4m ने टॉप गियर पर लाया इलेक्शन, 69% मुसलमान को फायदा पर घिरी कांग्रेस
नई दिल्ली। 4m मतलब मुस्लिम, मेनिफेस्टो, मनमोहन और मंगलसूत्र। इस फोर एम ने उदासीन पड़े चुनाव को टॉप गियर में ला दिया है। अब कार्यकर्ता सोशल मीडिया के फ्रेम से निकलकर सड़क पर आ सकते हैं। ऐसे में 26 अप्रैल के चुनाव में वोटिंग परसेंटेज बढ़ने की उम्मीद को नकारा नहीं जा सकता है। वैसे तो खास बात यह है कि पीएम नरेंद्र मोदी ने पिछले 10 वर्षों में जो बात कभी नहीं कही, वह आज राजस्थान के बांसवाड़ा और अलीगढ़ में कह दी। मोदी की साफ्ट हिंदुत्व की छवि हार्ड हिंदुत्व में अचानक कैसे तब्दील हो गई। इस पर तो चर्चा गली- मोहल्ले से लेकर राजनीतिक गलियारा में छाई हुई है लेकिन यहीं तक सोच पाना कि इस फोर एम से मोदी को सियासी फायदा हुआ है, यह उचित नहीं होगा।
सोच आगे बढ़ानी होगी। गहराई में उतरना ही पड़ेगा और और जब उतरेंगे तो पता चल जाएगा कि मोदी ने ऐसा क्यों कहा। जानिए कि इस गहराई में एक सर्वेक्षण की रिपोर्ट है। नेशनल कौंसिल ऑफ़ अप्लाइड इकोनामिक रिसर्च और अमेरिका के मैरीलैंड विश्वविद्यालय ने एक सर्वेक्षण किया था जिसमें गरीबी रेखा से नीचे 50 परसेंट आदिवासी, 32 परसेंट दलित और 31% मुस्लिम है। सर्वेक्षण के मुताबिक एक चौथाई से अधिक आबादी गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रही है। इस आबादी को ग्रामीण क्षेत्र में 356 रुपए जबकि शहरी क्षेत्र में मात्र 538 रुपए की मासिक आय होती है। 10 में से तीन मुसलमान गरीबी रेखा से नीचे हैं। अब आप आइए मेनिफेस्टो और 2006 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के बयान पर, जिसमें तमाम अल्पसंख्यकों का अधिकार संसाधनों पर पहला बताया गया है। अब सोचिए कि अगर कांग्रेस तमाम मुसलमान को संसाधनों पर पहला अधिकार दिलाएगी तो इसमें 69% मुसलमान को घर बैठे ही वह फायदा मिल जाएगा जिसके लिए आजादी के बाद से ही गरीबी रेखा से नीचे जी रहे आदिवासी और दलित तरस रहे हैं। अगर कांग्रेस सिर्फ गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहे 31% मुसलमान की ही बात करती तो यह बवाल मचने का मौका उनके विरोधियों को नहीं मिलता लेकिन उन्होंने नासमझी से खुद ही मुद्दा भाजपा के हाथ में थमा दिया। अब इसका फायदा भाजपा को मिलता है तो इस पर कांग्रेस को ऐतराज नहीं करना चाहिए क्योंकि उन्होंने मुसलमान को अमीरी गरीबी की नजर से नहीं देखा सिर्फ वोट की नजर से देखा।
क्या 26 अप्रैल के चुनाव में वोट परसेंटेज बढ़ेगा
पहले तो यह जान लें कि पहले चरण में 102 सीटों पर 65.5% मतदान हुआ। वोटिंग परसेंटेज कम रहने के कई कारण हैं। मसलन, अब तक चुनाव प्रचार के दौरान विकास और विकास के दावे की रटी रटाई बयान चल रहे थे। उधर वोटर के मन में भी था कि मोदी जी स्थापित हो चुके हैं जीतेंगे तो वही। फिर क्या इलेक्शन में एक उनका वोट नहीं जाएगा तो क्या हो जाएगा। दूसरी तरफ व्यवस्था में बदलाव की विपक्ष की आवाज नक्कारखाने में तूती साबित हो रही थी यानी विपक्ष बदलाव की कोई लहर नहीं दिखा सका और जनता वोटिंग के प्रति अपेक्षित रूप से जागरूक नहीं हो सकी। उधर भाजपा कार्यकर्ता सोशल मीडिया पर ज्यादा सक्रिय दिखे। पन्ना प्रमुख फेसबुक पेज प्रमुख हो गए और कार्यकर्ता अपने को व्हाट्सएप मैसेज तक सीमित रखा। पहले कार्यकर्ता घर-घर जाकर मतदाताओं से संपर्क कर उन्हें बूथ तक लाते थे। इस बार यह दृश्य कम ही दिखा लेकिन अब ऐसी उम्मीद है कि 4m के असर से सुस्त कार्यकर्ता सोशल मीडिया से निकलकर सड़क तक आएंगे और यह वजह वोटिंग परसेंटेज बढ़ने की हो सकती है। जानकारों का मानना है कि आगामी लोकसभा चुनाव अगर जनता की लॉन्ग वीकेंड का शिकार नहीं हुआ तो परसेंटेज जरूर बढ़ेगी।
चुनाव आयोग की कार्रवाई का क्या असर पड़ेगा
कांग्रेस ने फोर एम को लेकर चुनाव आयोग से शिकायत की है। वही भाजपा ने भी कांग्रेस की शिकायत जाति धर्म के आधार पर समाज को बांटने की की है। अब जनता बेसब्री से इस पर नजर बनाई हुई है कि चुनाव आयोग इस पर क्या कार्रवाई करेगी। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि चुनाव आयोग की कार्रवाई टॉप गियर पर पहुंचे इलेक्शन की स्पीड को कम नहीं कर पाएगी।