जुनैद-दानिश-शिखर-पीयूष साथ खेलते हैं वॉलीबॉल, सद्दाम की मां राम मंदिर के लिए बनाती हैं माला

By :  SaumyaV
Update: 2024-01-16 07:20 GMT

बयरु न कर काहू सन कोई। राम प्रताप बिषमता खोई।।

यानी, कोई किसी से शत्रुता नहीं करता था, प्रभु श्रीराम के प्रताप से सबमें विषमता और भेदभाव खत्म हो गया था। 

जुनैद, दानिश, शिखर, पीयूष, जीशान, सद्दाम। अयोध्या में ये सब रामलला के पड़ोसी हैं। रामकोट इलाके में किसी का घर 100 मीटर दूर तो किसी का रामलला विराजमान की चहारदीवारी से सटा हुआ है। ये धाकड़ छोरे अशर्फी महल के पास श्याम क्लब में हर शाम वॉलीबॉल खेलने और हर सुबह अखाड़े में दांव-पेंच लगाने इकट्ठा होते हैं।

यहां क्लब में प्रवेश से पहले धर्म नहीं पूछा जाता। सभी साथ खेलते हैं। सच्चे खिलाड़ियों की तरह। 40 साल पहले इस क्लब को शुरू करने वाले घनश्यामदास पहलवान कहते हैं, यही तो अयोध्या की तासीर है। दुनियाभर में हिंदू-मुसलमान चाहे कितना झगड़ लें, हम अयोध्याजी के लोग इस पर ध्यान ही नहीं देते। यहां सब राम के हैं और राम सबके।

वह एक-एक खिलाड़ी से मुलाकात करवाते हैं। जुनैद ने एलएलबी व फिजिकल एजुकेशन में बैचलर्स किया है। 10 साल से यहां वॉलीबॉल खेल रहे हैं, स्टेट और नेशनल खेल चुके हैं। मो. दानिश सिविल इंजीनियर की पढ़ाई कर रहे हैं और इस साल स्टेट लेवल की तैयारी भी।

शिखर पांडे एमएससी करने के बाद एसएससी की तैयारी कर चुके हैं। कई बार यूपी टीम का हिस्सा रहे हैं। पीयूष मिश्रा रूस से एमबीबीएस कर रहे हैं, लेकिन जब भी घर आते हैं, यहां खेलने जरूर पहुंचते हैं। ये सब के सब टीम हैं। खेलना, घूमना, शादी-ब्याह में साथ होते हैं। मतलब सुख-दुख वाला साथ है।

ईद पर सभी खिलाड़ियों की साथ दावतें होती हैं और दिवाली पर ग्राउंड पर ही रोशनी-आतिशबाजी। असित सिंह यूपी टीम के हेड कोच बनकर पिछले दिनों टूर्नामेंट में गए थे। कहते हैं पिछली बार जब यहां जिले के सिलेक्शन हुए, तो उसमें भी 12 में से 7 बच्चे मुस्लिम थे। क्लब से निकले 80 फीसदी खिलाड़ियों को खेल कोटे से सरकारी नौकरी मिल चुकी है।

पिछले साल 8 बच्चे रक्षा मंत्रालय में चुने गए थे तो कुछ रेलवे में। प्रिंस भैया इन सबके सीनियर हैं। वह याद करते हैं, 1992 में जब माहौल खराब हुआ तो उनके मुसलमान दोस्त हिंदुओं के घर ही सामान छोड़ गए थे। 32 साल बाद अब राममंदिर बन रहा है, तो इससे खुश होने की वजह अयोध्या के मुसलमानों के हिस्से भी आई है। बात आखिर रोजगार की है।

सद्दाम की मम्मी मंदिर के लिए फूल-माला का काम करती हैं। आजकल वैसे गेंदे के फूलों से रामलला के लिए हार तैयार कर रही हैं। हनुमानगढ़ी में जो प्रसाद चढ़ता है, उसके गत्तेवाले डिब्बे आटे की लेई लगाकर मुसलमान औरतें ही तैयार करती हैं।

डिमांड इतनी ज्यादा है कि राममंदिर से तीसरी गली में रहनेवाली शाहिद की दादी और मोहल्ले की तमाम औरतें आजकल दिनरात यही काम कर रही हैं। अयोध्या में 10 हजार मंदिर हैं। और न जाने कितने मंदिरों के कपड़े बाबू टेलर ही सिलकर देते हैं।

उनके अलावा कम से कम पांच-छह मुसलमान टेलर से ही मंदिर-महंत गोटा-बॉर्डर वाले कपड़े भगवान के लिए खरीदकर ले जाते हैं। रामकोट के लाला टेलर तो अपनी जमीन भी राममंदिर के लिए दे चुके हैं। यही नहीं राममंदिर बनाने वाले मजदूर भी इसी मोहल्ले में अख्तर अली मुखिया के घर में किराये से रहते हैं।

40 मजदूर इनके यहां और लगभग 150 मजदूर मोहल्ले के बाकी मुसलमानों के घर में पिछले सालभर से रह रहे हैं। अयोध्या में बमुश्किल 10 हजार मुसलमान हैं, आबादी का 10 प्रतिशत। हनुमानगढ़ी वार्ड के अलावा हर इलाके में इनकी बसाहट है। यहां अयोध्या में अलग-अलग मोहल्लों में मुसलमान रहते हैं।

बाबरी मस्जिद के मुद्दई हाशिम अंसारी के बेटे इकबाल अंसारी साल में कम से कम चार बार, होली-दिवाली जैसे हिंदू त्योहारों पर रामलला के पुजारी सत्येंद्र दास के घर मिठाई-प्रसाद खाने जाते हैं। आज संक्रांति पर भी उन्हें खिचड़ी खाने का न्योता मिला था और अपने दोनों पुलिस गार्ड को लेकर अंसारी उनके घर गए थे।

अंसारी कहते हैं 450 बरस मुसलमानों ने वहां नमाज पढ़ी थी, अब वक्त है हिंदुओं को उनकी आस्था पूरी करने देने का। अयोध्या में बहती भले सरयू हो लेकिन गंगा-जमुनी तहजीब की मिसालें हर गली मोहल्ले में मिल जाएंगी।

Tags:    

Similar News