सबके लिए क्यों खुले एनडीए के द्वार

Update: 2023-07-20 07:36 GMT

देश में जहां एक तरफ लोकसभा चुनाव की तैयारी शुरू हो गई है । वहीं दूसरी तरफ से संसद का मॉनसून सेशन में चल रहा है । लोकसभा चुनाव के लिए पक्ष और विपक्ष दोनों नहीं कमर कस ली है । जहां विपक्ष द्वारा स्थापित नए दल कई नए चेहरे नजर आ रहे हैं । वहीं बीजेपी के सहयोगी दलों में भी नए नामों का स्वागत किया जा रहा है ।

पर इन सब में कुछ सवाल है जो राजनीतिक हलचल पर नजर रखने वाले जानकारों के दिमाग में घूम रहे हैं । आखिर बीजेपी को 2024 के लिए ऐसी पार्टियों की क्या जरूरत पड़ गई जिनका एक भी सदस्य लोकसभा में नहीं है । जी हां इस बार हुई एनडीए की मीटिंग में 38 में से 12 ऐसी पार्टियां थी जिनका एक भी सदस्य लोकसभा का हिस्सा कभी नहीं रहा है । ऐसा क्या हो गया है कि एकला चलो की रणनीति रखने वाली बीजेपी अचानक सहयोगियों और छोटे दलों को महत्व देने लग गई हैं ।

जानते इस रिपोर्ट में । दरअसल 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने कर्नाटक में 28 में से 25 सीटें जीती थी। वहीं कांग्रेस और जेडीएस को एक-एक सीट पर ही संतोष करना पड़ा था । पर अब जब विधानसभा के चुनाव हुए तब राजनीतिक समीकरण बदले और राज्य का सियासी दाव भी पलट गया । कर्नाटक विधानसभा चुनाव के बाद अगर यही हालात रहे तो बीजेपी को लोकसभा चुनाव में 14- 15 सीटों पर सिमट कर रहना पड़ सकता है । इसलिए बीजेपी की नजर देवरकोंडा की जेडीएस पर है । इस बार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 42.9 फ़ीसदी वोट शेयर मिले जिसके कारण 335 सीटों पर कांग्रेस जा बैठी । वहीं बीजेपी को 66 सीटों पर और जेडीएस को 19 सीटों पर समाधान करना पड़ा । जो किसी भी मामले में बीजेपी के लिए अच्छी खबर नहीं है । यह इतना बड़ा ग्याप हैं जो मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, गुजरात और उत्तराखंड मिलाकर भी पूरा नहीं हो पाएगा ।

अब तक बीजेपी जिस तरह से परफॉर्म कर रही है । वह वैसा ही होता रहा तो बीजेपी को अपना कुनबा बढ़ाकर नुकसान भरपाई करना जरूरी हो जाएगा । कर्नाटक के बाद बारी आती है पंजाब की । किसान आंदोलन के बाद बीजेपी का एक समर्थक अकाली दल पीछे हट गया है । जिसके बाद पंजाब में जीत हासिल करने के लिए बीजेपी को अभी भी एक दोस्त की तलाश बाकी है । कुछ समय पहले जालंधर सीट पर उपचुनाव किए गए जिसके नतीजे परेशान करने वाले हैं । यहां आम आदमी पार्टी को जहां 34 फ़ीसदी वोट मिले वहीं कांग्रेस को 27 और बीजेपी को मात्र 15% वोट मिले । इन हालातों में पंजाब में लोकसभा की सीटें निकालना मुश्किल हो सकता है । इनके अलावा किसान आंदोलन का मुद्दा है । एक्सपोर्ट की माने तो आने वाले लोकसभा चुनाव में बिहार, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल में बीजेपी को 50 से 60 सीटों का नुकसान हो सकता है । इसीलिए इन राज्यों का नुकसान पूरा करने के लिए बीजेपी को ओडिशा और आंध्र में नए साथी की तलाश है ।

2019 का महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव होने के बाद जिस तरह से राज्य में राजनीतिक उथल-पुथल मचा है । उसका भी नुकसान बीजेपी को हो सकता है । 2019 में बीजेपी को लोकसभा चुनाव में राज्य के कुल 48 सीटों में से 23 पर जीत हासिल की हुई थी । वहीं शिवसेना को 18 सीटें मिली थी ।इसके बाद हुआ विधानसभा चुनाव जिसमे जीत बीजेपी सेना के हाथो आई पर दोनों के बीच बात नहीं बनी और शिव सेना बीजेपी अलग हो गई और सेना का एनसीपी कांग्रेस साथ मिलकर महा विकास आघाडी का गठबंधन तो हो गया । बीजेपी फिर भी नहीं रुकी उन्होंने शिवसेना के दो टुकड़े किए और एकनाथ से हाथ मिला लिया । इसका भी विपरीत परिणाम बीजेपी पर हो सकता है । इसके अलावा एनसीपी के भी दो गुट हो गए जो शरद पवार के चाहने वालों को बुरी लगी। इन सभी बातों का परिणाम लोकसभा चुनाव में देखने को मिल सकता है । बीजेपी भी जानती है इसीलिए एक भी लोकसभा सीट ना होने के बावजूद सिर्फ बड़ा करने के लिए बीजेपी हर पार्टी को चाहे वह कितनी छोटी क्यों ना हो वेलकम कर रहा है ।

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