कर्नाटक में कांग्रेस को मिला 'बजरंग बली' का सहारा

Update: 2023-05-13 11:17 GMT

क्षेत्रीय पार्टियों को 2024 से पहले मैसेज

कर्नाटक में कांग्रेस की सफलता की कहानी बहुत कुछ कह रही है। क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जादू कमजोर पड़ने लगा है? यह सवाल इसलिए भी उठने लगा है क्योंकि राज्य के विधानसभा चुनाव में पीएम ने ताबड़तोड़ रैलियां की थीं। कर्नाटक में जिस तरह बजरंग बली, मुस्लिम आरक्षण जैसे मुद्दों को आगे कर भाजपा ने ध्रुवीकरण करने की कोशिश की, उसके बाद भी कांग्रेस का जीतना भगवा दल के लिए बड़ा झटका है। हिमाचल प्रदेश के बाद कांग्रेस का ग्राफ जिस तरह से बढ़ रहा है, उसने भाजपा ही नहीं अंदर ही अंदर तीसरे मोर्चे की कोशिशों में लगी पार्टियों को भी बड़ा संदेश दे दिया है।

5-6 ऐसे सियासी चेहरे हैं, जिन्हें कर्नाटक चुनाव के नतीजों को देखते हुए आगे अपनी रणनीति बदलनी होगी। उनके बारे में जानने से पहले कर्नाटक में भाजपा बनाम कांग्रेस की फाइट को भी समझना जरूरी है। आखिर कांग्रेस कैसे मोदी-शाह वाली भाजपा पर भारी पड़ गई? सुबह 11 बजे तक आए रुझानों में 224 सीटों वाली विधानसभा में कांग्रेस को 117+ और भाजपा को 75+ सीटें मिलती दिख रही हैं। जेडीएस को 25 सीटें मिल सकती हैं।

BJP की नहीं सुने बजरंग बली

दरअसल, कर्नाटक के चुनाव प्रचार का पैटर्न देखिए तो बजरंग बली के जयकारों की गूंज सुनाई देती रही। भ्रष्टाचार समेत कई मुद्दे पीछे रह गए। कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में पीएफआई और बजरंग दल जैसे संगठनों पर प्रतिबंध लगाने की बात कही तो सियासी तूफान आ गया। इस मुद्दे में भाजपा को जीत का सर्टिफिकेट दिखने लगा। उसने ऐसा प्रचारित करना शुरू कर दिया जैसे कांग्रेस ने बजरंग दल नहीं भगवान बजरंग बली का अपमान किया हो। खुद पीएम मोदी बजरंग बली को ताले में बंद करने जैसी बातें करने लगे।

भाजपा को लगा कि इससे कर्नाटक में जबर्दस्त ध्रुवीकरण देखने को मिलेगा। दूसरे राज्यों में भी बीजेपी के कार्यकर्ताओं ने बवाल काटना शुरू कर दिया और पूरा चुनाव अलग ही दिशा में चला गया। जबकि कांग्रेस ने क्राइम और करप्शन के मुद्दे पर फोकस बनाए रखा। कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के नेतृत्व में अच्छी रणनीति देखने को मिली। घोषणा पत्र में गरीबों को राशन, महिलाओं के कल्याण की योजनाएं, युवाओं के लिए रोजगार का वादा किया गया तो प्रचार में उस पर फोकस भी हुआ।

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