आसान नहीं आकाश की सियासी राह, बड़ी सियासी लकीर खींचने की चुनौती, MP समेत इन राज्यों में सिमटा BSP का आधार
बसपा सुप्रीमो ने आकाश को उत्तराधिकारी घोषित करने के साथ यूपी और उत्तराखंड के साथ ही अन्य राज्यों में संगठन को मजबूत करने का जिम्मा सौंपा है। इसकी कवायद पार्टी के कई बड़े नेता पहले भी कर चुके हैं। पंजाब, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में बीते विधानसभा चुनाव में पार्टी की रणनीति सफल नहीं रही।
बसपा में मायावती का उत्तराधिकारी बनने के बाद आकाश आनंद की आगे की राह आसान नहीं है। युवा वोटरों को पार्टी के साथ जोड़ने के साथ उनके सामने समकक्ष नेताओं से बड़ी सियासी लकीर खींचने की चुनौती है। बीते विधानसभा चुनावओं में बसपा कई सीटें जीत चुकी हैं। जबकि इस साल पंजाब, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ आदि राज्यों में हुए चुनाव में बसपा को उम्मीद के हिसाब से सफलता नहीं मिली।
बसपा सुप्रीमो ने आकाश को उत्तराधिकारी घोषित करने के साथ यूपी और उत्तराखंड के साथ ही अन्य राज्यों में संगठन को मजबूत करने का जिम्मा सौंपा है। इसकी कवायद पार्टी के कई बड़े नेता पहले भी कर चुके हैं। पंजाब, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में बीते विधानसभा चुनाव में पार्टी की रणनीति सफल नहीं रही।
पंजाब में शिरोमणि अकाली दल से गठबंधन का मायावती का प्रयोग सफल नहीं रहा तो मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में गोंडवाना गणतंत्र पार्टी से गठबंधन का भी पार्टी को फायदा नहीं पहुंच सका।
मध्य प्रदेश में वर्ष 2018 के चुनाव में बसपा को 5.01 फीसदी वोट मिले थे, जो इस बार सिमटकर 3.35 फीसदी ही रह गए। इसी तरह छत्तीसगढ़ में भी बसपा को 2.07 फीसदी वोट ही हासिल हुए।
लोकप्रियता की भी परीक्षा
दलित समाज के युवा वोटरों में आजाद समाज पार्टी के चंद्रशेखर आजाद लगातार पहुंच बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं। पश्चिम में कुछ हद तक उन्हें सफलता भी मिली है। पर, आजाद समाज पार्टी राजनीति की मुख्यधारा में आने में अभी सफल नहीं हुई हैं। यूपी में हुए बीते विधानसभा चुनाव में आकाश आनंद युवाओं को जोड़ने की मुहिम चला चुके हैं। पार्टी के उत्तराधिकारी के रूप में आनंद के सियासी कौशल पर लोगों की निगाहें टिक गई हैं।
राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा भी संकट में
बसपा का राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा भी संकट में है। इस वजह से आकाश आनंद की भूमिका बढ़ जाती है। उन्हें बसपा को बाकी राज्यों में मजबूत करना है ताकि पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा बचाने के लायक सीटें मिल सकें इसके लिए यूपी और उत्तराखंड के अलावा पंजाब, राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में बसपा को पूरी अपना वोट बैंक बढ़ाना होगा।
परिवारवादियों की राह पर मायावती
दलितों के उत्थान और सोशल इंजीनियरिंग को मूल मंत्र मानने वाली बसपा सुप्रीमो मायावती भी देश व प्रदेश के दूसरे कई राजनीतिक दलों की तरह परिवारवाद की राह पर हैं। मायावती ने रविवार को अपने भतीजे और नेशनल कोआर्डिनेटर आकाश आनंद को उत्तराधिकारी घोषित किया। विधान परिषद और विधानसभा में मात्र एक-एक सदस्य के साथ अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही मायावती ने लोकसभा चुनाव 2024 के मद्देनजर यह बड़ा राजनीतिक दांव खेला है। बसपा सुप्रीमो की इस घोषणा के बाद एक बार फिर परिवारवाद की राजनीति पर चर्चा शुरू हो गई है।
राजनीतिक दलों में परिवारवाद का चलन आम है। सपा, कांग्रेस, रालोद, सुभासपा, अपना दल, निषाद पार्टी और यहां तक कि भाजपा नेताओं में भी परिवारवाद जगजाहिर है। हालांकि, बसपा संस्थापक स्वर्गीय कांशीराम राजनीति में परिवारवाद के विरोधी थे। उन्होंने अपने भाई दरबारा सिंह से लेकर अन्य परिवारजन को राजनीति से दूर रखकर मायावती को बसपा का उत्तराधिकारी बनाया था। लेकिन मायावती खुद को परिवारवाद से दूर नहीं रख पाईं। उन्होंने पहले अपने भाई आनंद को पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया। अब भतीजे को उत्तराधिकारी घोषित कर दिया।
आकाश को जिस तरह से मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में बसपा के चुनाव प्रचार की कमान सौंपी गई थी। उससे संकेत मिल रहे थे कि मायावती जल्द उन्हें उत्तराधिकारी घोषित कर सकती हैं। राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में उम्मीद के हिसाब से सफलता न मिलने के बाद मायावती ने लोकसभा चुनाव के मद्देनजर परंपरागत दलित वोट बैंक को साधने के लिए दांव खेला है। मायावती को उम्मीद है कि आकाश के कारण युवा वर्ग बसपा के साथ मजबूती से जुड़ेगा। आकाश न सिर्फ युवा हैं बल्कि टेकसेवी भी हैं और युवाओं से कनेक्ट बनाते नजर आते हैं।
बसपा में तो दूसरी पंक्ति के नेता भी नहीं थे
राजनीतिक विश्लेषक रतनमणि लाल का मानना है कि मायावती ने सत्ता में रहने के दौरान भी पार्टी में कभी दूसरी पंक्ति तैयार नहीं की। उसकी वजह यह है कि वह किसी पर ज्यादा विश्वास नहीं करतीं। यही वजह है कि राष्ट्रीय महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा सहित चंद नेताओं को छोड़ दें तो बाकी सभी पुराने दिग्गज मायावती को छोड़कर चले गए।
मिशन से जुड़े कार्यकर्ता आहत होते हैं
वरिष्ठ पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं कि स्वर्गीय कांशीराम ने बहुजन मिशन के साथ पार्टी की स्थापना की थी। लेकिन अब वह परिवार की पार्टी बन गई है। राजनीतिक दलों के परिवारवाद से वे कार्यकर्ता आहत होते हैं जो किसी समाज या देश के मिशन को लेकर उनसे जुड़ते हैं। उनका कहना है कि मायावती को आकाश को ही अपना उत्तराधिकारी बनाना था। यही वजह है कि समय रहते उन्होंने अधिकतर वरिष्ठ नेताओं को पार्टी से बाहर कर दिया।
अब बसपा पूरी तरह समाप्त हो जाएगी : भाजपा
बसपा सुप्रीमो मायावती की ओर से भतीजे को उत्तराधिकारी घोषित करने के बाद भाजपा ने मायावती पर तंज कसा है। पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी ने कहा कि उत्तराधिकार परिवार में होता है, राजनीतिक दल में नहीं। मायावती ने पहले कांशीराम के मिशन को कमीशन में बदला और अब परिवारवाद के दलदल में धकेल दिया। उन्होंने कहा कि अब बसपा पूरी तरह समाप्त हो जाएगी।