बागेश्वर उप-चुनाव प्रचार के दौरान उत्तराखंड बेरोज़गार संघ के अध्यक्ष बॉबी पंवार की क्यों हुई थी गिरफ्तारी ?

Update: 2023-09-05 16:23 GMT

उत्तराखंड के बागेश्वर विधानसभा सीट पर उपचुनाव 5 सितंबर को यानी आज संपन्न हो गया है।

हर उपचुनाव की तरह कुछ चीज़ें सामान्य हैं, जैसे कि सत्ताधारी बीजेपी और मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस का जीत का दावा विपक्ष का सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग का आरोप। एक बात इस उपचुनाव में ख़ास रही की जो उत्तराखंड की राजनीति में कम नज़र आने वाले तथ्य को सामने रखती है, वह है एक तीसरे पक्ष का असर।

यह तीसरा पक्ष आम आदमी पार्टी या उत्तराखंड क्रांति दल नहीं हैं, यह तीसरा पक्ष है बेरोज़गार

ज़िला प्रशासन ने बागेश्वर में धारा 144 लगा दी थी।इसके तहत सिर्फ़ एक बार गिरफ़्तारी हुई, सभी दलों ने धरना-प्रदर्शन, जनसंपर्क भी किया लेकिन गिरफ़्तारी हुई उत्तराखंड बेरोज़गार संघ के अध्यक्ष बॉबी पंवार और उनके साथियों की ।

राजनीति के जानकार कह रहे हैं कि उत्तराखंड बीजेपी विपक्ष से नहीं, बेरोज़गारों से डरती है।

पिछले कुछ वक्त से एक के बाद एक सरकारी नौकरियों में धांधली के मामले जैसे सामने आए हैं, युवाओं में उसे लेकर आक्रोश सड़कों पर दिखा है।

सरकार ने बेरोज़गारों पर जैसे कार्रवाई की है, उससे इस बात में दम लगता है।

बागेश्वर पुलिस ने 25 अगस्त को धारा 144 के उल्लंघन के आरोप में उत्तराखंड बेरोज़गार संघ के अध्यक्ष बॉबी पंवार, कार्तिक उपाध्याय, नितिन दत्त, राम कंडवाल, भूपेंद्र कोरंगा को गिरफ्तार कर लिया।भूपेंद्र कोरंगा ने varta 24 को बताया कि उस दिन क्या हुआ था वह कहते हैं कि बॉबी पंवार बेरोज़गार संघ के साथियों के साथ उत्तराखंड में बेरोज़गारों और उनके अभिभावकों से मिल रहे हैं।

इसी क्रम में वह अल्मोड़ा, हल्द्वानी होते हुए 25 अगस्त को बागेश्वर आने वाले थे।इसकी सूचना उन्होंने बागेश्वर के ज़िलाधिकारी और कुमाऊं के कमिश्नर को पत्र के ज़रिए दे दी थी।इसका जवाब 24 अगस्त की रात 11 बजे के बाद आया इसमें कहा गया था कि चूंकि बागेश्वर में चुनाव के मद्देनज़र धारा 144 लागू है इसलिए आप क्षेत्र के रिटर्निंग ऑफ़िसर से अनुमति लें।जब तक यह जवाब आया तब तक बॉबी पंवार बागेश्वर पहुंच चुके थे।उन्होंने तय किया कि सुबह रिटर्निंग ऑफ़िसर से मिलकर इस बात की अनुमति ली जाएगी बागेश्वर में अपना अभियान कैसे जारी रख सकते हैं।इससे पहले उन्होंने बागेश्वर के बागनाथ मंदिर में दर्शन करने जाना तय किया।कोरंगा बताते हैं कि सुबह वे 5 लोग बागनाथ मंदिर जाने के लिए निकले, जैसे ही उन्होंने नुमाइश खेत में गाड़ी खड़ी की, वहां बागेश्वर के कोतवाल पहुंच गए।

उन्होंने बॉबी पंवार को एक पत्र दिया उसमें चुनाव संहिता का उल्लंघन न करने की हिदायत थी पत्र रिसीव करते ही उन्होंने बॉबी पंवार से उनका फ़ोन मांगा,जिसे उन्होंने देने इनकार कर दिया।

इस पर पुलिस की एसओजी टीम ने पंवार और उनके साथियों गिरफ्तार कर सीजेएम अदालत में पेश किया। वहां से उन्हें बिना शर्त ज़मानत मिल गई।बागेश्वर के पुलिस अधीक्षक अक्षय प्रह्लाद कोंडे ने बताया कि गोपनीय सूचना मिली थी कि बॉबी पंवार अपने समर्थकों के साथ बागनाथ मंदिर परिसर में प्रेस वार्ता और सभा आदि कर सकते हैं।

