दिल्ली राज्य अध्यादेश मामले में 20 जुलाई को अगली सुनवाई
दिल्ली में आखिर अधिकारियों के पोस्टिंग और ट्रांसफर पर किसका अधिकार होगा। सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि जनता के चुनी हुई सरकार को ही अधिकार होगा। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने फैसले का स्वागत किया।1 हफ्ते के अंदर ही केंद्र सरकार एक अध्यादेश लेकर आए जिसके अनुसार एक समिति बनाई जाएगी। यह समिति अधिकारियों के ट्रांसफर पोस्टिंग और उनके खिलाफ मिली शिकायतों पर काम करेगी।
दिल्ली (Delhi) में अधिकारियों के ट्रांसफर और पोस्टिंग का अधिकार किसका है ? इस मामले को लेकर कल सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में एक बार फिर से चर्चा हुई और इस मामले में मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस पी एस नरसिम्हा और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने इस मामले के बारे में गौर किया। बेंच ने कहा कि केंद्र सरकार के पास जो भी अधिकार है उनके बारे में 2018 से 2023 के बीच कायदे से चर्चा नहीं हुई है। जिसमें सबसे महत्वपूर्ण है कि क्या केंद्र सरकार कोई भी ऑर्डिनेंस लाने के लिए संविधान का सहारा ले सकती है? दिल्ली सरकार का कहना है कि ऑर्डिनेंस लाने के लिए केंद्र सरकार ने अनुच्छेद 249AA के क्लॉज 7 में बदलाव किए। ताकि वह अपनी मर्जी से ऑर्डिनेंस ला सके और दिल्ली सरकार की ताकत को कम कर सके.सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में कहां की केंद्र सरकार ने 239AA (7) के तहत ताकत का इस्तेमाल करने के लिए संशोधन किया है या नहीं इस बारे में खंडपीठ ध्यान नहीं दिया है।
जिस पर दिल्ली के उपराज्यपाल के वकील हरीश साल्वे ने कहा अगर खंडपीठ ने इस मुद्दे पर गौर नहीं किया है, तो क्यों ना इस मामले में फिर एक बार खंडपीठ के सामने पूरी बात रखी जाए। लेकिन दिल्ली सरकार (Delhi Govt) इसके विरोध में है दिल्ली सरकार का कहना है कि, उपराज्यपाल वही करते हैं जो केंद्र सरकार उन्हें करने के लिए कहते हैं। ऐसे में उनके किसी भी मामले में दिल्ली सरकार हामी नहीं भर सकती। कुल मिलाकर मामला गोल गोल घूम रहा है। और अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) इस मामले में ऑर्डिनेंस को किसी भी तरह से खारिज करने के लिए विपक्ष की मदद मांग रहे हैं। आने वाले दिनों में केंद्र सरकार का सत्र शुरू हो जाएगा और उस सत्र में ऑर्डिनेंस के खिलाफ सभी विपक्षी को साथ लेने कि केजरीवाल कोशिश कर रहे है। मामले की अगली सुनवाई 20 जुलाई को होनी है।
क्या है पूरा मामला
दरअसल 11 मई 2023 को सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया था मामला यहीं था कि दिल्ली में आखिर अधिकारियों के पोस्टिंग और ट्रांसफर पर किसका अधिकार होगा। सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि जनता के चुनी हुई सरकार को ही अधिकार होगा। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने फैसले का स्वागत किया। लेकिन उनकी खुशी ज्यादा दिन तक नहीं थी। 1 हफ्ते के अंदर ही केंद्र सरकार एक अध्यादेश लेकर आए जिसके अनुसार एक समिति बनाई जाएगी। यह समिति अधिकारियों के ट्रांसफर पोस्टिंग और उनके खिलाफ मिली शिकायतों पर काम करेगी। इस समिति में दिल्ली के मुख्यमंत्री, दिल्ली के सचिव और प्रधान सचिव गृह शामिल होंगे। किसी भी मामले में बहुमत के आधार पर फैसला लिया जाएगा। साफ तौर पर देखा जाए तो इस समिति में केंद्र सरकार की मेजोरिटी होगी।
ऐसे में कोई भी फैसला दिल्ली सरकार खुद नहीं ले पाएगी। बल्कि समिति के अधिकारियों के एवज में केंद्र सरकार ही फैसला लरगी। इन सब के बावजूद अंतिम फैसला दिल्ली के उपराज्यपाल का होगा। ऐसे में कोई भी फैसला उपराज्यपाल बदलने के लिए या कैंसिल करने के लिए भी कह सकते हैं। यहां तक कि अगर समिति में सबकी अलग-अलग राय बनती है तब भी उपराज्यपाल ही आखरी फैसला लेंगे। यानी सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद दिल्ली के अधिकारियों का ट्रांसफर पोस्टिंग का पूरा अधिकार एक बार फिर से उपराज्यपाल के हाथ आ गया है। इसी का विरोध दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल कर रहे हैं। आपको बता दें कि किसी भी अध्यादेश को 6 महीने के अंदर अंदर संसद में पास करवाना होता है। जिसके लिए लोकसभा और राज्यसभा दोनों से बहुमत मिलना जरूरी इसलिए अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) हर राज्य में घूम घूम कर सभी पार्टियों से इस अध्यादेश के खिलाफ उनका साथ देने के लिए मदद मांग रहे हैं। लोकसभा में तो बीजेपी का बहुमत है पर अगर राज्यसभा में सभी विपक्षी दल आम आदमी पार्टी के साथ खड़े हो जाए तो इस अध्यादेश को रोका जा सकता है। यही सोचकर केजरीवाल सब को साथ लाने की कोशिश में लगे हुए हैं। इस मामले में कांग्रेस के साथ ही सभी विरोधी पक्ष आम आदमी पार्टी के साथ राज्यसभा में अध्यादेश का विरोध करने के लिए तैयार हो गए हैं। इसका मतलब साफ है या आने वाले सत्र में दिल्ली के अध्यादेश के मामले में मौसम गर्म हो सकता है।