30 जून को बिजनौर क्यों जा रहे हैं अमित शाह, जानें मुख्य कारण
बिजनौर में 2 लोकसभा सीटें हैं. एक बिजनौर और दूसरी नगीना. दोनों ही सीटों पर फिलहाल बसपा के सांसद हैं. 2019 में मोदी लहर के बावजूद बसपा-सपा का गठजोड़ इन दोनों ही सीटों पर काम कर गया था और बिजनौर सीट से बसपा के मलूक नागर और नगीना सीट से बसपा के गिरीश चंद्र सांसद जीते थे. मेरठ जिले की हस्तिनापुर सीट भी बिजनौर लोकसभा क्षेत्र में ही आती है।
भाजपा ने 2019 के लोकसभा चुनाव में हारी पश्चिमी यूपी की सीटों खास फोकस शुरू कर दिया है। गृह मंत्री अमित शाह 30 जून को बिजनौर से अपने इस अभियान शुरूआत करने जा रहे हैं। बिजनौर जिले में दो लोकसभा सीटें नगीना और बिजनौर हैं। दोनों पर ही 2019 में बसपा ने जीत दर्ज की। भाजपा ने इस विशेष अभियान के लिए आखिर बिजनौर को ही क्यों चुना आइए जानते हैं
खेती बिजनौर की अर्थव्यवस्था की जान है। बिजनौर के एक तरफ हरिद्वार और दूसरी तरफ कोटद्वार और तीसरी तरफ काशीपुर है. गंगा और मालन नदी के बीच बसे बिजनौर में गन्ने की खेती सबसे ज्यादा होती है और यहां 9 चीनी मिलें हैं। कहा जाता है कि महाभारत काल में युद्ध शुरू होने से पहले महात्मा विदुर हस्तिनापुर का त्याग कर यहीं बिजनौर आकर गंगा किनारे कुटिया बनाकर रहने लगे थे. इसलिए इसे विदुर भूमि भी कहते हैं।
भारत के प्रथम इंजीनियर राजा ज्वाला प्रसाद की जन्म भूमि होने का सौभाग्य भी प्राप्त बिजनौर को है. भारतीय राजनीति और आजादी की लड़ाई में अग्रणी रहे हाफिज मोहम्मद इब्राहिम, मौलाना हिफजुर रहमान और मौलाना अब्दुल लतीफ गांधी जैसे कर्म योद्धा भी इस मिट्टे से निकले हैं.
बिजनौर का नाम पहले व्हेन नगर पड़ा था. फिर ये बिजयनगर कहलाया जाने लगा और अब बिजनौर के नाम से जाना जाता है. बिजनौर की स्थापना 1817 में हुई थी. इसका प्रथम मुख्यालय नगीना बनाया गया था. उसके बाद इसका मुख्यालय झालू बनाने की कोशिश की गई लेकिन यह रणनीति परवान नहीं चढ़ सकी. दरअसल, झालू में अंग्रेज कमिश्नर की पत्नी पर मधुमक्खियों ने हमला बोल दिया था जिसमें उनकी मौत हो गई था, उसी कारण झालू जिला मुख्यालय नहीं बन पाया और आखिरकार बिजनौर को मुख्यालय के लिए चुना गया और बिजनौर मुख्यालय बन गया.बिजनौर में कई ऐतिहासिक स्थल भी मौजूद हैं जिसमें कण्व आश्रम, पारसनाथ का किला, विदुर कुटी मंदिर और आश्रम, दरगाह ए आलिया नजफे हिन्द जोगीरमपुरी, राजा के ताजपुर का गिरजाघर, नजीबुद्दौला का किला सबसे ज्यादा ऐतिहासिक है.
मुस्लिम आबादी निर्णायक
2011 की जनगणना के अनुसार बिजनौर जनपद की कुल आबादी 36 लाख आठ हजार है। बिजनौर जिले में मुस्लिम और हिंदू आबादी सियासी तौर पर लगभग बराबर ही है. बिजनौर में हिंदू आबादी 55% और मुस्लिम आबादी 45% है. यहां दलित 22 फीसदी के करीब हैं.यहां जाटों का प्रभाव ज्यादा है. इनके अलावा चौहान, त्यागी भी असर रखते हैं. दलित वोट बड़ी संख्या में है. मुस्लिम वोटर किसी भी पार्टी को जीत दिलाने का माद्दा रखते हैं.
