प्रशासन नहीं देता था तो तनख्वाह से ही भोग...रामलला की 32 साल से पूजा कर रहे मुख्य पुजारी की कहानी
जा पर कृपा राम की होई। ता पर कृपा करहिं सब कोई॥ जिनके कपट, दम्भ नहिं माया। तिनके हृदय बसहु रघुराया॥
यानि, जिस पर राम की कृपा है, उस पर सब कृपा करते हैं। जिनमें कपट और दंभ नहीं है, उनके हृदय में राम हैं।
रामघाट पर रामलला के मुख्य पुजारी का घर है। अखाड़ों सा बड़ा दरवाजा, जहां से हाथी पर बैठा आदमी भीतर चला जाए और सिर चौखट पर न टकराए। महावीरी रंग में रंगा-पुता घर, आधी से ज्यादा दीवारें भी उसी रंग में। भीतर सोफा लगा एक कमरा, साथ में सिंदूरी रंग की चादर बिछी तखत। पीछे फिल्म के पोस्टर लगे हैं, एक का नाम रामदास, दूसरा राम का गुणगान।
कहानी फिल्मी है भी। तखत पर बैठे भगवा चोगा पहने, लंबी दाढ़ी और सफेद रोली-पीले चंदन का तिलक लगाए पुजारी की कहानी शुरु होती है एक मार्च, 1992 से। पुराने पुजारी लालदास महंत को बेदखल कर दिया गया था।
कहा जाता है हरकतें पुजारी के अनुकूल नहीं थीं। और, फिर रामलला को 1949 में गुंबद के भीतर स्थापित करने वाले महाराज अभिराम दास जी के शिष्य व संस्कृत विद्यालय के अध्यापक सत्येंद्र दास को रामलला का पुजारी बनाया गया।
मार्च से दिसंबर तक सब ठीक चल रहा था। फिर तारीख आई 6 दिसंबर, 1992। कारसेवकों का हुजूम था। गुंबद ढहाने की तैयारी चल रही थी। सत्येंद्र दास से कहा गया कि वह रामलला को भोग लगाकर पर्दा गिरा दें। सत्येंद्र दास कहते हैं, दिन में पूड़ी-सब्जी-दाल-चावल की जगह उस दिन रामलला को सिर्फ फल-दूध का भोग लगा।
डर था कि विवादित ढांचा गिराते वक्त कहीं रामलला को कोई नुकसान न हो जाए, इसलिए सहायक पुजारियों व कुछ कारसेवकों की मदद से रामलला को सिंहासन समेत उठाकर पास के एक नीम के पेड़ के नीचे, सुरक्षित जगह पर ले आए।
अब रामलला गुंबद के नीचे नहीं, टेंट-तिरपाल में पूजे जाने लगे। पुजारी सत्येंद्र दास ही थे। वह याद करते हैं, कई बार जितना भोग-राग मांगा जाता था, प्रशासन उतना नहीं देता था। तब वे टीचर वाली अपनी तनख्वाह से ही भोग जुटाते थे। वह प्रशासन से हर साल दो बार रामलला के कपड़े सिलवाने की गुजारिश करते थे, पर डीएम बस रामनवमी पर नए कपड़े भिजवाते थे।
आज रामलला हर दिन नए कपड़े पहनते हैं। 28 साल रामलला तिरपाल में रहे। सत्येंद्र दास कहते हैं, सबसे बुरा तो तब लगता था, जब बारिश में तिरपाल फट जाता था और फटे तिरपाल को बदलवाने के लिए सुप्रीम कोर्ट से इजाजत लेनी पड़ती थी। पानी भीतर घुस आता था और रामलला के कपड़े भीग जाते थे।
भयानक गर्मी में रामलला के लिए सिर्फ एक पंखा होता था, कूलर तक नहीं देते थे। और ठंड में ठिठुरते रामलला के लिए सिर्फ एक रजाई। पुजारी सत्येंद्र दास अपने सहायकों के साथ जैसे-तैसे रामलला का ख्याल रखते थे।
तब उनके चार सहायक होते थे। अब रामलला जब अपने नए घर में जाएंगे, तो वहां तैनाती के लिए 20-25 नए पुजारियों की ट्रेनिंग चल रही है। काशी के पंडित उन्हें सिखा समझा रहे हैं। क्या पहले वाले पुजारी और नए प्रशिक्षित पुजारियों में कोई फर्क होगा, क्या पूजा बदल जाएगी, क्या रामलला को अब वह भोग नहीं लगेगा।
देश के सबसे चर्चित मंदिर के प्रमुख पुजारी से सवाल खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहे थे। सत्येंद्र दास कहते हैं, मंदिर में सिर्फ रामलला नहीं होंगे, 16 और मंदिर होंगे, कई सारे भगवान भी, दर्शन करनेवाले भी ज्यादा होंगे, इसलिए ज्यादा पुजारियों की जरूरत होगी। बस जो नहीं बदलेगा वह है रामलला का भोग, राग, सेवा, पूजा, अर्चना, आरती और रामधुन।