पवार का पावर गेम शिंदे को कर रहा है परेशान

अजित पवार शिवसेना के साथ जाएं या बीजेपी के साथ दोनों ही हालातों में फायदा एनसीपी का ही होगा जहां एक हिस्सा NDA का हिस्सा बनेगा वहीं दूसरा महा विकास आघाडी के साथ रहेगा। अजित पवार के आने से महाराष्ट्र सरकार में एकनाथ शिंदे कमजोर होते नजर आ रहे हैं। शिंदे और उनका गुट अजित पवार के कारण ही अलग हुए थे और आज होने के साथ उन्हें सरकार में साथ बैठना पड़ रहा है। यही नहीं कैबिनेट विस्तार में उनके कई साथी पिछड़ गए।

Update: 2023-07-18 06:16 GMT

महाराष्ट्र की राजनीति में रोज नए पन्ने जुड़ते जा रहे हैं। जहां एक तरफ अजित पवार (Ajit Pawar) अपने चाचा का हाथ छोड़ बीजेपी (BJP ) के साथ हो लिए। वही कई जानकारों का कहना है कि यह सब शरद पवार (Sharad Pawar) की अपनी राजनीति है। 50 से भी ज्यादा सालों से शरद पवार महाराष्ट्र में राजनीति कर रहे हैं। कहते हैं कि उनके दिमाग में क्या चल रहा है यह उनकी पत्नी तक को पता नहीं होता।

इन हालातों में वह कब क्या कर जाएंगे किसी को नहीं पता। 2 जुलाई को भतीजे अजीत पवार ने जब पार्टी तोड़ी तलब शरद पवार अकेले पड़ गए थे। इसका सबसे बड़ा कारण था कि अजित पवार (Ajit Pawar) को पवार की चाह। उन्हें हमेशा से ही एनसीपी (NCP )का अध्यक्ष बनना था। उन्हें पावर की जरूरत थी। पर जब शरद पवार ने पार्टी की कमान अपनी बेटी सुप्रिया सुले और कुछ करीबियों के हाथों दे दी तो अजित पवार ने उनका साथ छोड़ने का फैसला ले लिया। दूर होकर भी दूर नहीं इसी बीच अचानक 16 और 17 जुलाई को सभी बागी विधायक एक-एक कर शरद पवार से मिलने आए।

इससे पहले अजित पवार 14 जुलाई को शरद पवार से मिलने उनके बंगले पर भी गए थे। इन सभी घटनाक्रमों को देखें तो कहीं ना कहीं लगता है। क्या यह शरद पवार (Sharad Pawar) की सोची समझी रणनीति का हिस्सा है। क्यों की शरद पवार (Sharad Pawar) भी यह बात जानते थे की अगर अजित को अध्यक्ष नहीं बनाया तो वो बगावत जरूर करेगा। 

2019 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के बाद भी सत्ता की चाह में अजित पवार (Ajit Pawar) बीजेपी (BJP) के साथ शपथ भी ले चुके थे। पर जैसे ही शरद पवार (Sharad Pawar) ने बुलाया वे सब छोड़ वापिस आ गए थे।  महाराष्ट्र की राजनीति को समझने का दावा करने वाले लोग यह सब देखकर उलझ गए है। हो क्या रहा है? कार्यकर्ता अलग से कंफ्यूज है ऐसी उलझी हुई राजनीति को और उलझाने वाले शरद पवार की जिंदगी की शुरुआत हुई थी। मुंबई से 261 किलोमीटर दूर पुणे के बारामती से। बारामती के काटेवाडी से निकलकर शरद पवार इतने बड़े लीडर बने हैं। जिन लोगों ने शरद पवार को करीब से देखा है। वह भी यही कहते हैं कि शरद पवार के दिमाग में क्या चल रहा है यह कोई नहीं बता सकता। 

उनका दाहिना हाथ क्या करेगा यह उनके बाएं हाथ को भी पता नहीं चलता। दरअसल अजित पवार (Ajit Pawar) का एनसीपी (NCP) से अलग होना यह शरद पवार कि स्ट्रेटजी इसलिए भी हो सकती है कि हालात कुछ भी हो फाइनली फायदा एनसीपी का ही हो रहा है। सत्ता में रहना किसी भी पार्टी के लिए एक बड़ी बात होती है और जिस तरह से अजित पवार (Ajit Pawar) को महाराष्ट्र कैबिनेट में महत्वपूर्ण स्थान मिला उन्हें ना सिर्फ उप मुख्यमंत्री बनाया गया बल्कि जैसा महत्वपूर्ण विभाग भी दिया गया। वह सब देखते हैं आने वाले समय में महाराष्ट्र में एक अलग तरह की राजनीति देखने को मिल सकती है। 

एनसीपी के फायदे

अजित पवार शिवसेना (Shiv Sena) के साथ जाएं या बीजेपी के साथ दोनों ही हालातों में फायदा एनसीपी का ही होगा जहां एक हिस्सा NDA का हिस्सा बनेगा वहीं दूसरा महा विकास आघाडी के साथ रहेगा।

अजित पवार के आने से महाराष्ट्र सरकार में एकनाथ शिंदे कमजोर होते नजर आ रहे हैं। शिंदे और उनका गुट अजित पवार के कारण ही अलग हुए थे और आज होने के साथ उन्हें सरकार में साथ बैठना पड़ रहा है। यही नहीं कैबिनेट विस्तार में उनके कई साथी पिछड़ गए। 

शिवसेना टूटने के बाद एनसीपी महाराष्ट्र में दूसरे नंबर की पार्टी बनी रहेगी। इसका फायदा सीधे तौर पर शरद पवार को मिलेगा।

और सबसे बड़ा फायदा जिसके लिए अजित पवार NDA का हिस्सा बने वह है उन पर लगे हुए करप्शन के चार्जेस। पिछली बार जब उन्होंने NDA का हाथ थामा था तब उन पर लगे हुए कुछ चार्जेस हट गए थे यही इस बार भी होगा। पार्टी तोड़ने के बावजूद ना तो अजित पवार की फोटो एनसीपी ऑफिस से हटी है नाही उनके शरद पवार से मिलने पर कोई रोक-टोक है। तो सोचने वाले खुद ही सोच समझ सकते हैं की आखिर शरद पवार को चाणक्य क्यों कहा जाता है। 

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