कोर्ट की छत पर ध्वज दंड पकड़े बैठा रहा काला बंदर, लोगों ने माना दैवीय चमत्कार; पढ़ें रहस्यमय कहानी

By :  SaumyaV
Update: 2024-01-20 05:27 GMT

जिस दिन ताला खोलने का निर्णय आया था, उस दिन एक काला बंदर अदालत की छत पर लगे तिरंगा ध्वज का दंड पकड़कर सुबह से शाम तक बैठा रहा। लोगों ने बंदर को मूंगफली भी दी और फल भी दिए। लेकिन, उसने उनसे हाथ तक नहीं लगाया। जब जस्टिस पांडेय ने शाम को फैसला सुनाया। कोर्ट का निर्णय आते ही बंदर वहां से चला गया। पढ़ें रहस्यमय बंदर की कहानी। 

 आज प्रभु राम के जन्मस्थान का अदालती आदेश से ताला खुलने और एक बंदर से जुड़ा रोचक किस्सा, जिसे संबंधित न्यायाधीश ने अपनी किताब में भी लिखा है। साथ ही ताला खोलने का आदेश देने वाले फैजाबाद जिला न्यायालय के तत्कालीन जिला न्यायाधीश न्यामूर्ति केएम पांडेय की, जिनकी तरक्की की राह में रोड़े अटकाए गए। 

साल था 1985। सचिवालय में न्याय विभाग में न्यायिक सेवा के न्यायाधीश न्यायमूर्ति केएम पांडेय की नियुक्ति हुई। कुछ ही दिन बाद उन्हें फैजाबाद का जिला जज बना दिया गया। न्यायमूर्ति पांडेय के दिल और दिमाग में क्या चल रहा था, यह तो रामजी ही जाने।

पर, मुझे तो सिर्फ यह याद है कि वह एक दिन राम जन्मभूमि आए। दर्शन किए और वहां मौजूद एक पुजारी से पूछा कि इस मामले का निर्णय क्यों नहीं हो पा रहा है? पुजारी न्यायाधीश को पहचानता तो था नहीं, बोला-महोदय किसी ऐसे जज ने अभी तक जन्म नहीं लिया, जो इस मुकदमे का फैसला कर दे। इसी के बाद न्यायाधीश ने ताला खोलने का फैसला दिया।

इस फैसले के बाद हाईकोर्ट ने जस्टिस पांडेय को उच्च न्यायालय में प्रोन्नति की सिफारिश की। प्रदेश में मुख्यमंत्री थे नारायण दत्त तिवारी। तिवारी जस्टिस पांडेय के फैसले से शायद खुश नहीं थे। उन्होंने उनकी पत्रावली सर्वोच्च न्यायालय को और केंद्र सरकार को न भेजकर, अपने पास रोके रखी। चुनाव हुए तो कांग्रेस हार गई और मुख्यमंत्री बने मुलायम सिंह यादव।

मुलायम ने उनकी पत्रावली पर लिखा, श्री पांडेय एक सुलझे हुए, कर्मठ, योग्य और ईमानदार न्यायाधीश है। पर, 1986 में इन्होंने बाबरी का ताला खुलवाकर सांप्रदायिक तनाव पैदा कर दिया। इसलिए मैं नहीं चाहता कि इन्हें हाईकोर्ट का जज बनाया जाए। जस्टिस पांडेय सर्वोच्च न्यायालय के तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश न्यामूर्ति सव्यसाची मुखर्जी से मिले।

उन्होंने मुलायम के निर्णय को राजनीतिक करार दिया और आश्वस्त किया कि वह कुछ करेंगे। संयोग से कुछ दिन बाद सुब्रह्मण्यम स्वामी कानून एवं न्याय मंत्री बन गए। उन्होंने सारी आपत्तियों को राजनीतिक बताते हुए जस्टिस पांडेय को पदोन्नति दे दी। पर, ताला खोलने का आदेश देने के कारण जस्टिस पांडेय के पांच साल की बलि तो तत्कालीन राजनीति ने ले ही ली।

सभी लोगों ने माना दैवीय चमत्कार

अब ताला खोलने के फैसले और उस रहस्यमय बंदर की कहानी। यह संयोग था या कोई दैवयोग, इसका फैसला आप सबके विवेक पर। मैं तो सिर्फ घटना सुना रही हूं। जिस दिन ताला खोलने का फैसला आया, उस दिन एक काला बंदर अदालत की छत पर लगे तिरंगा ध्वज का दंड पकड़े सुबह से शाम तक बैठा रहा। उस दिन अदालत में काफी भीड़ थी।

स्वाभाविक रूप से लोग ताला खोलने को लेकर दायर अपील पर फैसला सुनने आए थे। इन लोगों ने बंदर को मूंगफली दी। फल दिए। पर, उसने हाथ तक नहीं लगाया। जस्टिस पांडेय ने शाम को फैसला सुनाया। फैसला होते ही वह वहां से चला गया।

फैसले के बाद जस्टिस पांडेय वापस बंगले पर लौटे। उनके साथ तत्कालीन जिलाधिकारी और एसएसपी भी थे। जस्टिस पांडेय ने देखा कि वह बंदर उनके बंगले के बरामदे में भी मौजूद है। उन्हें बंगले पर सुरक्षित पहुंचाने आए जिलाधिकारी और एसएसपी ने भी यह दृश्य देखा। सभी ने इसे दैवीय चमत्कार माना और उसके हाथ जोड़े। असलियत रामजी जाने।

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