पटना हाईकोर्ट से बिहार सरकार को लगा झटका ! कोर्ट ने 65% आरक्षण देने वाले कानून को किया रद्द, बताया असंवैधानिक

Update: 2024-06-20 07:43 GMT

पटना। पटना हाईकोर्ट से आज यानी गुरुवार को बिहार सरकार को बड़ा झटका लगा है। पटना हाई कोर्ट ने सुनवाई के दौरान राज्य सरकार के अनुसूचित जाति, जनजाति, अत्यंत पिछड़े और अन्य पिछड़े वर्ग को 65 प्रतिशत आरक्षण देने वाले कानून को रद्द कर दिया है। साथ ही हाईकोर्ट ने इसे असंवैधानिक करार दिया है। यानी अब शिक्षण संस्थानों व सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जाति, जनजाति, अत्यंत पिछड़े और अन्य पिछड़े वर्ग को 65 आरक्षण नहीं मिलेगा। कोर्ट के इस फैसले के बाद राज्य में 50 प्रतिशत आरक्षण वाली पुरानी व्यवस्था लागू रहेगी।

दरअसल गौरव कुमार व अन्य लोगों ने 65 प्रतिशत आरक्षण कानून के खिलाफ पटना हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। याचिका में कहा गया था कि संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार, सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों को उचित प्रतिनिधित्व देने के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई थी न कि जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण देने का प्रावधान। बिहार सरकार ने यह जो 2023 का संशोधित अधिनियम पारित किया है, वह भारतीय संविधान के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है। इसमें सरकारी नौकरियों में नियुक्ति के समान अधिकार का उल्लंघन करता है। वहीं भेद भाव से संबंधित मौलिक अधिकार का भी उल्लंघन है।

बता दें कि राज्य की राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार ने बिहार में जाति आधारित जनगणना का फैसला किया था। यह काम बीच में बनी महागठबंधन सरकार के दौरान पूरा हुआ था। महागठबंधन सरकार के भी मुखिया मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही थे। महागठबंधन सरकार ने आरक्षण संशोधन बिल के आधार पर आरक्षण का दायरा बढ़ाकर 65 प्रतिशत कर दिया था। अगर आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को मिलने वाले 10 प्रतिशत आरक्षण को जोड़ दें तो कुल 75 प्रतिशत आरक्षण का लाभ मिलेगा। इसे लेकर बिहार सरकार ने 21 नवंबर 2023 को गजट प्रकाशित किया था। इसके बाद से शिक्षण संस्थानों और नौकरी में अनुसूचित जाति/जनजाति, पिछड़ा वर्ग और अतिपिछड़ा को 65 प्रतिशत आरक्षण का लाभ मिल रहा था। 

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