जब अच्छे दिन की आस में मोदीमय हुआ यूपी, इसलिए बढ़ती गई भाजपा और घटने लगी कांग्रेस
वजह, इसी तारीख को देश की जनता ने केंद्र में भाजपा के पक्ष में जनादेश दिया था। कांग्रेस तब तक के अपने इतिहास में सबसे निचले पायदान (44 सीटों) पर आकर थम गई।
साल 2014 की 16 मई भारत के इतिहास में निर्णायक दिन के तौर पर हमेशा के लिए दर्ज हो गई। वजह, इसी तारीख को देश की जनता ने केंद्र में भाजपा के पक्ष में जनादेश दिया था। कांग्रेस तब तक के अपने इतिहास में सबसे निचले पायदान (44 सीटों) पर आकर थम गई। उस चुनाव के साल-दो साल पहले तक राजनीतिक विश्लेषक भी पूरे आत्मविश्वास के साथ यह नहीं भांप पाए कि भारत का इतिहास इतनी बड़ी करवट लेगा! हालांकि, चुनाव से ऐन पहले भारत में अमेरिका की राजदूत नैन्सी पॉवेल ने नरेंद्र मोदी से उनके घर पर मिलकर यह संदेश जरूर दे दिया था कि भारत की कमान नेहरूवादी मॉडल से एकदम अलग सोच रखने वालों के हाथ में जाने वाली है। यूपीए सरकार में सामने आए भ्रष्टाचार व सरकार से बढ़ती उम्मीदों व आकांक्षाओं ने जनता में कांग्रेस के प्रति गुस्सा भर दिया। गुजरात में कुशल प्रशासक के रूप में खुद को साबित कर चुके मोदी में जनता ने अपनी आस्था व्यक्त की। लेकिन, यह परिदृश्य सिर्फ इन्हीं कारणों से नहीं बना। तत्कालीन परिस्थितियों ने भी अहम भूमिका निभाई। उस जनादेश के पीछे के कारणों पर विस्तार से चर्चा कर रहे हैं |
यूपीए पर आरोप और नरेंद्र मोदी की स्वच्छ छवि
यूपीए सपकार में हुए कॉमनवेल्थ गेम्स स्कैम, 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला, कोयला घोटाला, वीवीआईपी चॉपर घोटाला, आदर्श स्कैम, कैश फॉर वोट घोटाला जन-जन की जुबान पर चढ़ चुके थे। गांधीवादी अन्ना हजारे ने भ्रष्टाचार के खिलाफ देशव्यापी अभियान चलाया। जनलोकपाल का गठन मुद्दा बना। वहीं, भगवा खेमे ने नरेंद्र मोदी को एक ऐसे राजनेता के रूप में प्रस्तुत किया जो गुजरात में सबसे ज्यादा वर्षों तक मुख्यमंत्री रहे और भ्रष्टाचार का कोई दाग नहीं लगा। ये घोटाले जहां यूपीए के लिए अभिशाप बने, वहीं नरेंद्र मोदी की छवि एनडीए के लिए वरदान साबित हुई।
नोटा का सोटा कम ही चला यूपी में
नोटा वोट 2019 के लोकसभा चुनाव में पड़े थे जौनपुर में। सबसे कम नोटा वाली सीटों के मामले में जौनपुर पूरे देश में 16वें पायदान पर रहा। 25 हजार से ज्यादा नोटा वोटों के साथ टॉप 30 में शामिल रहीं सीटों में से यूपी की एक भी नहीं थी।
गुजरात मॉडल पर कायम हुआ भरोसा
कांग्रेस के 2004-2014 तक के शासन में देश की अर्थव्यवस्था पटरी से उतर गई थी। आम जनमानस के मन में यह बात अच्छे से बैठ चुकी थी कि कांग्रेसी गांधी परिवार के आगे असहाय है। देश का आर्थिक विकास ठहर गया था। प्राइवेट सेक्टर से रोजगार कम होने लगे थे। जीडीपी की वृद्धि प्रभावित हुई थी।
इन सब कारणों ने कांग्रेस सरकार के प्रति एंटी इनकम्बेंसी (सत्ता विरोधी रुझान) बड़े पैमाने पर पैदा कर दी। तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने एक सभा में कहा था, अच्छे दिन आने वाले हैं। उनके इस कथन को नारे के रूप में भाजपा ले उड़ी। नरेंद्र मोदी के गुजरात मॉडल की चर्चा जन-जन तक पहुंच चुकी थी। इस नारे का इस्तेमाल भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार मोदी ने किया। वहीं, पार्टी आमजन के दिमाग में यह बात बैठाने में सफल रही कि भारत के अच्छे दिन तो तभी आएंगे जब पीएम की कुर्सी मोदी संभालेंगे।
आडवाणी दरकिनार, मोदी को लाए आगे
संघ परिवार ने अच्छे से समझ लिया था कि लालकृष्ण आडवाणी के सहारे चुनावी वैतरिणी को पार नहीं किया जा सकता। इसलिए आडवाणी की आपत्तियों के बावजूद नरेंद्र मोदी को चेहरा बनाने में कोई हीलाहवाली नहीं की।
देश में सबसे ज्यादा सीटों वाले राज्य उत्तर प्रदेश में भाजपा को जिताने की जिम्मेदारी अमित शाह को सौंपी गई। यहां बता दें कि उससे पहले के कई चुनावों में यूपी में भाजपा का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा था।
तकनीक का इस्तेमाल
तब तक भाजपा सोशल मीडिया की ताकत को समझ चुकी थी। चुनाव कैंपेन में बड़े पैमाने पर पेशेवर लगाए गए। सोशल मीडिया का ऐसा प्रयोग पहली बार हुआ। तब यूपी में तत्कालीन अखिलेश सरकार ने छात्रों को लैपटॉप बांटे थे। सपा संस्थापक मुलायम सिंह ने कहा था कि हमारी सरकार ने युवाओं को लैपटॉप बांटे, भाजपा ने अपनी बात को युवाओं के दिलो-दिमाग में बैठाने के लिए उसका फायदा उठाया।