Judiciary VS Executive:बोले जगदीप धनखड़- संसद ही सुप्रीम है... चुने हुए सांसद ही तय करेंगे कि संविधान कैसा होगा
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा, किसी भी लोकतंत्र के लिए प्रत्येक नागरिक की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।;
नई दिल्ली। देश में वक्फ बिल के पास होते ही सियासत पूरी तरह से गरमाई हुई है। ऐसे में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने एक बार फिर न्यायपालिका की भूमिका और उसकी सीमाओं पर सवाल खड़े किए हैं। धनखड़ ने आज दिल्ली यूनिवर्सिटी में एक कार्यक्रम में कहा कि संसद देश की सबसे बड़ी संस्था है और चुने हुए सांसद ही तय करेंगे कि संविधान कैसा होगा।
क्या बोले उपराष्ट्रपति
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा, "किसी भी लोकतंत्र के लिए, प्रत्येक नागरिक की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। मुझे यह अविश्वसनीय रूप से दिलचस्प लगता है कि कुछ लोगों ने हाल ही में यह विचार व्यक्त किया है कि संवैधानिक पद औपचारिक या सजावटी हो सकते हैं। इस देश में हर किसी की भूमिका, चाहे वह संवैधानिक पदाधिकारी हो या नागरिक, के बारे में गलत समझ से कुछ भी दूर नहीं हो सकता।
मेरे अनुसार, एक नागरिक सर्वोच्च है क्योंकि एक राष्ट्र और लोकतंत्र नागरिकों द्वारा बनाया जाता है। उनमें से प्रत्येक की एक भूमिका है। लोकतंत्र की आत्मा प्रत्येक नागरिक में निवास करती है और धड़कती है। जब नागरिक सतर्क होंगे, नागरिक योगदान देंगे तो लोकतंत्र खिलेगा, इसके मूल्य बढ़ेंगे और नागरिक जो योगदान देता है, उसका कोई विकल्प नहीं है...।"
आपातकाल का किया जिक्र
उपराष्ट्रपति धनखड़ ने अपने संबोधन में 1975 के आपातकाल का भी जिक्र किया और कड़े सवाल उठाए। 25 जून 1975 हमारे लोकतंत्र का काला दिवस था। इस दिन देश की सर्वोच्च अदालत ने 9 उच्च न्यायालयों की सलाह की अवहेलना की। जगदीप धनखड़ ने कहा कि आपातकाल के दौरान लोगों ने सर्वोच्च बलिदान दिया, लेकिन सौदेबाजी नहीं की।
उन्होंने कहा कि लोकतंत्र अभिव्यक्ति और संवाद से ही पनपता है। अगर अभिव्यक्ति के अधिकार का गला घोंटा जाता है तो लोकतंत्र खत्म हो जाता है। और अगर अभिव्यक्ति के अधिकार पर अहंकार हो जाता है तो वह हमारी सभ्यता के अनुसार अभिव्यक्ति नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट के दो फैसलों पर उठाए सवाल
उपराष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट के दो फैसलों पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा- 'एक बार कोर्ट ने कहा कि संविधान की प्रस्तावना इसका हिस्सा नहीं है (गोलकनाथ केस के संदर्भ में) फिर दूसरी बार कहा कि प्रस्तावना संविधान का हिस्सा है (केशवानंद भारती केस के संदर्भ में)'।