तिरुपति लड्डू विवाद मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आंध्र प्रदेश सरकार से पूछा- एसआईटी जांच के नतीजे आने तक प्रेस में जाने की क्या जरूरत थी?
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने आज सोमवार को उन याचिका पर सुनवाई की जिनमें तिरुमाला स्थित श्री वेंकटेश्वर स्वामी मंदिर में प्रसाद के रूप में परोसे जाने वाले लड्डू बनाने में पशु चर्बी के इस्तेमाल के आरोपों की अदालत की निगरानी में जांच की मांग की गई है। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कम से कम भगवान को राजनीति से दूर रखा जाना चाहिए। इस मामले में अब अगली सुनवाई तीन अक्टूबर को होगी।
सुब्रमण्यम स्वामी का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता राजशेखर राव का कहना है कि वे एक भक्त के रूप में यहां आए हैं और प्रसाद में मिलावट के बारे में प्रेस में दिए गए बयान के दूरगामी परिणाम हो सकते हैं और इससे कई अन्य मुद्दे उठ सकते हैं और सांप्रदायिक सद्भाव बिगड़ सकता है। ये चिंता का विषय हैं। अगर भगवान के प्रसाद पर कोई सवालिया निशान है तो इसकी जांच होनी चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने आंध्र प्रदेश सरकार के वकील से कहा कि लैब रिपोर्ट से पता चलता है कि जिस घी की जांच की गई थी, वह खारिज किया गया घी था। कोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा कि एसआईटी जांच के आदेश के बाद प्रेस में जाने की क्या जरूरत थी। सुप्रीम कोर्ट ने आंध्र प्रदेश सरकार से पूछा कि एसआईटी जांच के नतीजे आने तक प्रेस में जाने की क्या जरूरत थी? सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कम से कम भगवान को राजनीति से दूर रखा जाना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि क्या घी जो मानकों के अनुरूप नहीं पाया गया था, उसका इस्तेमाल प्रसाद के लिए किया गया था। सरकार ने जवाब दिया कि वह मामले की जांच कर रही है। तो फिर प्रेस में तुरंत जाने की क्या जरूरत थी? सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आपको धार्मिक भावनाओं का सम्मान करना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने आंध्र प्रदेश सरकार से पूछा कि प्रसादम लड्डू बनाने में दूषित घी का इस्तेमाल किया गया था या नहीं। टीडीपी की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा ने कहा कि लोगों ने शिकायत की थी कि लड्डू का स्वाद ठीक नहीं था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लोगों को इसकी जानकारी नहीं थी, आपने सिर्फ बयान दिया है। इस बात का कोई सबूत नहीं है कि प्रसाद में दूषित घी का इस्तेमाल किया गया था।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि यह आस्था का मामला है। अगर इस घी का इस्तेमाल किया गया है तो यह अस्वीकार्य है। यह देखा जाना चाहिए कि इसके लिए कौन जिम्मेदार है और इसकी जांच की जानी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने सॉलिसिटर जनरल से कहा कि वह चाहेंगे कि वह इस बात की जांच करें कि क्या राज्य द्वारा गठित एसआईटी से जांच कराई जानी चाहिए। क्या ऐसा बयान (राज्य द्वारा) दिया जाना चाहिए था जिससे भक्तों की भावनाएं आहत हों? जब एसआईटी का आदेश दिया गया था तो प्रेस में जाकर सार्वजनिक बयान देने की क्या जरूरत थी? सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमें भगवान को राजनीति से दूर रखना चाहिए।
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि प्रथम दृष्टया इस स्तर पर ऐसा कुछ भी नहीं है जिससे पता चले कि नमूने में इस्तेमाल किया गया घी लड्डू बनाने के लिए इस्तेमाल किया गया था। जब जिम्मेदार सार्वजनिक पदाधिकारियों द्वारा इस तरह के बयान दिए जाते हैं तो इसका एसआईटी पर क्या प्रभाव पड़ेगा? सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि सैंपल में सोयाबीन तेल हो सकता है, इसका मतलब यह नहीं है कि मछली का तेल इस्तेमाल किया गया है। आपको सप्लायर पर संदेह हो सकता है। जब आपने जाकर बयान दिया था, तो यह दिखाने के लिए क्या है कि इसका इस्तेमाल किया गया था?