बर्गर, पिज्जा कर सकता है दिमाग पर हमला, हो सकती है इतनी बड़ी समस्या

स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय के न्यूरोबायोलॉजी प्रोफेसर एंड्रयू ह्यूबरमैन ने अपने पॉडकास्ट में हार्वर्ड के मनोचिकित्सक डॉ. क्रिस पामर से इस बारे में बातचीत की कि भोजन के चुनाव का मानसिक स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ता है।;

By :  DeskNoida
Update: 2025-04-20 21:30 GMT

हम अक्सर मन को सुकून देने वाले भोजन का सहारा लेते हैं, लेकिन जो खाना हम खाते हैं, वह केवल भूख शांत करने के अलावा मानसिक स्वास्थ्य पर भी गहरा असर डाल सकता है। स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय के न्यूरोबायोलॉजी प्रोफेसर एंड्रयू ह्यूबरमैन ने 4 अप्रैल को अपने पॉडकास्ट में हार्वर्ड के मनोचिकित्सक डॉ. क्रिस पामर से इस बारे में बातचीत की कि भोजन के चुनाव का मानसिक स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ता है।

इस बातचीत का एक अंश इंस्टाग्राम पर साझा करते हुए ह्यूबरमैन ने लिखा कि यह समझना कोई नई बात नहीं है कि हमारा खानपान मूड और मानसिक स्थिति को प्रभावित कर सकता है। हालांकि, हाल के समय में वैज्ञानिक और चिकित्सकीय शोधों ने इस बात की पुष्टि करनी शुरू की है कि अत्यधिक प्रोसेस्ड फूड्स खाने से मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का खतरा बढ़ सकता है। ह्यूबरमैन के अनुसार, माइटोकॉन्ड्रिया में होने वाले बदलाव इस संबंध का माध्यम हो सकते हैं।

उन्होंने यह भी बताया कि जिन लोगों का भोजन मुख्य रूप से बिना प्रोसेस्ड या कम प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों पर आधारित होता है, उनके मानसिक स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव देखने को मिला है। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि ऐसे परिणाम केवल सहसंबंध दिखाते हैं और इनके साथ अन्य जीवनशैली के पहलू भी जुड़े हो सकते हैं।

बातचीत के दौरान डॉ. पामर ने बताया कि जितना ज्यादा कोई व्यक्ति अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड खाता है, उसकी शारीरिक और मानसिक सेहत उतनी ही खराब होती जाती है। इसमें हृदय रोग, मोटापा, डायबिटीज, मृत्यु दर, कैंसर और कई तरह के मानसिक विकार शामिल हैं। एक अध्ययन में, जिसमें 3 लाख से अधिक लोगों को शामिल किया गया था, यह स्पष्ट रूप से सामने आया कि अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड के सेवन और खराब मानसिक स्वास्थ्य के बीच सीधा और लगातार संबंध है।

डॉ. पामर ने कहा कि यह अंतर मामूली नहीं था। जो लोग हर दिन कई बार प्रोसेस्ड फूड खाते थे, उनमें से 58% ने खराब मानसिक स्वास्थ्य की शिकायत की, जबकि जो लोग शायद ही कभी या कभी-कभार ही ऐसा भोजन करते थे, उनमें यह आंकड़ा केवल 18% था।

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