जनपद में बिजनौर, धामपुर, चांदपुर, नगीना, नजीबाबाद सहित 5 तहसीलें हैं और 12 नगरपालिका व 6 नगर पंचायत हैं. इसके अलावा जनपद में 11 ब्लॉक हैं.
अब बात करते हैं लोकसभा सीटों की
बिजनौर में 2 लोकसभा सीटें हैं. एक बिजनौर और दूसरी नगीना. दोनों ही सीटों पर फिलहाल बसपा के सांसद हैं. 2019 में मोदी लहर के बावजूद बसपा-सपा का गठजोड़ इन दोनों ही सीटों पर काम कर गया था और बिजनौर सीट से बसपा के मलूक नागर और नगीना सीट से बसपा के गिरीश चंद्र सांसद जीते थे. मेरठ जिले की हस्तिनापुर सीट भी बिजनौर लोकसभा क्षेत्र में ही आती है।
जिले में फिलहाल 8 विधानसभा सीटें हैं. बिजनौर, चांदपुर, नूरपुर, धामपुर, बढ़ापुर, नगीना, नजीबाबाद और नहटौर. नगीना और नहटौर आरक्षित सीटें हैं. 2017 के चुनाव में बीजेपी को 6 सीटें मिली थीं, जबकि दो सीटों पर सपा जीती थी. बिजनौर, चांदपुर, नूरपुर, धामपुर, बढ़ापुर और नहटौर सीट पर भाजपा जीती थी. जबकि नगीना और नजीबाबाद पर सपा को जीत मिली थी. हालांकि, बाद में नूरपुर के विधायक की सड़क हादसे में मौत के बाद इस सीट पर हुए उपचुनाव में सपा के नईमुल हसन ने जीत दर्ज की.
मायावती, मीरा कुमार और पासवान यहां से लड़े
उत्तरप्रदेश की बिजनौर लोकसभा सीट को वीआईपी सीट माना जाता है।1984 में कांग्रेस सांसद गिरधारी लाल के निधन के बाद बिजनौर सीट खाली हो गई। 1985 में उपचुनाव हुआ। तब बिजनौर सीट सुरक्षित होती थी। यहां से कांग्रेस ने पूर्व उप प्रधानमंत्री और दलित नेता जगजीवनराम की पुत्री मीरा कुमार को मैदान में उतारा। लोकदल ने रामविलास पासवान पर दांव खेला तो कांशीराम ने मायावती को प्रत्याशी बनाया। मीरा ने रामविलास को करीब तीन हजार वोटों से हराया। मायावती तीसरे नंबर पर रहीं। बाद में मायावती भी 1989 में बिजनौर से ही लोकसभा पहुंचीं थीं। 1991 में प्रधानमंत्री चंद्रशेखर थे और मुलायम सिंह यादव यूपी के मुख्यमंत्री थे। दोनों एक ही समाजवादी जनता पार्टी में थे। लोकसभा के मध्यावधि चुनाव में मुलायम सिंह यादव ने सीपीएम के साथ गठबंधन कर लिया और मास्टर रामस्वरूप को मैदान में उतार दिया था। मायावती को 1,59,731 वोट मिले थे, जबकि रामस्वरूप को 57,880 वोट मिले थे। इस चुनाव में जनता दल से भाजपा में आए मंगलराम ने जीत दर्ज की और उन्हें 2,47,465 वोट मिले थे। मायावती सीट नहीं बचा पाईं और मुलायम सिंह यादव ने बिजनौर सीट पर रामस्वरूप के लिए प्रचार कराया।
2007 में जब यहां सात विधानसभा सीटें हुआ करती थीं, तब बसपा ने सभी विधानसभा सीटों पर जीत दर्ज की थी. जयप्रदा ने चुनाव लड़ा पर चौथे स्थान पर रहीं
रामपुर सीट से संसद पहुंचने वाली बॉलीवुड अभिनेत्री जय प्रदा को 2014 में चौधरी अजीत चौधरी की पार्टी राष्ट्रीय लोकदल ने बिजनौर सीट से चुनाव लड़ाया। लेकिन, इस चुनाव में उन्हें भाजपा के प्रत्याशी से करारी शिकस्त मिली। जयाप्रदा को सिर्फ 24 हजार 348 वोट मिले और वे चौथे नंबर पर रहीं।
बिजनौर का विवादों से नाता
दिसंबर 2019 में जब सीएए कानून के विरोध में पूरे देश के साथ यूपी में प्रदर्शन हुए तो बिजनौर में भी उसका असर दिखाई दिया. यहां भी लोग सड़कों पर उतरे. बिजनौर शहर में हिंसा देखने को मिली. जिसके बाद पुलिस ने बड़ी संख्या में अल्पसंख्यक नौजवानों को गिरफ्तार किया. कई पर रासुका भी लगाई गई. दूसरी तरफ, प्रदर्शन के दौरान ही जिले के नहटौर कस्बे में दो युवाओं की मौत हो गई. ये मौत पुलिस फायरिंग से हुईं. जिस पर जमकर बवाल हुआ. ये मुद्दा काफी गरमाया और सियासत भी हुई. कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी खुद पीड़ित परिवारों से मिलने पहुंचीं थीं.