इससे उनकी चुनाव को प्रभावित करने की मंशा ज़ाहिर हो रही थी, इसलिए पुलिस ने यह कार्रवाई की है।बागेश्वर चुनाव की कवरेज को लेकर प्रशासन का बर्ताव मीडिया के साथ दोस्ताना नहीं रहा। न्यूज पोर्टल मोहन के पत्रकार मोहन कैंतुरा देहरादून से चुनाव कवर करने के लिए बागेश्वर पहुंचे थे।

बॉबी पंवार की गिरफ़्तारी से कुछ देर पहले वह कुछ दूरी पर स्थानीय लोगों से बातचीत कर रहे थे। शोर सुनकर वह घटनास्थल की ओर दौड़े। उन्होंने गिरफ़्तारी का फ़ेसबुक पर लाइव प्रसारण शुरू कर दिया।इस दौरान पुलिस ने उन्हें रोकने की कोशिश की। जब उन्होंने कवरेज नहीं रोका तो पुलिस ने कथित तौर पर उनकी माइक आईडी ज़मीन पर पटककर तोड़ दी और फ़ोन फेंक दिया। इससे वह टूट गया।कैंतुरा बताते हैं कि उनके इस लाइव को अबतक सवा लाख से ज़्यादा बार देखा गया है।

वो कहते हैं कि इस दौरान कुछ लोग 'बॉबी पंवार ज़िंदाबाद', 'बेरोज़गार संघ ज़िंदाबाद' के नारे लगा रहे थे, लेकिन वो बॉबी पंवार के साथ नहीं थे।

स्थानीय पत्रकारों ने उन्हें बताया कि नारे लगाने वाले लोग बजरंग दल और भारतीय जनता युवा मोर्चा से जुड़े थे।इन लोगों ने भी कैंतुरा के साथ धक्का-मुक्की की थी।इन घटनाओं के बाद प्रशासन ने आदेश जारी कर कहा कि चुनाव की कवरेज के लिए बागेश्वर से बाहर के पत्रकारों को प्रशासन से इजाज़त लेनी होगी।बागेश्वर की घटना अकेली और अपवाद नहीं है. राज्य की बीजेपी सरकार को विपक्ष की ख़ास परवाह नहीं है, लेकिन बेरोज़गारों के हर प्रदर्शन पर वह सतर्क हो जाती है पुलिस सक्रिय हो जाती है।इस साल 9 फरवरी को भर्ती घोटालों के विरोध में देहरादून के गांधी पार्क में बेरोज़गार संघ ने धरना दिया था।

इसमें जितने युवाओं की भीड़ पहुंची थी, वो अलग उत्तराखंड राज्य के लिए चले आंदोलन के बाद पहली बार इतनी संख्या में थी पुलिस ने बेरोज़गारों पर लाठीचार्ज किया था।मार्च में जब बेरोज़गार संघ ने गांधी पार्क में सत्याग्रह शुरू करने का ऐलान किया तो देहरादून नगर-निगम ने पार्क में धरना-प्रदर्शन प्रतिबंधित कर दिया।

वहां से बेरोज़गारों को एकता विहार स्थित धरनास्थल भेज दिया गया। पुलिस ने एक बार फिर बेरोज़गार संघ को निशाना बनाया। पुलिस ने धरना दे रहे युवाओं को हिरासत में ले लिया। उत्तराखंड आंदोलन के मूल में पहाड़ी क्षेत्र की पहचान से भी ज़्यादा कोई मुद्दा था तो वह था रोज़गार।

अलग राज्य के लिए चले आंदोलन के दौरान लगने वाला एक नारा था, 'नशा नहीं, रोज़गार दो' लेकिन बीते 22-23 सालों में हुआ इसके विपरीत ही है।

उत्तराखंड में रोज़गार की तलाश में पलायन लगातार जारी है कोरोना के दौरान में वापस घर लौटे लाखों लोग लॉकडाउन खत्म होने के बाद फिर काम की तलाश में दूसरे राज्यों में चले गए।

राज्य में पिछले कुछ समय से हुई भर्ती परीक्षाएं एक के बाद एक घोटालों से घिरी नज़र आ रही हैं।

कई पुरानी भर्ती परीक्षाओं में भी घोटाले सामने आए हैं, जिनके आधार पर लोग सालों से नौकरी कर रहे थे।इस बीच लगातार बेरोज़गारों की मांग उठा रहा बेरोज़गार संघ और उसके अध्यक्ष बॉबी पंवार एक मंच बन गए हैं।बेरोज़गार युवा इस मंच पर अपनी बातें रखते हैं।यह बेरोज़गार संघ अधिकतर भर्ती घोटालों का पर्दाफाश करने का दावा करता है।

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