सुप्रीम कोर्ट ने OTT और सोशल मीडिया पर अश्लील सामग्री परोसने पर केंद्र से मांगा जवाब, जानें किन-किन OTT प्लेटफॉर्म को भेजा नोटिस
डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर बढ़ती अश्लीलता को लेकर सुप्रीम कोर्ट की गंभीर टिप्पणी, कहा, "वैसे भी, आरोप हैं कि हम विधायिका और कार्यकारी शक्ति का अतिक्रमण कर रहे हैं।";
नई दिल्ली (राशी सिंह)। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को केंद्र, प्रमुख OTT प्लेटफॉर्म्स और सोशल मीडिया कंपनियों को नोटिस जारी किया, जिसमें उनसे उन याचिकाओं पर जवाब मांगा गया है जिनमें ओटीटी OTT और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर यौन रूप से स्पष्ट सामग्री के प्रसार पर रोक लगाने की मांग की गई है। यह याचिका पांच याचिकाकर्ताओं द्वारा दायर की गई थी, जिनका प्रतिनिधित्व अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने किया। याचिकाकर्ताओं ने OTT और सोशल मीडिया पर यौन रूप से विकृत सामग्री के बढ़ते प्रसार को रोकने के लिए एक राष्ट्रीय सामग्री नियंत्रण प्राधिकरण (National Content Regulation Authority) के गठन की भी मांग की है।
कोर्ट की टिप्पणी: कार्यपालिका और विधायिका के अधिकार क्षेत्र का मामला
सुनवाई के दौरान जस्टिस बी.आर. गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा कि याचिका एक गंभीर चिंता उठाती है, लेकिन यह मुख्य रूप से कार्यपालिका और विधायिका के अधिकार क्षेत्र में आता है। जस्टिस गवई ने कहा, "वैसे भी, आरोप हैं कि हम विधायिका और कार्यकारी शक्ति का अतिक्रमण कर रहे हैं।" इसके बावजूद, कोर्ट ने केंद्र सरकार से इस मुद्दे पर आवश्यक कदम उठाने को कहा और स्पष्ट किया कि सरकार को इस पर सक्रियता दिखानी चाहिए।
केंद्र सरकार की प्रतिक्रिया
केंद्र की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत को बताया कि सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021 के तहत कुछ मौजूदा नियमन पहले से अस्तित्व में हैं, जबकि अतिरिक्त नियामक उपायों पर विचार किया जा रहा है। मेहता ने संकेत दिया कि सरकार इस दिशा में सक्रियता से काम कर रही है और आगे के लिए सख्त नियम लाने पर विचार कर रही है।
किसे भेजा गया नोटिस?
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के साथ-साथ प्रमुख OTT प्लेटफॉर्म्स — नेटफ्लिक्स, अमेजन प्राइम वीडियो, उल्लू, एएलटी बालाजी — और प्रमुख सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स — फेसबुक, एक्स (पूर्व में ट्विटर), इंस्टाग्राम, यूट्यूब — को भी नोटिस जारी कर जवाब देने का निर्देश दिया है। याचिका में इन डिजिटल मंचों पर यौन रूप से स्पष्ट और अश्लील सामग्री को बिना किसी नियंत्रण के उपलब्ध कराने को लेकर कड़ी आपत्ति जताई गई है।
याचिकाकर्ताओं का तर्क: सामाजिक मूल्यों और बच्चों की सुरक्षा का सवाल
याचिकाकर्ताओं ने अपनी याचिका में तर्क दिया कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स और OTT चैनलों पर यौन विकृति फैलाने वाली सामग्री से युवाओं, बच्चों और वयस्कों का मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित हो रहा है। याचिका में कहा गया है, "इस तरह की सामग्री समाज में विकृत और अप्राकृतिक यौन प्रवृत्तियों को बढ़ावा देती है और अपराध दर में वृद्धि का कारण बन सकती है। यदि इसे अनियंत्रित छोड़ दिया गया तो सामाजिक मूल्यों, मानसिक स्वास्थ्य और सार्वजनिक सुरक्षा पर गंभीर परिणाम पड़ सकते हैं।" याचिका में सरकार से मांग की गई है कि वह डिजिटल स्पेस को नियंत्रित कर उसे अनियंत्रित अश्लीलता का मंच बनने से रोके और सार्वजनिक नैतिकता की रक्षा करे।
आगे क्या?
फिलहाल सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका पर अगली सुनवाई के लिए कोई निश्चित समयसीमा तय नहीं की है। अदालत ने कहा है कि केंद्र की विस्तृत प्रतिक्रिया के आधार पर आगे की कार्यवाही तय होगी। यह मामला भारत के तेजी से बढ़ते डिजिटल मनोरंजन और सोशल मीडिया स्पेस में कंटेंट रेगुलेशन को लेकर गहरी हो रही चिंताओं को दर्शाता है, विशेष रूप से नाबालिगों के अनुचित कंटेंट तक पहुंचने के जोखिम के संदर्भ में।