ये क्या हो गया है ट्रंप को ? अब हार्वर्ड यूनिवर्सिटी को निशाने पर लेकर खत्म करना चाहते हैं संस्थान की स्वतंत्रता
हार्वर्ड ने कहा, “कोई भी सरकार तय नहीं कर सकती कि विश्वविद्यालय किसे पढ़ाएं, किसे प्रवेश दें और किन विषयों पर शोध करें।”;
नई दिल्ली (राशी सिंह)। अमेरिका के प्रतिष्ठित हार्वर्ड विश्वविद्यालय और ट्रम्प प्रशासन के बीच टकराव एक नई ऊंचाई पर पहुंच गया है। विश्वविद्यालय ने व्हाइट हाउस की उन मांगों को सख्ती से खारिज कर दिया है, जिनका उद्देश्य उच्च शिक्षा के संस्थानों पर नियंत्रण स्थापित करना और उनके स्वतंत्र चरित्र को बदलना बताया जा रहा है। इसके जवाब में, अमेरिकी शिक्षा विभाग ने हार्वर्ड को दिए जाने वाले $2.3 बिलियन के संघीय फंड को रोक दिया है, जिसमें $2.2 बिलियन का अनुदान और $60 मिलियन के अनुबंध शामिल हैं।
DEI कार्यक्रम और विदेशी छात्रों की निगरानी
यह विवाद उस समय और गहराया जब हार्वर्ड ने यह स्पष्ट कर दिया कि वह विविधता, समानता और समावेशन (DEI) कार्यक्रमों को समाप्त करने, केवल "योग्यता आधारित" प्रवेश प्रणाली अपनाने, और विदेशी छात्रों की निगरानी जैसी सरकारी मांगों को स्वीकार नहीं करेगा। विश्वविद्यालय के अध्यक्ष एलन गार्बर ने एक खुले पत्र में इन मांगों को विश्वविद्यालय की स्वायत्तता और प्रथम संशोधन के तहत मिली स्वतंत्रता के सीधे उल्लंघन के रूप में बताया। उन्होंने लिखा, “कोई भी सरकार तय नहीं कर सकती कि विश्वविद्यालय किसे पढ़ाएं, किसे प्रवेश दें और किन विषयों पर शोध करें।”
यहूदी विरोधी भावना या कुछ और?
ट्रम्प प्रशासन का तर्क है कि ये बदलाव यहूदी विरोधी भावना के खिलाफ कार्रवाई का हिस्सा हैं, विशेष रूप से गाजा युद्ध और फिलिस्तीन समर्थक प्रदर्शनों के बाद बढ़े तनाव के संदर्भ में। शिक्षा विभाग की एक टास्क फोर्स ने हार्वर्ड पर नागरिक अधिकारों की अनदेखी का आरोप लगाते हुए कहा कि विश्वविद्यालय संघीय फंडिंग के साथ आने वाली जवाबदेही को नज़रअंदाज़ कर रहा है।
बराक ओबामा ने हार्वर्ड के रुख को सराहा
हालांकि, आलोचकों का मानना है कि यह कार्रवाई राजनीतिक दबाव का एक साधन है। सीनेट में डेमोक्रेटिक नेता चक शूमर ने इसे विश्वविद्यालयों की स्वतंत्रता पर हमला बताया और कहा कि "प्रशासन इन संस्थानों को कमज़ोर या खत्म करना चाहता है।" वहीं, पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने हार्वर्ड के रुख की सराहना करते हुए इसे "अकादमिक स्वतंत्रता की रक्षा में एक उदाहरण" बताया।
पूर्व छात्रों, प्रोफेसरों और समुदाय के लोगों ने भी विश्वविद्यालय के समर्थन में आवाज़ उठाई है। अमेरिकन एसोसिएशन ऑफ यूनिवर्सिटी प्रोफेसर्स ने इस फंड कटौती के खिलाफ मुकदमा दायर किया है, जिसमें आरोप लगाया गया है कि सरकार ने फंडिंग रोकने से पहले कानूनन ज़रूरी प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया।
अन्य विश्वविद्यालय भी निशाने पर
प्रशासन की ओर से उठाए गए कदम केवल हार्वर्ड तक सीमित नहीं हैं। कोलंबिया, ब्राउन और पेंसिल्वेनिया विश्वविद्यालय जैसे कई अन्य प्रतिष्ठित संस्थानों को भी ऐसे ही दबाव का सामना करना पड़ा है। कोलंबिया को तो $400 मिलियन की फंडिंग से वंचित कर दिया गया है।
यह विवाद केवल एक विश्वविद्यालय की लड़ाई नहीं है, बल्कि यह उच्च शिक्षा की स्वतंत्रता, विचारों की विविधता, और लोकतांत्रिक संस्थानों की स्वायत्तता की रक्षा से जुड़ा एक बड़ा संघर्ष बन चुका है। हार्वर्ड का कहना है कि यहूदी-विरोधी भावना से निपटने के लिए वह पहले ही कई ठोस कदम उठा चुका है, लेकिन सरकारी हस्तक्षेप से विश्वविद्यालय के मूल्यों और शैक्षणिक वातावरण पर गंभीर खतरा मंडरा रहा है। इस पूरे मामले ने अमेरिका में शिक्षा और सरकार के बीच शक्ति संतुलन की बहस को फिर से केंद्र में ला दिया है और यह बहस अब अदालतों और नीति निर्माताओं के बीच निर्णायक मोड़ की ओर बढ़ रही है।