुजरात उच्च न्यायालय के मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का भी हवाला दिया गया है, जिसमें यह माना गया है कि कैदी न्यूनतम वेतन अधिनियम के दायरे से बाहर थे। क्योंकि, कैदियों और राज्य के बीच नियोक्ता और कर्मचारी का संबंध नहीं है।

यह भी कहा गया है कि बदलते समय के साथ जेलों में बनने वाले उत्पादों से राज्य को फायदा होने लगा है। ऐसे उत्पाद खुले बाजार में बेचे जा रहे हैं और ऐसी बिक्री से प्राप्त आय से राज्य को लाभ हो रहा है। इस तरह से ऐसे मामलों में कर्मचारी-नियोक्ता संबंध स्थापित भी हो रहा है।

इसी मुद्दे में एक याचिका (बंदी अधिकार आंदोलन बिहार बनाम भारत संघ व अन्य) सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। दूसरे राज्यों में नए संशोधित वेतन नीतियां भी बनाई गईं हैं, जो कैदियों को लाभ पहुंचाने वाली हैं। लिहाजा, यूपी सरकार के मौजूदा आदेश को रद्द कर न्यूनतम वेतन अधिनियम के अनुसार मानदेय तय करने का निर्देश दिया जाए।

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