गाजियाबाद में भाजपा का बोलबाला पर मतदाता हर कसौटी पर कसेंगे प्रत्याशियों को

Update: 2024-04-13 07:41 GMT

-सभी पार्टियों के मेनिफेस्टो में विकास की लहर

गाजियाबाद। गाजियाबाद में मुकाबला कई स्तरों पर परखा जा रहा है। वर्तमान में वोटर काफी ​जागरूक है वह हर कसौटी पर अपने प्रत्याशी को परखता है। विकास, रोजगार, शिक्षा और चिकित्सा के मुद्दे को लेकर सभी पार्टियां चुनावी मैदान में हैं। सभी पार्टियों के मेनिफेस्टो में विकास की लहर दिखाई देती है लेकिन जनता वोट उसी को करेगी जिसके वादों पर मतदाता विश्वास करता है। साथ ही बूथ लेवल पर जिस पार्टी ने अधिक मेहनत की है वो पार्टी परिणामों को अपने प्रत्याशी के पक्ष में कर सकती है।

गाजियाबाद भाजपा संगठन की बागडोर इस समय महानगर अध्यक्ष संजीव शर्मा के हाथों में है और वह अपने आप को कई मौकों पर साबित भी कर चुके हैं। उनकी रणनीति का कोई तोड़ इस समय विपक्ष के पास नहीं है। गौरतलब है कि भाजपा पर आरएसएस का परोक्ष हाथ हमेशा से ही रहता आया है। कांग्रेस भी अपने सेवा दल के सहारे देश पर लंबे समय तक राज कर चुकी है, जो अब कमजोर हो चुकी है। तो वहीं नई आर्थिक नीतियों के दुष्परिणाम स्वरूप समाज में ऐसी प्रतिस्पर्धा बढ़ी कि सेवा भाव अब लगभग गायब हो गया है और श्रम मूल्य सामाजिक जीवन में प्रभावशाली स्थान लेता जा रहा है। कांग्रेस की सहयोगी पार्टी सपा का संगठन दो युवाओं के हाथ में है। निश्चित रूप से दोनों युवा मेहनती और लगनशील हैं लेकिन उनमें थोड़ा अनुभव की कमी दिखाई पड़ती है। जिसके वजह से वो कार्यकर्ताओं को एक माला में पिरोने में कामयाब नहीं हो पा रहे हैं। सपा और आम आदमी पार्टी के कैडर तो हैं लेकिन ये भाजपा के जितने कारगर नहीं हैं। हालांकि पारस्परिक समन्वय बिठाना कोई बच्चों का खेल नहीं है।

तो वहीं, बसपा के पास लगभग 20 प्रतिशत कैडर वोट है जिसके सहारे भारतीय राजनीति में उसकी पैठ बनी हुई है जबकि गत 12 वर्षों से वह यूपी की सत्ता से बाहर है। गाजियाबाद में गठबंधन की प्रत्याशी डॉली शर्मा के सामने कड़ी चुनौती है। इसका एक कारण यह है कि उनकी पार्टी पिछले काफी समय से सत्ता से बाहर है जिस कारण उनकी पार्टी का कैडर उस तरह का नहीं है जिस प्रकार का कैडर खड़ा करने में भाजपा कामयाब रही है। बूथ स्तर का कैडर खड़ा करने में भाजपा ने काफी मेहनत की है। उसके लिए भाजपा के मेहनती कार्यकर्ताओं का बहुत योगदान है। भाजपा में समर्पण और अनुशासन साफ दिखाई पड़ता है। वहीं कांग्रेस में समर्पण और अनुशासन की कमी साफ दिखाई पड़ती है। जिसके चलते कई बार कार्यकर्ताओं के बीच आपस में मनमुटाव दिखाई पड़ता है।

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