मुस्लिमों से सभी विपक्षी दल क्यों बना रहे है दूरी? क्या इसके पीछे कोई रणनीति है ?
दिल्ली : चुनाव में लगातार मुस्लिम उम्मीदवारों की संख्या में कमी देखी जा रही है। देश में आजादी के बाद 1952 से अब तक जितने भी चुनाव हुए उनमें यह ग्राफ लगातार घटता जा रहा है। इनमें वो दल शामिल है जो खुद को मुस्लिमों का हिमायती बताते है। जानते है आखिर क्या कारण है जिससे सभी राजकीय पक्ष मुस्लिमों से दूरी बनाने लगे है. 1980 के दशक में मुस्लिमों आबादी 11 फीसदी हुआ करती थी. आज यह आबादी बढ़कर 14 फीसदी हो गई है। पर संसद के अंदर उनका प्रतिनिधित्व 5 फीसदी से भी कम है। 2019 में जहा लोकसभा में इनका प्रतिनिधित्व 4.97 फीसदी था। जब की 2014 में यह अकड़ा 4.23 फीसदी था.
जातीय समीकरण
दरअसल चुनाव में उन्हीं उम्मीदवारों को टिकट दिया जाता है जो जीत की गारंटी दे सके । इसके अलावा जिस परिसर में चुनाव का उम्मीदवार देना है। वह ऐसा व्यक्ति देखा जाता है जिसकी एरिया में पकड़ अच्छी हो। जिस जाती का प्रभाव ज्यादा होता है उसी जाती के व्यक्ति को पहला मौका दिया जाता है. इस क्रम में कई बार मुस्लिम प्रत्याशी पिछड़ जाते है। जिस कारण वो प्रभावी संसद अपना प्रतिनिधित्व नहीं बढ़ा पाते। इसके अलावा जानकारी की कमी शिक्षा की कमी भी एक मेजर कारण है. मुस्लिम वर्ग में शिक्षा का स्तर काफी नीचे है. और जो पढ़ते भी है वो मदरसा की शिक्षा लेते है। जिसे मदरसे के आलावा कही महत्त्व नहीं दिया जाता।
महंगा चुनाव
दिन-ब-दिन चुनाव लड़ना काफी महंगा होता जा रहा है. इसमें पहले ही बताया की इस वर्ग में शिक्षा की कमी देखी जाती है. जिस कारण रोजगार के नाम पर छोटे मोठे काम चुनते है। पिछले 6 दशकों में चुनाव की प्रक्रिया काफी महंगी होती इस कारण भी आने से ही कतराते है. जब की पार्टियां चुनाव में ऐसा प्रत्याशी चुनते हैं जो पार्टियों को मोटा फण्ड लाकर दे सके।
2024 केवल 80 मुस्लिम उम्मीदवार
इस लोकसभा चुनाव में भी यही देखने को मिल रहा है इस बार 12 पार्टियों ने मिलकर 1490 उम्मीदवार चुनाव में खड़े किये है पर इनमे मुस्लिम प्रत्याशी मात्र 80 है।
कांग्रेस में केवल 12 मुस्लिम उम्मीदवारों को उतारा। 2019 में कांग्रेस ने 34 मुस्लिम उम्मीदवार उतारे थे। पिछली बार गुजरात और महाराष्ट्र में भी मुस्लिम उम्मीदवार दिए थे पर इस बार तो इन राज्यों में एक भी मुस्लिम प्रत्याशी नहीं है। इससे पहले हर बार 1-2 प्रत्याशी जरूर होते थे।
वही सपा की बात करे जो केवल मुस्लिमों और यादवों के भरोसे चुनाव जीतते है उन्होंने भी केवल 4 मुस्लिम उम्मीदवारों को मौका दिया। राष्ट्रिय जनता दल ने तो केवल 2 मुस्लिम प्रत्याशी खड़े किये है। इसमें बसपा एकमात्र पार्टी है जिसने 35 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दी। बसपा ने 2014 में 61 तो 2019 में 39 उम्मीदवार थे। टीएमसी ने भी 6 मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है। AITC ने 6 उम्मीदवार उतारे है । CPM ने भी 2014 में 14 उम्मीदवार उतारे थे जो इसबार केवल 10 उम्मीदवार उतारे है। CPI ने तो मुस्लिमो के और पीठ ही दिखा दी है। RJD ने 2014 में जहा 6 मुस्लिम उम्मीदवार उतारे थे जो 2019 में 5 और इस वर्ष केवल 02 उम्मीदवार उतारे है। एडीएमके और एनसीपी ने 1- 1 उम्मीदवार उतारे है । वही बीजेपी ने 1 मुस्लिम उम्मीदवार उतारा है।
मुस्लिमो की हालत दलित और आदिवासियों से भी बुरी
2006 में तत्कालीन सरकार ने एक कमेटी बनाई थी। इस सच्चर कमिटी के अनुसार देश के मुस्लिमों की हालत दलित और आदिवासियों से भी बुरी है। सारक्षरता , स्वच्छता, कमाई, स्वस्थ सभी स्तर पर मुस्लिम इन्ही सभी करने से मुस्लिम सभी पार्टियों के मेनिफेस्टो में तो होते है पर संसद में नहीं।