2024 की तैयारी में मायावती, गांव गांव घूमेंगे कार्यकर्ता
"वोट हमारा, राज तुम्हारा, नहीं चलेगा" यहां नारा भी दिया है मायावती इस बार अपने पुराने सीटों को बचाने के साथ ही नई सीटें जीतने की कोशिश भी कर रही है। 2022 के विधानसभा चुनाव में मिली करारी हार से बसपा ने सबक लिया है। विधानसभा चुनाव में उन्होंने ब्राह्मण-दलित कार्ड पर दाव खेला था, लेकिन हाथ गहरी निराशा लगी थी। इसलिए इस बार दलित -अति पिछड़ा- मुस्लिम गठजोड़ पर ही बसपा नजर रखे हुए हैं साथ ही ब्राह्मण समाज से दूरी बनाने पर भी फोकस केंद्रित है। सूबे के मुसलमान को पार्टी से जोड़ने की कोशिश मायावती की बसपा रही है।
लोकसभा चुनाव 2024 की दौड़ शुरू हो गई है। सभी पार्टियों अपने-अपने स्तर पर वोटरों को रिझाने की कोशिश में लग गई है। इसी क्रम में बहुजन समाजवादी पार्टी की अध्यक्ष मायावती ने एक लाख गांव तक पहुंचाने का टारगेट रखा है। साथ ही हर बूथ पर 10 युवा कार्यकर्ताओं को जोड़ने का स्लोगन भी दिया है। आने वाले तीन दिनों में यह अभियान हर गांव से शुरू हो जाएगा और 3 महीने तक बसपा यह अभियान चलता रहेगा। इस विषय में बसपा के प्रदेश अध्यक्ष विश्वनाथ पाल ने पत्रकारों से बातचीत में बताया कि पिछले तीन दिनों से अभियान 75 जिलों में शुरू हो चुका है 2024 के चुनाव से पहले बसपा 170000 भूत मजबूत करने की तैयारी में है
युवाओं पर नजर
बसपा से जुड़े अधिकारियों ने मायावती के निर्देश पर यूपी में करीब 1 लाख 60 हजार गांव में पदाधिकारी को जाने की निर्देश दिए हैं हर गांव में बूथ पर 10 नए युवा कार्यकर्ताओं को पार्टी से जोड़ने का टारगेट दिया गया है।पिछले दो विधानसभा और लोकसभा चुनाव में बसपा को उनके वोटर्स दूर जाते नजर आ चुके हैं इसलिए मायावती ने एक समीक्षा बैठक ली और कार्यकर्ताओं को गांव का जा कर वोटर को समझने और समझाने के लिए कहा गया है। साथ ही "वोट हमारा, राज तुम्हारा, नहीं चलेगा" यहां नारा भी दिया है मायावती इस बार अपने पुराने सीटों को बचाने के साथ ही नई सीटें जीतने की कोशिश भी कर रही है।2022 के विधानसभा चुनाव में मिली करारी हार से बसपा ने सबक लिया है। विधानसभा चुनाव में उन्होंने ब्राह्मण-दलित कार्ड पर दाव खेला था, लेकिन हाथ गहरी निराशा लगी थी। इसलिए इस बार दलित -अति पिछड़ा- मुस्लिम गठजोड़ पर ही बसपा नजर रखे हुए हैं साथ ही ब्राह्मण समाज से दूरी बनाने पर भी फोकस केंद्रित है। सूबे के मुसलमान को पार्टी से जोड़ने की कोशिश मायावती की बसपा रही है।
2007 में बसपा ने दलित अति पिछड़ा और मुसलमान को टारगेट किया। जिसके वजह से उन्हें अपनी सरकार बनाने का मौका मिला। लेकिन 2012 के बाद बसपा का ग्राफ लगातार गिरता जा रहा है।उत्तर प्रदेश में 22 फीसदी दलित वोटर्स है वही 20 फ़ीसदी मुस्लिम वोटर यह दोनों मिलकर 42 फ़ीसदी हो जाता है। इसमें अगर अति पिछड़ी जातियां जुड़ जाए तो बसपा बीजेपी को चुनौती दे सकती है। यही देखते हुए बसपा ने इस कार्यक्रम की शुरुआत की है पिछले लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के साथ मायावती की पार्टी ने 10 सीटें हासिल की थी। इसके बाद 2022 में बसपा अकेली विधानसभा चुनाव में लड़ी जहां उनका प्रदर्शन निराशाजनक रहा और वोट प्रतिशत सिर्फ 13 फीसदी। इस वजह से पार्टी सिर्फ एक सीट तक सीमित कर रह गई। नगर निकाय चुनाव में भी मेयर की एक भी सीट मायावती की पार्टी नहीं जीत पाई।