पेंदा कांड ने बदली फिजा
बिजनौर शहर से जुड़े गांव पेदा में सितंबर 2016 में एक लड़की से छेड़छाड़ को लेकर सांप्रदायिक बवाल हुआ था. जिसमें अल्पसंख्यक समुदाय के तीन लोग गोली लगने से मारे गए थे और करीब आधा दर्जन लोग गंभीर रूप से घायल हुए थे. यह इतनी बड़ी घटना थी कि शहर में अघोषित कर्फ्यू जैसे हालात पैदा हो गए थे. इस केस के आरोप में ऐश्वर्य मौसम चौधरी को गिरफ्तार किया गया था. लेकिन घटना के कुछ वक्त बाद ही जब 2017 में विधानसभा चुनाव हुए तो मौसम की पत्नी सूची मौसम चौधरी को भाजपा ने टिकट दिया और वो विधायक बन गईं.
अब तक हुए चुनावों पर नजर
बिजनौर लोकसभा सीट से पांच बार कांग्रेस तो चार बार भाजपा का कब्जा रहा। रालोद ने दो बार व सपा तथा बसपा ने एक-एक बार इस सीट पर परचम लहराया। निर्दलियों को भी यह सीट रास आई। दो बार हुए उपचुनाव में यह सीट कांग्रेस की झोली में गई। यहां 1952 और 57 के चुनाव में कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी। लेकिन, 1962 के चुनाव में निर्दलीय प्रकाश वीर शास्त्री ने कांग्रेस से यह सीट छीन ली। 1967 और 71 के चुनाव में सीट कांग्रेस के खाते में फिर आ गई। लेकिन, इमरजेंसी के दौर के बाद जनता का कांग्रेस से मोहभंग हो गया। 1977 और 1980 में इस सीट पर जनता दल ने जीत हासिल की। इसके बाद 1984 में कांग्रेस ने यहां से चुनाव जीता।
देखें किस साल कौन जीता
साल जीते
1952 नेमी सरन (कांग्रेस)
1957 अब्दुल लतीफ (कांग्रेस)
1962 प्रकाश वीर शास्त्री (निर्दल)
1967 एसआर नंद (कांग्रेस)
1971 स्वामी रामानंद शास्त्री (कांग्रेस)
1977 माही लाल (भारतीय लोकदल)
1980 मंगल राम (जनता पार्टी सेक्युलर)
1984 गिरधारी लाल (कांग्रेस)
1989 मायावती (बसपा)
१९९१ मंगल राम प्रेमी (भाजपा)
1996 मंगल राम प्रेमी (भाजपा)
1998 ओमवती देवी (सपा)
1999 शेषराम सिंह रवि (भाजपा)
2004 मुंशीराम (राष्ट्रीय लोकदल)
2009 संजय सिंह चौहान (राष्ट्रीय लोकदल)
2014 कुंवर भारतेंद्र (भाजपा)
2019 मलूक नगर भाजपा