लोकसभा चुनाव के ये होंगे किंग मेकर 

दोनों ही दलों में कुछ ऐसे बड़े चेहरे हैं। जो नदारद है जो कहीं ना कहीं किंग मेकर की भूमिका में नजर आ सकते हैं। आज उन्हें 9 दलों के बारे में हम आपको बताने जा रहे हैं।

Update: 2023-07-19 10:15 GMT

2024 लोकसभा चुनाव (lok sabha election) के लिए दोनों ही दल कमर कस चुके हैं। जहां यूपीए इंडिया (UPA India) के नाम से अपना दल स्थापित कर चुके हैं। वहीं एनडीए (NDA) ने भी अपने सभी समर्थकों को साथ बुलाकर अपनी ताकत दिखाने की कोशिश की। इन दोनों ही दलों में कुछ ऐसे बड़े चेहरे हैं। जो नदारद है जो कहीं ना कहीं किंग मेकर की भूमिका में नजर आ सकते हैं। आज उन्हें 9 दलों के बारे में हम आपको बताने जा रहे हैं। 

सबसे पहला दल है जनता दल सेक्युलर ऐसा अंदाजा लगाया जा रहा है कि जेडीएस 2023 में हुए चुनाव में हारने के बाद अब एनडीए में शामिल हो सकती है।  2006 में जेडीएस और एनडीए दोनों ने मिलकर न सिर्फ चुनाव लड़ा था बल्कि सरकार में शामिल भी थी। पर इन सबके बावजूद मंगलवार को हुई मीटिंग में जेडीएस (JDS) नदारद थी। 

दूसरा दल है शिरोमणि अकाली दल। मंगलवार को हुए मीटिंग में शिरोमणि अकाली दल ना तो बीजेपी के खेमे में नजर आई ना ही कांग्रेस के खेमे में। 2014 से किसान आंदोलन तक शिरोमणि अकाली दल बीजेपी के साथ थी पर किसान आंदोलन के समय पंजाब की राजनीति को देखते हुए उन्होंने बीजेपी का हाथ छोड़ना ही सही समझा।  देखना होगा कि आखिर शिरोमणि अकाली दल आखिरी मौके पर चौका मारती है या नहीं। 

अगला दल है मायावती का बहुजन समाज पार्टी (SP)  2014 से अब तक मायावती उत्तर प्रदेश में दिन-ब-दिन सिमटती जा रही है। केंद्र सरकार में तो छोड़िए विधानसभा में भी उनके सदस्यों की संख्या ना के बराबर होती जा रही है। इससे पहले बसपा समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के कई नेताओं के साथ हाथ मिला चुकी है पर परिणाम शून्य ही रहा। यह देखते हुए अंदाजा लगाया जा रहा है कि शायद आने वाले समय में बीएसपी बीजेपी के खेमे में जा बैठे। 

बीजू जनता दल उड़ीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक का दल बीजेडी (BJD) भी दोनों ही खेलों से बाहर है। उन्होंने विपक्षी दलों के साथ बैठक में शामिल होने से इनकार कर दिया है। हालांकि संसद के मुद्दों पर विपक्ष का समर्थन करने का उन्होंने वादा किया है। बीजेडी किसी समय में NDA  का हिस्सा रह चुकी है। इसलिए देखना होगा कि चुनाव आते-आते इनका ऊंट किस करवट बैठता है। 

बीआरएस (BRS) आंध्र प्रदेश से तेलंगाना को अलग करने का श्रेय अगर किसी को जाता है तो वह है तेलंगाना के मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव और उनकी पार्टी भारत राष्ट्र समिति को। यह भी विपक्ष की बैठक में शामिल नहीं हुए। इसकी सबसे बड़ी वजह यह कहा जा रहा है कि बीजेपी पिछले काफी समय से दक्षिण में अपने पैर जमाने की कोशिश कर रही है। वही बीआरएस अपने दल को तेलंगाना से बाहर महाराष्ट्र और बाकी राज्यों में ले जाने में हाथ पैर मार रही है। जहां बीजेपी काफी कोशिश कर रही है कि किसी तरह से बीआरएस उनके खेमे में आ जाए वही तेलंगाना की यह पार्टी सही मौके का इंतजार कर रही है। 

वायएसआरसीपी (YSRCP) आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाईएस जगनमहन रेड्डी की पार्टी युवजन श्रमिक रायपुर कांग्रेस पार्टी भी दोनों ही खेलों की बैठकों से दूर रहे। इसका कारण कहा जा रहा है कि दोनों ही खेमो द्वारा उन्हें आमंत्रण नहीं मिला है। पर आंध्र प्रदेश जैसे राज्य को भूलना दोनों ही खेल के लिए नामुमकिन है।

इंडियन नेशनल लोकदल यह दल हरियाणा में दो बार एनडीए सरकार का हिस्सा रह चुकी है। लेकिन इस बार आईएनएलडी कांग्रेस बीजेपी के खिलाफ तीसरा मोर्चा तैयार करने में जुटी है। इसीलिए यह पक्ष दोनों ही खेल से दूरी बनाए हुए हैं। 

असदुद्दीन ओवेसी की पार्टी एआईएमआईएम (AIMIM) भी दोनो खेमे से दूर रही। इस पार्टी के हैदराबाद और महाराष्ट्र दोनो ही राज्यों में पकड़ है। देखना होगा इन्हे कौन रूझा पता है।

AIDUF यह दल हमेशा से बीजेपी विरोधी रहा है साथ ही इनका असम के मुस्लिम समुदाय में अच्छी पकड़ है।पर यह पक्ष भी मीटिंग से नदारद रही।

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